बर्दवान ब्लास्ट और मदरसों को क्या है कनेक्शन
कोलकाता। पश्चिम बंगाल के बर्दवान जिले में हुए ब्लास्ट्स की जांच से जो कुछ भी सामने आ रहा है और आएगा उससे एक बात तो साफ है कि यह ब्लास्ट बिना स्थानीय मदद के संभव नहीं हो सकते थे।
मुर्शिदाबाद मॉड्यूल पर एनआईए का ध्यान
ब्लास्ट्स की जांच में लगी एनआईए का ध्यान अब मुर्शिदाबाद मॉड्यूल पर गया है। एनआईए को जमात-उल-मुजाहिद्दीन की 58 ऐसी फैक्ट्रीयों का पता लगा है जो बम का निर्माण करती है।
यह संगठन बांग्लादेश का है और इसकी 43 फैक्ट्रियां अकेले मुर्शिदाबाद में हैं। इस जांच में एक और रोचक पहलू जो सामने आ रहा है उसके मुताबिक इस संगठन के ताल्लुक एक मदरसे इस्लामी छात्र शिबिर से हैं।
इस मदरसे ने न सिर्फ इस संगठन को भारत में दाखिल होने में मदद की बल्कि इस मदरसे ने कुछ महिला सदस्यों को खासतौर पर फिदायीन हमलावारों के तौर पर नियुक्त करने में मदद भी की।
खास बात है कि यह वही मदरसा है जिसका संबंध सीधे तौर पर तमिलनाडु के संगठन अल-उम्माह से है।
2010 से मौजूद खतरा
एनआईए की ओर से जो जांच की जा रही है उसमें कई चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं। यह जांच इस ओर भी इशारा करती है कि पश्चिम बंगाल के कई हिस्सों में संगठन की कई शाखाएं मौजूद हैं।
पश्चिम बंगाल के कई चुनिंदा हिस्सों में संगठन संचालित हो रहा है और इसकी मुख्य इकाई मुर्शिदाबाद में है। यह इकाई वर्ष 2010 से इस राज्य के कई आतंकियों के लिए अहम गढ़ बन गई है।
इसका संचालन वर्ष 2010 में प्रयोजित किया गया था। इस्लामी छात्र शिबिर मदरसा की ओर से मिली मदद की वजह से इस संगठन ने पश्चिम बंगाल में अपनी जड़ें जमाईं और 2011 के अंत से इसने काम करना शुरू कर दिया। एनआईए की मानें तो तब से लेकर अब तक करीब 180 बांग्लादेशी नागरिक इस योजना का हिस्सा बन चुक हैं।
एनआईए की रिपोर्ट
इसके संचालन में जो व्यक्ति सबसे खास था उसका नाम अनीसुर बताया जाता है। यह वही व्यक्ति है जिसने राज्य में सभी कैडर्स के लिए रहने का इंतजाम किया था।
अनीसुर
पश्चिम
बंगाल
के
कई
स्थानीय
नेताओं
का
काफी
करीबी
है
और
इस
वजह
से
ही
उसके
काम
में
काफी
मदद
मिली
और
उसने
इस
बात
को
सुनिश्चित
किया
कि
सभी
कैडर्स
के
छिपने
के
लिए
सुरक्षित
स्थान
का
इंतजाम
भी
हो
सके।
वहीं एनआईए के मुताबिक जमात-उल-मुजाहिद्दीन जो वर्ष 2010 से ही सक्रिय है, उसने घरों को अपने लिए चुनना शुरू किया और साथ ही कई तरह के बिजनेस भी स्थापित किए, जिन्होंने इसे काफी मदद पहुंचाई।
बांग्लादेशी नागरिकों को मिल गए भारतीय पासपोर्ट
शकील के केस इस बात की ओर साफ इशारा मिलता है। शकील बरूआ में कपड़ों का व्यवसाय करता है। अपने बिजनेस की आड़ में उसने कई तरह के हथियारों को जमा किया और यहां तक की बाहर भी पैसा भेजा।
एनआईए ने गृह मंत्रालय को जो रिपोर्ट भेजी है उसमें भी एक स्थानीय नेता की इस संगठन से जुड़े होने की बात कही गई है।
एनआईए के मुताबिक अब वह मुर्शिदाबाद ग्राम पंचायत के भी कई अधिकारियों पर नजर रखेगी जिन्होंने पिछले कई वर्षों में करीब 100 बांग्लादेशी नागरिकों को दस्तावेज जारी किए।
ऐसे नागरिक जिनके इस आतंकी संगठन से जुड़े होने का शक है। इन दस्तावेजों की मदद से ही इन नागरिकों को वोटर आई कार्ड यहां तक कि पासपोर्ट तक जारी हो गए। इनकी मदद से इन नागरिकों ने कई तरह के गैरकानूनी काम किए और यहां तक की काफी बड़ी राशि को बाहर के देशों में भी भेजा।
मदरसा का अहम रोल
एनआईए की रिपोर्ट पर यकीन करें तो पश्चिम बंगाल के कई मदरसों ने इस संगठन की मजबूत भूमिका में अहम रोल अदा किया है। संगठन के कई सदस्यों को न सिर्फ इस मदरसे ने सहारा दिया बल्कि इन मदरसों के घरों में ही कई तरह के हथियारों को भी छिपाकर रखा गया।
कुछ केसों में तो खेती की जमीनों को भी खरीदा गया और उन्हें औने-पौने दामों पर बेचा गया ताकि इन पर और मदरसों को निर्माण हो सके। एनआईए के मुताबिक संगठन के कुछ सदस्यों की भर्ती इस्लामी छात्र शिविर की ओर से की गई।
एनआईए की ओर से मिली इस जानकारी के बाद अब चिंताएं दोगुनी हो गई हैं क्योंकि यही संगठन तमिलनाडु के अल-उम्माह संगठन के लिए भी लोगों की भर्ती कर रहा है। यह इस जांच में एक अहम कड़ी के तौर पर सामने आ रही जानकारी है जिससे पता चलता है कि पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में मौजूद ऑपरेटिव्स के इससे संबंध हैं।