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घट रहे हैं अमरनाथ गुफा ले जाने वाले घोड़ा चालक

कश्मीर में शूट हुई फ़िल्मों में ये घोड़े किराए पर लिए जाते थे पर नई पीढ़ी इस पेशे से दूर है.

By माजिद जहांगीर - बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए
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पहलगाम में घोड़े
Majid jahangir
पहलगाम में घोड़े

जब भारत प्रशासित कश्मीर में पहलगाम में 80 के दशक में फिल्म ज़लज़ला की शूटिंग हुई थी तो मोहमद शफी लोन के दो घोड़े फिल्म की टीम ने किराए पर लिए थे.

उन्हें हर दिन पचास रुपए के हिसाब से घोड़े का किराया मिलता था.

शफी बीते चालीस सालों से पहलगाम में घोड़ा चलाने का काम करते हैं.

वह कहते हैं, "वह ज़माना अब कहाँ लौटकर आने वाला. मुझे अभी भी याद है पहलगाम के पचास घोड़े उस समय फिल्म ज़लज़ला की शूटिंग में इस्तेमाल किए गए थे. पहलगाम की हर जगह पर उस फिल्म की शूटिंग हुई थी. फिल्म में धर्मेंद्र, डैनी और राज कपूर थे."

अमरनाथ यात्रा के लिए भी शफी जब पहली बार गुफा गए थे तो उनको उस समय सवारी ने 75 रुपए किराया दिया था और जब तीन साल पहले वह गुफा सवारी ले कर गए तो उन्हें चार हज़ार मिले थे.

पहलगाम
Majid jahangir
पहलगाम

लेकिन अब आलम यह है कि जब मैं सख्त सर्दी और बर्फबारी के बीच पहलगाम पहुंचा तो यहाँ दूर-दूर तक मुझे कोई घोड़ा वाला नज़र नहीं आया.

बहुत तलाश करने के बाद एक जगह पर मुझे कुछ घोड़े वाले नज़र आए जो सर्दी से काँप रहे थे और अंदर शेड में बैठे पर्यटक का इन्तज़ार कर रहे थे.

उनमें से एक नौजवान घोड़े वाले 35 साल के बिलाल अहमद से मेरी मुलाक़ात हुई.

बिलाल ने जो बताया वो बहुत मायूस करने वाला था.

बिलाल अहमद
Majid jahangir
बिलाल अहमद

उन्होंने बताया, "मेरे पिता जी भी घोड़ा चलाने का काम करते थे. वह भी घोड़ा चलाने के काम से न अपना पेट भर सके, न हम को अच्छी पढ़ाई दिला सके. मुझे पढ़ाई छोड़कर काम करना पड़ा. पिता जी ने दूसरा काम किया होता तो शायद हमारी किस्मत बदल जाती."

पहलगाम की एक बड़ी आबादी दशकों से घोड़े चलाने का काम कर रही है.

पहलगाम आने वाले पर्यटक यहाँ घोड़े की सवारी का आनंद लेते हैं. इस समय पहलगाम में करीब 14,000 लोग इस काम से जुड़े हैं.

लेकिन अब नई पीढ़ी घोड़ा चलाने का काम नहीं करना चाहती है.

गुलज़ार अहमद बट्ट जो बीते तीस सालों से यह काम कर रहे हैं अब यह काम नहीं करना चाहते हैं.

गुलज़ार अहमद बट्ट
Majid jahangir
गुलज़ार अहमद बट्ट

वो बताते हैं, "मैं तीन दशकों से घोड़ा चलाने का काम कर रहा हूँ, मेरे पिता , दादा और परदादा भी यही काम करते थे. अगर उनको इस काम से अच्छी कमाई हो पाती तो वह मुझे पढ़ा पाते, मैं आज बड़ा आदमी होता. हम पूरे साल में सिर्फ पचास हज़ार इस काम से कमा पाते हैं. फिर जाड़े के छह महीने घर पर बैठते हैं, इस दौरान तीस हज़ार तो घोड़ा पालने में लग जाते हैं. हम अपने लिए कुछ नहीं बचा पाते हैं."

यहाँ के घोड़े वाले दिन भर में सात सौ कमा पाते हैं, जिसमें से तीन सौ घोड़े के राशन पर खर्च हो जाते हैं.

कश्मीर में बीते 27 साल के ख़राब हालात ने भी इस धंधे को नुक़सान पहुंचाया है.

पहलगाम में घोड़े
Majid jahangir
पहलगाम में घोड़े

पहलगाम घोड़ा और ट्रांसपोर्ट एसोसियशन के मुखिया गुलाम नबी लोन कहते हैं, "कश्मीर में जब1990 में हालात बिगड़ गए थे तो पूरे दस सालों तक यहाँ के घोड़े वालों ने एक पैसा भी नहीं कमाया था. यहाँ कोई पर्यटक नज़र नहीं आता था. साल 2000 के बाद जब कुछ हालात बेहतर होने लगे तो फिर बीच बीच में महीनों हालात ठीक नहीं रहे. अब बीते आठ महीनों से हमारा काम ठप पड़ा है. बीते कुछ सालों में हज़ारों लोगों ने ये काम छोड़ दिया है."

90 की दशक से पहले पहलगाम में बॉलीवुड के फ़िल्मों की शूटिंग हुआ करती थी लेकिन कश्मीर में हथियार बंद आंदोलन शुरू होने के बाद से बॉलीवुड ने कश्मीर आना बन्द कर दिया.

गुलाम नबी उस समय को याद करते हैं, "मुझे आज भी वह वक़्त याद है जब बॉलीवुड फ़िल्मों की यहाँ शूटिंग होती थी. मेरे सामने ज़लज़ला, बेताब ,खून-पसीना के अलावा और भी कई फिल्मों की शूटिंग हुई थी. फ़िल्मों की शूटिंग की वजह से यहाँ के घोड़े वालों को काम मिलता था, अब तो सालों के बाद किसी फिल्म की यहाँ शूटिंग होती है."

गुलाम नबी
Majid jahangir
गुलाम नबी

पहलगाम के रास्ते हर साल अमरनाथ गुफ़ा का दर्शन करने के लिए लाखों यात्री यहां पहुंचते हैं.

बीते कुछ सालों में अमरनाथ श्राइन बोर्ड ने गुफ़ा जाने वाले यात्रियों की तादाद पर लगाम लगाई है.

गुलाम नबी का कहना है कि गुफ़ा जाने वाले यात्रियों की तादाद पर रोक लगने से भी उनका कामकाज प्रभावित हुआ है.

उनका मानना है कि कि अगर श्राइन बोर्ड ने यह कदम नहीं उठाया होता तो घोड़ा चलाने वालों का अच्छा काम मिलता.

BBC Hindi
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English summary
Horse driver decreases at amarnath route.
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