छोटे कद वालों की ऊँची उड़ान
असम के एक ऐसे नाट्य ग्रुप की कहानी, जिसमें शामिल हैं 22 बौने कलाकार. क्या है उनकी कहानी.
कभी-कभी मां बाहर जाने से मना करती है. गांव के लोग मां से पूछते हैं कि बेटी दूर-दूर शूटिंग करने कहां जाती है? ऐसे में मैं मां से बोली कि दूसरों की बात मत सुनो. 39 साल की सिबरीना देमारी अपनी मां की चिंता इन्हीं शब्दों में बयां करती हैं.
वो असम के नाट्य ग्रुप दापून : द मिरर से जुड़ी हैं. ये एक ऐसा नाट्य समूह है जिसमें 22 कलाकार बौने हैं.
सिबरीना कहती हैं, " जब नाटक नहीं करती थी तो घर में बैठे-बैठे सोचती थी कि भगवान ने सिर्फ हमें ही ऐसा क्यों बनाया. लेकिन नाटक में आए तो अपने जैसे इतने सारे कम कद वाले लोग देखे. नाटक करने के बाद अब दिल में कोई तकलीफ़ नहीं लगती."
दरअसल बौने लोगों का नाट्य समूह बनाने की शुरुआत 2008 में हुई थी. नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के छात्र रहे पवित्र राभा ने 2008 से 2011 तक असम के अलग अलग इलाक़ों में ऐसे लोगों की खोज की.
इस दौरान उन्हें 70 ऐसे लोग मिले, लेकिन उसमें से केवल 30 ही नाटक करने के लिए तैयार हुए.
पवित्र राभा कहते हैं, " इनको और इनके घरवालों को नाटक करने के लिए मनाना बहुत मुश्किल था. बहुत तरह के डर थे जैसे सर्कस में तो नहीं ले जाएगें या फिर हमारा क्या स्वार्थ है. ऐसा इसलिए है क्योंकि हम लोग बौनों के साथ सामान्य आचार व्यवहार तक नहीं करते."
साल 2011 में असम के टांगला में पवित्र ने इन 30 लोगों के साथ मिलकर 45 दिन की वर्कशाप की.
चलिए बौने लोगों के 'ओलंपिक खेलों' में
जहां कर्मचारी से लेकर कलाकार सभी बौने हैं
इस वर्कशाप में 40 साल के नयन डिगमारी भी शामिल थे. वो बताते हैं, " लोग छतों पर चढ़कर हमें झांक-झांक कर देखते थे कि आखिर इतने सारे छोटे कद के लोग अंदर कर क्या रहे हैं. तब वर्कशाप के थोड़े दिन बाद लोगों की जिज्ञासा मिटाने के लिए हमारे पास आम लोगों को आने और सवाल करने का समय दिया जाता था."
बाद में इस नाट्य समूह ने अपना पहला शो टांगला में ही किया.
नाटक का नाम था, 'किनू कौ' यानी क्या कहे, जो बौने लोगों की ही कहानी है. इसके बाद से यह ग्रुप दिल्ली, मुंबई, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में अपनी प्रस्तुतियां दे चुका है.
यह ग्रुप अमिताभ बच्चन के शो 'आज की रात है ज़िंदगी' में भी मेहमान बन चुका है.
अमिताभ बच्चन से अपनी मुलाकात को याद करते हुए दसवीं के छात्र गणेश बासुमुत्रे कहते हैं, "अमिताभ बच्चन को देखकर लगा कि कितने लंबे आदमी हैं. अपने सर (पवित्र राभा) और अमिताभ बच्चन को देखकर मेरी आंखों से आंसू आ गए. ऐसा लगा जैसे अमिताभ मेरे दिल में घुस गए हों और धड़कने लगे हों. मैं उनसे नहीं मिल पाता अगर अच्छा नाटक नहीं करता."
नाटक से इन लोगों के जुड़ाव से सिर्फ प्रोफेशनल सफलता ही नहीं मिली बल्कि व्यक्तिगत जीवन भी बदल गया.
आत्मविश्वास और खुशी तो सबके जीवन में आई. लेकिन 30 साल की तोरासोना मोहिलारी के लिए ये बहुत ख़ास था. 12 वीं तक पढ़ी तोरासोना को यहीं अपना जीवनसाथी मिला. 2011 की वर्कशाप में उनकी मुलाकात नयन डिगमारी से हुई.
तोरासोना बताती हैं, "नयन ने मेरे सामने शादी का प्रस्ताव रखा, पहले तो मैं तैयार नहीं हुई. लेकिन बाद में शादी कर ली. अब अच्छा लगता है,जीवन भरा-पूरा लगता है."
नाटे हैं तो क्या हुआ, पेंशन वाले हैं!
इस ग्रुप में 12 से 45 साल की उम्र तक के कलाकार हैं. इनमें से ज्यादातर कलाकार असम के उदालगुड़ी ज़िले के जलाह गांव में रहते हैं.
दरअसल पवित्र राभा ने गांव में पांच एकड़ ज़मीन पर बौने कद के इन लोगों की दुनिया बसाई है. ये लोग खेती करके, दुकान चलाकर, दूसरों की जमीन पर खेती करके अपना जीवन बसर कर रहे हैं.
इसके अलावा पवित्र राभा फ़िल्मों में भी काम करते हैं. उन्होंने 'मैरीकॉम' और 'टैंगो चार्ली' में काम किया है. अभी वो विक्रमादित्य मोटवाने निर्देशित फ़िल्म 'भावेश जोशी' में काम कर रहे हैं.
जहां इनमें से बहुत से कलाकारों को उनके घरवालों ने किनारा कर लिया है, वहीं 20 साल की तूलिका दास जैसी खुशकिस्मत भी हैं. ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रही तूलिका का सपना है कि वो फ़िल्मों में एक्टिंग करें. इसके लिए उनके घरवाले भी उन्हें प्रोत्साहित करते हैं.