चुनाव आयोग ने पूछा- वर्ष 2012 में सरकार ने बजट देर से पेश करने के लिए किन नियमों का किया पालन
भारतीय चुनाव आयोग ने केंद्रीय सचिवालय से इस बावत जानकारी है कि आखिर वर्ष 2012 में बजट देर से पेश करने के लिए सरकार ने किसी प्रकियाओं का पालन किया था और कौन से नियम अपनाए थे।
नई दिल्ली। भारतीय चुनाव आयोग ने केंद्रीय सचिवालय से इस बावत जानकारी है कि आखिर वर्ष 2012 में बजट देर से पेश करने के लिए सरकार ने किसी प्रकियाओं का पालन किया था और कौन से नियम अपनाए थे। आपको बताते चले कि केंद्र सरकार के 1 फरवरी, 2017 को बजट पेश करने के फैसले के खिलाफ विपक्षी दल राष्ट्रपति, चुनाव आयोग तक में अपनी शिकायत दर्ज करा चुके हैं। विपक्षी दलों को कहना है कि मतदान से ठीक तीन दिन पहले बजट पेश किए जाने से रोका जाना चाहिए और लेखानुदान पेश किया जाना चाहिए।
वहीं दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट आम बजट पेश करने की तारीख आगे बढ़ाने को लेकर दायर याचिका पर अब 20 जनवरी को सुनवाई करेगा। याचिका में कहा गया है कि पांच राज्यों में चुनाव के बाद आम बजट पेश किया जाए। सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका मनोहर लाल शर्मा ने दी है। बीते साल दिंसबर में सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका की अर्जेंट सुनवाई से इनकार कर दिया था। याचिका में मांग की गई थी कि बजट मार्च के बाद पेश किया जाना चाहिए। चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि वह मामले की सुनवाई तय समय में करेगी।
चुनाव आयोग को लिखी थी चिट्ठी मनोहर लाल शर्मा ने कहा, 'मैंने याचिका में यह कहा था कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट बजट पेश करने पर रोक लगा दे। क्योंकि चुनाव के दौरान जनता को कई तरह समस्याएं झेलनी पड़ सकती हैं। हालांकि कोर्ट ने कहा कि वह अपने आधार पर समय तय करके सुनवाई करेगा।' इसके पहले मंगलवार को कैबिनेट सचिवालय ने चुनाव आयोग को पत्र लिखकर जानकारी मांगी थी कि बजट पेश करने या इसे आगे बढ़ाने को लेकर विपक्षी पार्टियों का क्या रुख है। सरकार ने साफ किया है कि बजट पूरे देश का होगा सिर्फ कुछ राज्यों का नहीं है। केंद्र पर विपक्ष का निशाना विपक्षी पार्टियां आरोप लगा रही हैं कि केंद्र सरकार बजट के जरिए वोटरों को लुभाने की कोशिश कर सकती है। बता दें कि नए बजट की वजह से 1 अप्रैल से कई तरह के बदलाव लागू हो जाएंगे। केंद्र सरकार पर विपक्ष ने निशाना साधा है कि बजट में योजनाओं की घोषणा करके सरकार वोटरों को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश कर सकती है और वोटर भी सरकार के कामकाज के ब्यौरे से प्रभावित हो सकते हैं। Read more at:बजट पेश करने की तारीख आगे बढ़ाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में होगी सुनवाई
पूर्व
चुनाव
आयुक्त
ने
कहा-
वोटिंग
के
बाद
बजट
पेश
होगा
तो
कुछ
बिगड़
नहीं
जाएगा
चुनाव
आयोग
के
पूर्व
प्रमुख
एसवाई
कुरैशी
ने
कहा
कि
चुनाव
के
समय
बजट
न
पेश
किया
जाए
तो
कोई
बहुत
बड़ा
नुकसान
नहीं
होने
वाला।
उन्होंने
कहा
कि
अगर
सरकार
ने
पहले
ही
आयोग
को
इस
बात
की
जानकारी
दी
होती
तो
शायद
इसे
लेकर
बेहतर
तरीके
से
प्लानिंग
हो
सकती
थी।
सरकार ने अगर चुनाव आयोग को बताया होता तो इस बर चर्चा के जरिए बेहतर सामाधान निकाला जा सकता था। कुरैशी ने कहा कि अगर चुनाव के पहले या बाद में बजट पेश किया जाता है तो कुछ बिगड़ेगा नहीं। उन्होंने कहा, 'मेरे कार्यकाल में दो बार ऐसा हुआ जब बजट राज्यों के चुनाव के एकदम पास था। साल 2008 में नॉर्थ-ईस्ट के तीन राज्यों में चुनाव होने थे लेकिन तब किसी ने इसे मुद्दा नहीं बनाया। साल 2012 में सरकार में सरकार ने खुद ही बजट की तारीख को आगे बढ़ा दिया था।'
'लोक राज ही नहीं लोक लाज की भी चिंता हो' इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में एसवाई कुरैशी ने कहा कि सरकार आसानी से यह काम कर सकती है। लेकिन आयोग चुनाव के समय राज्यों में नियमों के तहत चीजें लागू करता है। राज्य और केंद्र के बजट में ज्यादा फर्क नहीं होता। उन्होंने कहा, 'हमें आदर्श आचार संहिता को बरकरार रखने की जरूरत है। निष्पक्षता बनी रहनी चाहिए। एक सीनियर नेता (देवी लाल) ने कहा था- लोगों को लोक राज की ही नहीं लोक लाज की भी फिक्र करनी चाहिए।'
उन्होंने कहा कि नियमावली के 7वें चैप्टर में यह लिखा है कि चुनाव के समय ऐसी घोषणा योजना की शुरुआत नहीं की जानी चाहिए जिससे पार्टियों को नुकसान हो। बजट पेश करना इसी कैटेगरी में आएगा। 'धर्म के नाम पर मांगे जा रहे वोट' चुनाव आयोग के पूर्व प्रमुख ने कहा कि बजट को चुनाव के बाद भी पेश किया जा सकता है। इसमें कोई परेशानी की बात नहीं है। लेकिन पहले बजट आने से वोट प्रभावित हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान सिर्फ वही कहा जो कानूनन लिखा है। यह आने वाले अंजाम का अच्छा रिमांइडर भी है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को बेहतर पता है कि यहां क्या होना चाहिए। कुरैशी ने कहा कि राज्यों में जिस तरह धर्म के नाम पर वोट मांगे जा रहे हैं वह भी चिंता की बात है।
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