'कार्रवाई ऐसी हो जो नक्सलियों की नाक में दम कर दे'
अब पूरा देश कह रहा है बस अब और नहीं। केवल कायराना हमला करार देने और बैठकों से बात नहीं बनेगी। देश सटीक कार्रवाई चाहता है और कार्रवाई भी ऐसी जो नक्सलियों की नाक में दम कर दे।
नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ के सुकमा की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। अब पूरा देश कह रहा है बस अब और नहीं। केवल कायराना हमला करार देने और बैठकों से बात नहीं बनेगी। देश सटीक कार्रवाई चाहता है और कार्रवाई भी ऐसी जो नक्सलियों की नाक में दम कर दें। सोशल मीडिया पर लोग जहां सुकमा में शहीद हुए जवानों को सलाम कर रहे हैं वहीं नक्सलियों पर कार्रवाई की मांग भी उठ रही है। मंगलवार को गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने रायपुर में कहा कि सीआरपीएफ जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। हांलाकि सरकार किस तरह की कार्रवाई करने वाली है इस पर उन्होंने कोई बात नहीं की। सोशल मीडिया पर जोर- शोर से ठोस कार्रवाई की मांग उठ रही है।
सोशल मीडिया पर संवेदनाओं के साथ गुस्सा भी
वरिष्ठ पत्रकार पत्रकार शेखर गु्प्ता ने अपने ट्वीट में नेताओं पर गुस्सा जाहिर किया है. उन्होंने लिखा है कि शोकपूर्ण, कायरतापूर्ण, निंदनीय जैसे शब्दों का लगातार इस्तेमाल कर नेता हमें बीमार कर रहे हैं. इस समय जिन शब्दों का महत्व है वो हैं जिम्मेदारी और जवाबदेही. लेकिन ये शब्द हम कभी नहीं सुनते।
कांग्रेस नेता तहसीन पूनावाला ने भी राज्य सरकार पर गुस्से का इजहार किया है. उन्होंने लिखा कि इस घटना में अपने 24 वीर जवानों की शहादत के बाद अब समय आ गया है कि छत्तीसगढ़ में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए.
कांग्रेस के नेता संजय निरूपम ने जवानों को श्रंद्धाजलि देते हुए लिखा है कि सरकार को अतिवामपंथी समूहों को खत्म करने के लिए सारे कदम उठाने चाहिए।
फिल्म डायरेक्टर अशोक पंडित ने लिखा है कि सुकमा का हमला सुरक्षा व्यवस्था में जबरदस्त चूक का उदाहरण है. 300 माओवादी हमारे जवानों पर हमला करते हैं और हम अनभिज्ञ पकड़े गए।
ट्वीटर पर कई सेलेब्रेटीज और नेताओं ने संवेदनाओं के साथ गुस्से का भी इजहार किया है. लोगों ने अपने ट्वीट्स में संवेदनाओं के साथ सरकार पर कार्रवाई न करने के लिए गुस्सा जाहिर किया है. लोग कह रहे हैं कि सरकार को इन जवानों की शहादत को यूं ही नहीं जाने देना चाहिए।
क्या अब सेना के जरिए ही नक्सलियों का 'इलाज' हो पाएगा?
देश के पूर्व गृह सचिव एलसी गोयल के मुताबिक बस्तर में अब सेना की छावनी स्थापित की जानी चाहिए। उन्होंने यह सुझाव अपने कार्यकाल के दौरान 2015 में ही दिया था। इस प्रस्ताव के मुताबिक सेना का नक्सलियों के गढ़ में कोई सीधा रोल नहीं होगा, सेना की मौजूदगी सिर्फ नक्सलियों पर दबाव बनाने के लिए इस्तेमाल की जाएगी।इससे इलाके के विकास का रास्ता खुलेगा और साथ ही कनेक्टिविटी भी सुधरेगी।सुरक्षा मामलों के जानकार मानते हैं कि आर्मी की तैनाती अब वाकई जरूरी हो गई है। उनका मानना है कि पुलिस और सीआरपीएफ इलाके में नक्सलियों का डटकर मुकाबला कर रहे हैं और ऐंटी-नक्सल ऑपरेशन्स में उन्हें काफी कामयाबी भी मिली है, पर चूंकि अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे नक्सली छटपटाहट में अब बड़े हमले कर रहे हैं, ऐसे में सेना की मौजूदगी भर ही उन्हें पीछे धकेलने के लिए काफी होगी।
नक्सली घटनाओं पर नहीं लग रही लगाम
पिछले 5 साल में नक्सली हिंसा की 5960 घटनाएं हुई हैं. इनमें 1221 नागरिक, 455 सुरक्षाकर्मी और 581 नक्सली मारे गए है. नोटबंदी के बाद माना जा रहा था कि नक्सलियों की कमर टूट गई है, लेकिन सुकमा की घटना ने एक बार फिर नक्सल हिंसा को सुलगा दिया है. बताया जा रहा है कि पुलिस की ग्राउंड इंटेलिजेंस कमजोर पड़ती जा रही है।
सरकार सबक क्यों नहीं लेती?
सरकार भी ऐसे हमलों से सबक नहीं लेती. वो सेफ़ प्ले करना चाहती है. वो सोचती है कि कौन इस लड़ाई में पड़े, केंद्रीय बल इसमें लगाए गए हैं, उन्हें लड़ने दिया जाए. सरकारी अफ़सर सोचते हैं कि डेवलपमेंट का पैसा आ रहा है और वो उसे खाने-पीने में लगे रहते हैं.10 से 15 प्रतिशत अफ़सर अभी भी ऐसे हैं जो ईमानदारी से काम कर रहे हैं, लेकिन एक बड़ी तादाद ऐसे अफ़सरों की है जिन पर सख़्ती करने की ज़रूरत है.ऐसे अफ़सर अपनी जान बचा लेते हैं और जवानों को मरवा देते हैं.ये बड़े दुर्भाग्य की बात है कि अभी तक माओवादियों से निपटने की नीति को परिभाषित करने का कोई प्रयास नहीं हुआ।
प्लानिंग के तहत हुआ था हमला
छत्तीसगढ़ के सुकमा में नक्सलियों ने अपने बड़े घातक हमले में 25 सीआरपीएफ के जवानों को शहीद कर दिया है. इस हमले में 6 जवान जख्मी हैं और उनकी हालत नाजुक है. ये नक्सली हमला पूरी तरह से नियोजित था और इसे करीब 300 नक्सलियों ने अंजाम दिया. जिस वक़्त हमला हुआ, उस वक़्त दक्षिणी बस्तर के सुकमा में 99 सीआरपीएफ के जवान सड़क बना रहे मजदूरों की सुरक्षा में जुटे थे. ये इलाका नक्सलियों का गढ़ माना जाता है।