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यूपी चुनाव: बीजेपी के लिए 'चेहरा' है सबसे बड़ी मुश्किल, विरोधियों के मुकाबले धीमी है रफ्तार

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नई दिल्ली। जैसे-जैसे उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, बीजेपी आलाकमान की चिंता बढ़ती जा रही है। 2014 के लोकसभा चुनावों में यूपी की 80 में 71 सीटों पर कब्जा करने वाली बीजेपी विधानसभा चुनावों में पार्टी के लिए चेहरा खोजने में अब तक कामयाब नहीं हो पाई है।

amit shah and narenda modi

दरअसल, लोकसभा चुनाव में बीजेपी के लिए अमित शाह ने चाणक्य की भूमिका निभाई लेकिन दिल्ली और बिहार विधानसभा चुनावों में मिली करारी हार से उनकी रणनीति पर भी सवाल उठे। यूपी चुनाव में बीजेपी के लिए वोट बैंक एकजुट करने के साथ पार्टी के लिए एक चेहरा खोजना और उस पर सब की सहमति बनाए रखना भी बड़ी चुनौती है। हालांकि एक मत यह भी है कि पिछले चुनावों से सबक लेते हुए बीजेपी बिना किसी चेहरे के चुनाव में उतरे।

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क्या है वोट बैंक का गणित
बीजेपी ब्राह्मण वोट बैंक को अपना मानती रही है, लेकिन मायावती ने बीते चुनावों में लगातार इसमें सेंध लगाई। मुस्लिम वोट बैंक जो कि बीजेपी के ज्यादा करीब नहीं है, और सपा सरकार में हुई तमाम घटनाओं को देखते हुए अगर इसका रुख बीएसपी की तरफ होता है तो बीजेपी के लिए यह भी बड़ा झटका होगा। मुस्लिमों का 18 फीसदी वोट बैंक जिस भी पार्टी की ओर जाएगा वह जाहिर है मजबूत होगी। बीजेपी के लिए मुस्लिम वोट बैंक साधना भी बड़ी चुनौती है। अगर मायावती ब्राह्मणों के 12 फीसदी वोट भी हासिल कर लेती हैं तो उनकी स्थिति मजबूत होगी। मायावती इस वोट बैंक को हथियाने के लिए प्रमुख सीटों पर सवर्ण उम्मीदवार उतार सकती हैं।

Rajnath singh narendra modi and amit shah

सपा का असर कम करने के लिए यह दांव
यूपी में ओबीसी वोट बैंक पर सपा का प्रभाव रहा है। बीजेपी ने इस पर जोर चलाने के लिए केशव प्रसाद मौर्य को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के अलावा, बीएसपी से अलग हुए स्वामी प्रसाद मौर्य को भी अपनी तरफ मिला लिया। लेकिन ओबीसी के वोट पाने के लिए भी बीजेपी को मजबूत रणनीति बनानी पड़ेगी। क्योंकि यहां से 30 फीसदी वोट जुटाना भी बड़ा चैलेंज है। क्योंकि मुस्लिम, यादव और जाट कम्युनिटी पर बीजेपी का असर कम है। इसके पीछे बड़ी वजह बीजेपी के पास कोई ऐसा चेहरा न होना भी है, जो सभी समुदायों के बीच लोकप्रिय हो। पूर्वी उत्तर प्रदेश में सपा के प्रभाव को कम करने के लिए बीजेपी ने अनुप्रिया पटेल और महेंद्र नाथ पांडेय को मंत्री बनाकर दांव खेला है।

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राजनाथ सिंह ने किया इनकार, रणनीति पर फिरा पानी
अगर चेहरे की बात करें तो बीजेपी के पास राजनाथ सिंह ही हैं, जिनकी छवि अब तक बेदाग है। यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके राजनाथ सिंह मुलायम सिंह और मायावती के मुकाबले ज्यादा प्रभावी नेता हैं। लेकिन केंद्र में नंबर 2 की हैसियत रखने वाले राजनाथ सिंह यूपी की राजनीति में वापसी के इच्छुक नहीं दिख रहे। इलाहाबाद में हुई पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक से पहले इस बात का अनुमान लगाया जा रहा था कि बीजेपी मंच पर उनके नाम की घोषणा कर सकती है। हालांकि राजनाथ सिंह की सहमति न मिलने की वजह से बीजेपी आलाकमान की रणनीति पर पानी फिर गया।

VARUN GANDHI

इन चेहरों के लिए भी उठी है आवाज
बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक के दौरान इलाहाबाद में वरुण गांधी को सीएम कैंडिडेट घोषित किए जाने की मांग को लेकर पोस्टर लगाए गए। हालांकि बाद में पार्टी आलाकमान ने पोस्टर लगाने वाले कार्यकर्ताओं से जवाब तलब कर लिया। इसी तरह योगी आदित्यनाथ और स्मृति ईरानी को सीएम कैंडिडेट घोषित किए जाने की मांग उठती रही है। लेकिन पार्टी आलाकमान इन चेहरों पर दांव खेलने के मूड में नहीं है। इसकी वजह यह है कि आदित्यनाथ और वरुण गांधी की छवि मुस्लिम विरोधी नेता के तौर पर बन चुकी है और पार्टी इन वोटों को दूर नहीं जाने देना चाहती।

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जब कोई नहीं तो ये होंगे चेहरा...
जब तक बीजेपी यूपी में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के लिए कोई चेहरा नहीं खोज पाती तब तक अमित शाह, नरेंद्र मोदी और राजनाथ सिंह की तिकड़ी ही चुनाव की कमान संभालेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूपी हर महीने यूपी का दौरा करेंगे और इसी रणनीति के तहत अब तक वह इलाहाबाद, सहारनपुर, बरेली और बलिया जैसे शहरों में सभाएं कर चुके हैं। हालांकि बीजेपी की कोशिश है कि 2017 की शुरुआत में ही वह राज्य में बीजेपी के चेहरे का ऐलान कर दे।

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English summary
BJP is struggling with a leadership crisis in uttar pradesh before assembly elections. It may cause a trouble for party in state.
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