नौ गोलियों के बाद भी कश्मीर लौटने को बेकरार हैं सीआरपीएफ कमांडेंट चीता
नौ गोलियां झेलने और बुरी तरह से जख्मी होने के बाद भी सीआरपीएफ कमांडेंट चेतन चीता कश्मीर में लौटने के ख्वाहिशमंद। कहा घाटी जाकर अधूरा काम पूरा करने की इच्छा।
नई दिल्ली। सीआरपीएफ कमांडेंट चेतन कुमार चीता, वही चेतन चीता जो आज कई युवाओं के लिए आदर्श बन गए हैं, फिर से कश्मीर लौटना चाहते हैं। अगर आपको याद नहीं है कि चेतन चीता कौन हैं तो आपको बता दें कि यह सीआरपीएफ के वहीं जाबांज हैं जिन्होंने बांदीपोर एनकाउंटर में नौ गोलियां झेली थीं। बुरी तरह से घायल होने के बाद भी उन्होंने तीन आतंकियों का सफाया किया था।
चीता को याद आता है कश्मीर
चेतन चीता की मानें तो वह कश्मीर को बहुत मिस करते हैं। उनका कहना है कि इस समय कश्मीर को उनकी जरूरत है। उन्हें वहां पर होना चाहिए। चीता सीआपीएफ की कोबरा (कमांडो बटालियन रेसॉल्यूट एक्शन) का हिस्सा बनना चाहते हैं। कोबरा सीआरपीएफ की कमांडो यूनिट है। उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया, 'इतनी गोलियां लगने के बाद भी मैं यहां पर बैठा हूं और मीडिया से बात कर रहा है तो इसका मतलब यह है कि अभी कुछ काम है जो अधूरा है। और ऐसा इसलिए है क्योंकि मैं स्पेशल हूं।' एक माह कोमा में रहने के बाद अब सीआरपीएफ कमांडेंट चीता स्वस्थ हो रहे हैं। दो माह तक वह एम्स में भर्ती थे। जो नौ गोलियां उन्हें लगी थीं उनमें से एक सिर पर लगी थी। फरवरी में जम्मू कश्मीर के बांदीपोर में हुए एनकाउंटर में उन्हें सिर के अलावा जबड़े और आंख में काफी गंभीर चोट आई थी।
पत्थरबाजों पर चीता की राय
कश्मीर में सुरक्षाबलों पर पत्थरबाजी के बारे में जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने इसका भी जवाब दिया। चीता से पूछा गया था कि एक अभिभावक होने के नाते वह कश्मीर के उन युवाओं के साथ कैसे पेश आते तो उनका जवाब था कि गोलियां चलाने से बचना होगा। चेतन चीता को श्रीनगर से एयरलिफ्ट करके एम्स में भर्ती कराया गया था। जिस समय उन्हें एम्स लाया गया था वह बहुत ही नाजुक स्थिति में थे। जिन डॉक्टरों ने उनका इलाज किया उनका कहना है कि चेतन चीता ने लगातार दृढ़ निश्चय और साहस का परिचय दिया और इसकी वजह से ही उन्हें दो माह तक कोमा में रहने के बाद भी इस लड़ाई को जीतने की ताकत मिली।