ग्रामीण भारत का विद्युतीकरण?
18452 गांवों के विद्युतीकरण के लिए प्रधानमंत्री की 1000 दिनों की समय सीमा मई 2018 में समाप्त हो रही है। अब तक, 13598 गांव (लक्ष्य का 74%) विद्युतीकरण किया जा चुका है।
नई दिल्ली। स्वतंत्रता दिवस 2015 के अवसर पर अपने दूसरे राष्ट्र के संबोधन में, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वादा किया कि उनकी सरकार 1000 दिनों के अंदर देश में सभी 18,452 बिना बिजली वाले गांवों का विद्युतीकरण करेगी। ऊर्जा मंत्रालय ने पूरे देश में सातों दिन चौबीसों घंटे बिजली प्रदान करने का वादा किया है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए, सरकार को न केवल उत्पादन क्षमता में विस्तार की जरूरत है बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युत आपूर्ति के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे के निर्माण की भी आवश्यकता है।
ज़मीनी स्तर पर काम
लाल किले पर साहसिक वादा करने से कुछ हफ्ते पहले, प्रधानमंत्री ने औपचारिक रूप से दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (डीडीयूजीजेवाई) की शुरुआत की। ग्रामीण विद्युतीकरण के लिए यह योजना सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है। समस्त ग्रामीण विद्युतीकरण का लक्ष्य हासिल करने के उद्देश्य से शुरू किए गए इस कार्यक्रम में केंद्र सरकार की पूर्व की पहल राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण जैसी योजना इसमें समाहित हो गई। डीडीयूजीजेवाई के तहत प्रमुख पहल के रूप में देश भर में फीडर लाइन को अलग करना है। 2006 में गुजरात में एक विवादास्पद योजना के रूप में ज्योति ग्राम योजना के माध्यम से इसे क्रियान्वित किया गया जिसमें फीडर को अलग करने से गुजरात ने राज्य में ग्रामीण विद्युत आपूर्ति के परिवर्तन में सफलता पाई।
जीएआरवी पोर्टल
इस लेख में, हम जीएआरवी पोर्टल पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आंकड़ों का संक्षिप्त विश्लेषण करेंगे। पोर्टल प्रगति पर वास्तविक अपडेट प्रदान करके नीति निर्माण - सार्वजनिक जवाबदेही और पारदर्शिता का एक महत्वपूर्ण आयाम सुनिश्चित करता है। स्मार्ट फोन या इंटरनेट के साथ कोई भी नागरिक ग्रामीण विद्युतीकरण की प्रगति पर नज़र रख सकता है। जहाँ प्रत्येक विद्युतीकृत गांव की विस्तृत जानकारी दी गई है जिसमें विद्युतीकरण की तारीख, स्थानीय लाइनमेन का विवरण, लगाए गए खम्भे की तस्वीरें आदि शामिल हैं। यह सरकार द्वारा दावा किए गए कुल आंकड़ों और समग्र प्रगति की जांच का अवसर देता है। कई पत्रकारों और शोधकर्ताओं ने पोर्टल पर जारी आँकड़ों के साथ जमीनी हकीकत का मिलान करने का प्रयास किया है। सौभाग्य से, सरकार विसंगतियों के संशोधन मामले में करने में ग्रहणशील रही है। हाल ही में, ग्रामीण घरों को बिजली कनेक्शन प्रदान करने की प्रगति को शामिल करके पोर्टल का विस्तार किया गया है।
1000 दिनों के लक्ष्य पर निरंतर प्रगति
18452 गांवों के विद्युतीकरण के लिए प्रधानमंत्री की 1000 दिनों की समय सीमा मई 2018 में समाप्त हो रही है। अब तक, 13598 गांव (लक्ष्य का 74%) विद्युतीकरण किया जा चुका है। हम देख सकते हैं कि डीडीयूजीवाई के अंतर्गत विद्युतीकृत गांवों में औसत वार्षिक वृद्धि आरजीजीवीवाई से काफ़ी कम है। 2005 और 2012 के बीच देश भर में करीब 1 लाख से अधिक गांवों का विद्युतीकरण किया गया था। आरजीजीवीवाई के तहत औसत वार्षिक वृद्धि पिछले दो वर्षों की तुलना में काफ़ी अधिक थी।
हालांकि, इन आंकड़ों की तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि अविद्युतीकृत गांवों के प्रकार में बहुत भिन्नता है। शायद यही कारण रहे होंगे कि ये 18,000 गांव विशेष रूप से आरजीजीवीवाई के तहत अविद्युतीकृत रहे। इस प्रकार के गांव अपेक्षाकृत दुर्गम या दूरदराज के हैं जिसमें अधिक प्रयासों की आवश्यकता रही होगी। उदाहरण के तौर पर, 7,200 से अधिक अविद्युतीकृत गांव वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई) प्रभावित जिले में स्थित हैं और सरकार ने इनमें से 5930 को पहले ही विद्युतीकृत कर दिया है। इस प्रकार, डीडीयूजीवाई के अंतर्गत कम वार्षिक वृद्धि अप्रत्याशित नहीं होगी।
सरकार की भूमिका गांवों में आवश्यक बिजली आपूर्ति के लिए बुनियादी ढांचा बनाने और उन्हें ग्रिड से जोड़ने पर ही समाप्त नहीं होती है। गांव के भीतर सभी घरों और बस्तियों को बिजली उपलब्ध कराई जानी चाहिए। 17.9 करोड़ परिवारों के विद्युतीकरण के कुल लक्ष्य में से अब तक 13.4 करोड़ परिवारों (74%) का विद्युतीकरण किया जा चुका है। देश के 6.04 लाख गांवों में से केवल 1.65 लाख गांवों (27%) में सभी घरों में विद्युतीकरण किया जा सका है।
निष्कर्ष
सातों दिन चौबीसों घंटे बिजली का सपना पूरा करने के लिए, ऊर्जा मंत्रालय को यह सुनिश्चित करना होगा कि उत्पादन क्षमता भी धीरे-धीरे बढ़े। जैसे-जैसे आपूर्ति बुनियादी ढांचे का विस्तार होगा, मांग में वृद्धि स्वाभाविक है और हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि हमारी उत्पादन क्षमता उसीप्रकार बढ़े। एक स्थिति के बाद, केंद्र का विद्युतीकरण विस्तार में सीमित भूमिका है क्योंकि विद्युत आपूर्ति का काम राज्यों द्वारा किया जाता है। इस प्रकार, केंद्र और राज्य के द्वारा किए गए साझा प्रयासों में सामंजस्य पर बहुत कुछ निर्भर करता है। मोदी सरकार द्वारा उदय (यूडीएवाई) कार्यक्रम के तहत डिस्कॉम के ऋण को कम करने के उद्देश्य से हाल के प्रयासों के इस संबंध में बेहद मददगार होने की संभावना है।
नितिन मेहता, रणनीति परामर्श और अनुसंधान के प्रबंध पार्टनर हैं। प्रणव गुप्ता एक स्वतंत्र शोधकर्ता हैं।