यादें- नरसिंह राव की मौत से भी नहीं पसीजा था कांग्रेसियों का दिल
नई दिल्ली(विवेक शुक्ला) अब केन्द्र सरकार पीवी नरसिंह राव का राजधानी में स्मारक बनाने के संबंध में गंभीर है। इस अवसर पर बहुत से लोगों को याद आ रहा है वह मंजर जब 23 दिसम्बर 2004 में राव साहब की मौत हुई थी। उस दिन उनके बंगले पर मुश्किल से 300 लोग भी नहीं थे। उनमें भी कांग्रेस का तो शायद ही कोई बड़ा नेता हो। हां, मनिंदर सिंह बिट्टा जरूर वहां थे।
राव से अकारण दूरियां बनाने वाले कांग्रेसी उनके बंगले में उन्हें अंतिम विदाई देने के लिए आने से भी कतरा रहे थे। वहां पर कुछ देर के लिए मनमोहन सिंह आए थे। उनके अलावा कांग्रेस के किसी नेता ने आने की जहमत नहीं उठाई थी।
इस नाचीज पत्रकार को भी उस दिन राव के बंगले में जाने का मौका मिला था। कई सालों के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री आई.के.गुजराल ने कहा था कि राव साहब के प्रति कांग्रेस का इस तरह का ठंडा रुख शोभनीय नहीं रहा।
शख्सियत का मूल्यांकन
वरिष्ठ पत्रकार सुनील सौरभ ने कहा कि राव साहब को 11 साल के बाद उनका हक मिलेगा। हालांकि देश को उनकी शख्सियत का अभी कायदे से मूल्यांकन करना है। देश में लाइसेंस राज की समाप्ति और भारतीय अर्थनीति में खुलेपन उनके प्रधानमंत्रित्व काल में ही आरम्भ हुआ। वे ही मनमोहन सिंह को देश के वित्त मंत्री के रूप में लेकर आए। हालांकि कहने वाले कहते हैं कि राव के प्रधानमंत्री बनने में भाग्य का बहुत बड़ा हाथ रहा है।
विद्वान प्रधानमंत्री
एक दौर में कांग्रेस के दिग्गज नेता मनिंदर सिंह बिट्टा राव साहब के बेहद करीबी थे। वे कहते हैं कि इतना बेहतरीन और विद्वान प्रधानमंत्री देश को फिर नहीं मिलेगा। बता दें कि देश में आर्थिक उदारीकरण के जनक और पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी.नरसिंह राव को उनकी मृत्यु के लंबे अरसे के बाद देश सही सम्मान देने जा रहा है। अब उनका एक स्मारक राजघाट के करीब बने एकता स्थल समाधि परिसर पर बनेगा।