खबरों के शोर में दबा हिन्दी के दो गुरुओं का जन्म दिन
नई दिल्ली(विवेक शुक्ला) हिन्दी जगत के लिए बीता कल और आज खास दिन है। कल हिन्दी के चोटी के चिंतक नामवर सिंह ने 89 वें साल में प्रवेश किया। आज डा. नरेन्द्र मोहन ने 80 वें साल में। पर एपीजे अब्दुल कलाम की मौत तथा याकूब मेमन की फांसी ने इन दोनों को कहीं पीछे धकेल दिया। वैसे भी हिन्दी समाज अपने नायकों के समान नहीं करता।
शिखर पुरुष
हिन्दी के शिखर पुरुष नामवर सिंह जी का कल जन्म दिन था। मगर हिन्दी साहित्य के ही लोग लिख रहे हैं कि 89 वां जन्मदिन, 88 वां जन्मदिन! वैसे तो नामवर जी के जन्म की दो तारीखें किताबों में मिलती हैं मगर वर्ष एक ही है 1927। हिन्दी अखबारों में भी आमतौर पर यही लिखकर भ्रम बढ़ाया जाता है।
लिख रहे हैं
पैदा होने के दिन को भी पहला जन्मदिन मान लेने वाले 89 वां जन्मदिन और पैदा होने के एक साल बाद पहली सालगिरह मानने वाले 88 वां जन्मदिन लिख रहे हैं। मगर हम इस भ्रम से पाठकों को बचाने के लिए- नामवर जी आज 88 साल के हुए लिखने के पक्षधर रहे हैं। इस मुद्दे पर कोई फार्मेट बन जाए इसके लिए ऐसे ही कुछ मौकों पर अखबार में पहले भी लिखा है।
वरिष्ठ पत्रकार शकील अख्तर कहते हैं कि देश के सर्वाधिक चर्चित व्यक्तित्वों में रहने वाले, विचारोत्तेजक आलोचक और हिन्दी के लोकप्रिय गुरुवर के जन्मदिन पर क्या माननीय हिन्दी वाले मित्र इस छोटी सी भाषाई समस्या पर कुछ प्रकाश डालेंगें। बहरहाल, बता दें कि डा. नरेन्द्र मोहन दिल्ली विश्वविद्लाय में दशकों में हिन्दी पढ़ाते रहे। वे उम्दा कहानीकार हैं।