क्या है हिमाचल प्रदेश के CM वीरभद्र सिंह की मुश्किलों की वजह? जानिए CBI क्यों बन गई है सिरदर्द
राजनीति में एकाएक महौल गरमा गया है। कानून से आंख मिचौली का खेल-खेल रहे वीरभद्र सिंह के लिए चुनावी साल में ये फैसला और सीबीआई का ताजा कदम किसी झटके से कम नहीं है।
शिमला। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के लिए शुक्रवार का दिन खासा चुनौतियों भरा रहा। एक ओर दिल्ली हाईकोर्ट ने उनकी ओर से सीबीआई के खिलाफ दायर आपत्तियों को खारिज कर दिया। वहीं जस्टिस विपिन सांघी ने मामले की सुनवाई के दौरान 1 अक्टूबर 2015 को हिमाचल हाईकोर्ट की ओर से पारित अंतरिम आदेशों को रद्द कर दिया। जिसमें सीबीआई को वीरभद्र सिंह के खिलाफ चार्जशीट दायर करने पर रोक लगाई गई थी।
तेजी से घटे घटनाक्रम के बाद सीबीआई ने भी दिल्ली हाईकोर्ट में आय से अधिक संपत्ति के मामले में वीरभद्र सिंह, उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह व अन्य के खिलाफ चार्जशीट भी दायर कर दी। शुक्रवार को सुबह दिल्ली हाईकोर्ट ने जहां शिमला हाईकोर्ट के आदेशों से रोक हटाई, वैसे ही अंदेशा जताया जाने लगा था कि सीबीआई एक दो दिन में अगली कार्रवाई करेगी। लेकिन केंद्रिय जांच एजेंसी ने बिना कोई समय गंवाए अदालत में चार्जशीट भी दायर कर दी । जिससे हिमाचल की राजनीति में एकाएक महौल गरमा गया है। कानून से आंख मिचौली का खेल-खेल रहे वीरभद्र सिंह के लिए चुनावी साल में ये फैसला और सीबीआई का ताजा कदम किसी झटके से कम नहीं है।
आय से अधिक संपत्ति के मामले में फंसे हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और उनके परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ सीबीआई ने बीते साल आरोपपत्र को अंतिम रूप दे दिया था। लेकिन हिमाचल हाईकोर्ट की रोक के चलते सीबीआई के हाथ बंधे थे। हालांकि जांच के दौरान सीबीआई को कुछ ऐसे दस्तावेज मिले हैं, जिससे ये साफ होता है की केंद्रीय मंत्री के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान वीरभद्र सिंह ने गलत तरीके से कम से कम 10 करोड़ रुपए की संपत्ति जुटाई। एजेंसी ने ये आरोप लगाते हुए पिछले साल प्राथमिकी दर्ज कर जांच शुरू की थी की सिंह ने केंद्रीय मंत्री के तौर पर 2009-2012 के अपने कार्यकाल के दौरान अपने परिवार के सदस्यों के नाम पर तकरीबन 6.03 करोड़ रुपए की संपत्ति जमा की। लेकिन जांच के बाद सीबीआई ने डंके की चोट पर ये दावा किया की वीरभद्र सिंह ने तकरीबन 10 करोड़ रुपए ही जमा किए हैं।
सीबीआई सूत्रों ने बताया की एक साल तक चले जांच के निष्कर्षों में कहा गया है की निवेश, बिना गारंटी का ऋण, संपत्ति और शेयर खरीदकर संपत्ति को छिपाने की बेजोड़ कोशिश की गई ताकि ज्ञात स्रोत से मिले पैसों का सच किसी को भी पता न चल सके। सीबीआई सूत्रों ने बताया की दस्तावेजों का विस्तृत फॉरेंसिक विश्लेषण और सिंह के सहयोगियों के कंप्यूटरों का विस्तृत साइबर फॉरेंसिक विश्लेषण उस कथित साजिश को दर्शाता है जिसमें फर्जी कंपनियों के जटिल जाल के जरिए रियल एस्टेट में धन का निवेश किया गया है। प्राथमिकी में सिंह, उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह, एलआईसी एजेंट आनंद चौहान और चुन्नी लाल चौहान का नाम था। हालांकि सीबीआई के आरोपों का वीरभद्र सिंह खंडन करते रहे हैं। लेकिन अब आरोप पत्र अदालत में दायर होने के बाद वीरभद्र सिंह को राजनीतिक मोर्चे पर भी अपने विरोधियों से मुकाबला करना होगा।
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