राज्यसभा से मायावती का इस्तीफा मंजूर होने के बाद देश की राजनीति पर पड़ेंगे ये चार असर
बीएसपी सुप्रीमो मायावती के इस आक्रामक तेवर की कई वजहें हैं। सबसे अहम वजह यही है कि बीएसपी का जनाधार लगातार खिसकता जा रहा है।
नई दिल्ली। बीएसपी सुप्रीमो मायावती का राज्यसभा से इस्तीफा मंजूर कर लिया गया है। मानसून सत्र के दूसरे दिन यानी 18 जुलाई को राज्यसभा में जोरदार हंगामे के बीच बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने राज्यसभा से इस्तीफे की धमकी दी थी और बाद में उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में दलितों के खिलाफ हिंसा का मुद्दा उठाते हुए उस पर अपनी बात रखना चाहती थी, हालांकि उन्हें बोलने का वक्त दिया गया लेकिन उन्हें और समय चाहिए था। इसी मुद्दे पर मायावती ने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया। उनके इस्तीफा मंजूर किए जाने के बाद देश की राजनीति पर इसका क्या असर होगा...
मायावती का मास्टरस्ट्रोक
दलित वोट बैंक को एकजुट करने की कोशिश
बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने दलितों का मुद्दा उठाते हुए राज्यसभा में आक्रामक तेवर अपनाए। आखिरकार उन्होंने राज्यसभा में अपनी बात नहीं रखे दिए जाने से खफा होकर अपना पद छोड़ दिया। उनके इस कदम के पीछे सबसे अहम वजह यही है कि बीएसपी का जनाधार लगातार खिसकता जा रहा है। खास तौर से उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां बहुजन समाज पार्टी तीसरे नंबर की पार्टी बन गई है। इतना ही नहीं लगातार जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बाबा साहब भीमराव अंबेडकर को लेकर खासे सक्रिय नजर आ रहे हैं, इससे भी मायावती खासी परेशान हैं। फिलहाल जिस तरह से मायावती ने राज्यसभा से इस्तीफा दिया है इसका सीधा मकसद कहीं न कहीं अपनी खिसकती जमीन को मजबूत करने की एक कोशिश ही माना जा रहा है।
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इस्तीफे के जरिए मायावती ने दिया ये राजनीतिक संदेश
बीएसपी सुप्रीमो मायावती का पूरा सियासी गणित दलितों के इर्द-गिर्द घूमता है। मायावती खुद को दलित की बेटी बताती हैं, लेकिन इस बार के यूपी चुनाव में जिस तरह से बीजेपी ने दलित वोटबैंक में सेंध लगाते हुए मायावती की पार्टी बसपा को तीसरे नंबर पर धकेला उसके बाद उनका राज्यसभा से इस्तीफे देने का दांव उनका मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है। इससे पहले उन्होंने दलितों का मुद्दा सदन में उठाया और कहा कि मैं जिस समाज से आती हूं अगर उनके हित की बात आगे नहीं रख सकती तो मुझे राज्यसभा में बने रहने का अधिकार नहीं है। उनका ये कहना बेहद अहम है। मायावती इसके जरिए ये राजनीतिक संदेश देने में सफल रही कि सबसे बड़े लोकतंत्र में दलितों की आवाज दबाई जाती है। कहीं न कहीं उनकी इस कवायद के पीछे दलित वोट बैंक को फिर से एकजुट करना उनका मकसद है।
दलितों के मुद्दे पर मोदी सरकार को बैकफुट पर धकेलने की कोशिश
मायावती ने दलितों के मुद्दे पर इस्तीफा देकर कहीं न कहीं दलितों के मुद्दे पर मोदी सरकार बैकफुट पर धकेलने की एक कोशिश की है। मोदी सरकार की मुश्किलें पहले ही रोहित वेमुला समेत कई मुद्दों ने बढ़ाया था, अब ऐसे हालात में बसपा सुप्रीमो मायावती ने जिस तरह से राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफे का दांव चला है इससे मोदी सरकार की किरकिरी तो होगी ही साथ ही इस मुद्दे पर वो और बुरी तरह से घिर सकते हैं। हालांकि पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने दलितों को खुद से जोड़ने रखने के लिए ही रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनाकर इसकी भरपाई की कोशिश की है। ऐसे हालात में मायावती का ये कदम सरकार की बेचैनी जरूर बढ़ाएगा।
मायावती के इस दांव से विपक्ष को मिलेगी नई ताकत
जिस तरह से मायावती ने सहारनपुर में दलितों के खिलाफ हिंसा का मुद्दा सदन में उठाया और राज्यसभा से इस्तीफा दिया, इससे कहीं न कहीं पूरा विपक्ष एकजुट हो सकता है। कांग्रेस समेत कई दलों ने अलग-अलग इस मुद्दे पर अपना विरोध जताया है, लेकिन बीएसपी सुप्रीमो मायावती के नेतृत्व में इस मुद्दे को उठाए जाने के बाद विपक्ष को भी इस नई धार मिलेगी। अभी तक कई मुद्दों पर बंटा हुआ विपक्ष इस मुद्दे पर फिर से एकजुट हो सकता है। अगर ऐसा होता है तो मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ना तय है।
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