कश्मीर के लिए डोवाल का फॉर्मूला-पत्थरबाजों पर सेना रहेगी सख्त, नरमी की उम्मीद न करें महबूबा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जम्मू कश्मीर मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को पत्थरबाजों पर कड़ा संदेश देने की तैयारी में। सरकार का रुख साफ कश्मीर में पत्थरबाजों पर नरमी नहीं बरतेगी सेना और सुरक्षाबल।
नई दिल्ली। कश्मीर के पत्थरबाजों से निबटेन के लिए सरकार और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोवाल ने कड़ा रुख अख्तियार कर लिया है। रविवार को जब जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती नीति आयोग की मीटिंग से अलग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करेंगी तो निश्चित तौर पर वह सरकार के कड़े रुख के बारे में उनको भी बता देंगे।
सेना या अर्धसैनिक बल नहीं पड़ेंगे नरम
सरकार का इरादा साफ है कि कश्मीर में सेना और अधैसैनिक बल किसी भी कीमत पर पत्थरबाजों के साथ नरमी नहीं बरतेंगे। सरकार यह साफ कर देना चाहेगी कि राज्य सरकार, केंद्र सरकार से यह उम्मीद न रखे कि वह सेना और सुरक्षाबलों को ऐसा करने के आदेश देगी। इससे साफ है कि सरकार कश्मीर के हालातों का सामना करने के लिए एनएसए अजित डोवाल के नीति को लागू कर चुकी है। डोवाल ने कह चुके हैं, 'ज्यादा प्रतिक्रिया देने की जरूरत नहीं है। यह वक्त बीत जाएगा क्योंकि पत्थरबाज ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाएंगे।' डोवाल का मानना है कि इस समय हर किसी को संतुष्ट करने या फिर खुश करने की नीति प्रभावी नहीं रह पाएगी। उन्होंने अपनी इस बात को पीएम मोदी के साथ हुई कई मीटिंग में साफ कर दिया है। वह पीएम को साफ कर चुके हैं कि इस समय घाटी के राष्ट्रविरोधी तत्वों के लिए नरम रवैया अपनाने का कोई मतलब नहीं है। सरकार की ओर से राज्य सरकार को साफ कर दिया जाएगा कि पत्थरबाजों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। बीजेपी गठबंधन सरकार में उभरे कुछ मुद्दों पर बात करने के लिए तैयार है लेकिन वह इस मुद्दे पर हरगिज राजी नहीं है कि सेना या फिर अर्धसैनिक बलों को पत्थरबाजों के खिलाफ नरम रवैया अपनाना होगा।
डोवाल का नजरिया
केंद्र सरकार का कहना है कि उसने अलगाववादी नेताओं से बात करने की कई कोशिशें की हैं लेकिन वह अपनी जिद पर अड़े हैं। वे पाकिस्तान की लाइन पर ही चलना चाहते हैं और घाटी के हालातों को तनावपूर्व बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। हालांकि केंद्र सरकार साफ कर चुकी है कि राज्य सरकार अगर चाहे तो अलगाववादी ताकतों से बातचीत कर सकती है। एनएसए अजित डोवाल का मानना है कि वर्ष 1947 से हर किसी को खुश करने की नीति राज्य की बड़ी समस्या बन चुकी है। वर्ष 2010 में जब घाटी में पत्थरबाजी हुई तो उस समय भी डोवाल का मानना था कि इन तत्वों पर ज्यादा प्रतिक्रिया देने की जरूरत नहीं है क्योंकि से ज्यादा दिन क नहीं टिक पाएंगे। उनका मानना है कि फिलहाल इस समय पाकिस्तान से आए तत्वों को घाटी से बाहर निकालने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए न कि संयुक्त राष्ट्रसंघ की ओर से हम देखें। डोवाल ने वर्ष 2010 और फिर 2016 में कहा था कि घाटी में विरोध प्रदर्शनों की वजह सिविल सोसायटी का आगे बढ़ना नहीं है। बल्कि यह पाकिस्तान का एक एजेंडा है ताकि कश्मीर में हिंसा भड़कती रहे। डोवाल ने पत्थरबाजों पर बल प्रयोग की भी तरफदारी की है क्योंकि कई बार पत्थरबाजों का रवैया किसी को खत्म कर देने वाला होता है। हालांकि उन्होंने निर्दोष लोगों पर बल प्रयोग की बात को गलत बताया है।