तो एनडीए को बिहार चुनाव में मिलेंगी 132 सीटें यानी खिलेगा कमल
पटना (मुकुंद सिंह)। बिहार विधानसभा चुनाव में निर्दलीय एंव तीसरे मोर्चे के उम्मीदवारों द्वारा वोट काटने की आशंका का लाभ उठाते हुए भाजपा 132 सीटों पर जीत के साथ बहुमत की सरकार बनाने की ओर अग्रसर है। यह दावा है चुनाव एंव सामाजिक मुद्दों पर सर्वेक्षण करने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्थाप्लेटफार्म फॉर इलेक्शन एनेलेसिस एंड कम्युनिटी स्टडीज (पेस) के चुनाव पूर्व सर्वेक्षण का।
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जिस के अनुसार 2015 के बिहार विधानसभा चुनावों में त्रिशंकु विधानसभा के आकलन के तमाम राजनीतिक विश्लेषणों को गलत साबित करते हुए राजग गठबंधन 127 से 137 विधानसभा सीटें जीतकर स्पष्ट बहुमत की सरकार बनाएगी। पेस ने बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से दो तिहाई सीटों अर्थात 162 पर रेंडम सैम्पलिंग की है। इस सर्वे की खास बातों पर पढ़ने के लिए नीचे की स्लाइडों पर क्लिक कीजिये...
200 मतदाताओं पर सर्वे
यह सर्वे विभिन्न जातियों एंव वर्गों के प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र के 200 मतदाताओं पर 10 सितम्बर से 7 अक्तूबर के बीच किये गये हैं।
एनडीए को फायदा
पेस मीडिया रिसर्च कंपनी ने बताया कि विभिन्न राजनीतिक दलों से बागी हुए निर्दलीय उम्मीदवार, वाम मोर्चा, सपा और राकांपा का तीसरा मोर्चा, साधु यादव का जनाधिकार मंच, बसपा एंव ओवैसी बंधुओं की एआईएमआईम समूचे बिहार में इस बार के चुनाव में 29 से 31 प्रतिशत तक मतों का विभाजन अपने पक्ष में करेंगे जिसका पूरा-पूरा लाभ भाजपा के नेतृत्व वाले राजग गठबंधन को मिलेगा।
132 सीटें मिलने की संभावना
हालांकि एनडीए पिछले वर्ष के लोक सभा चुनाव की तुलना में लगभग साढ़े तीन प्रतिशत कम वोट मिलेंगे लेकिन इसके बावजूद उसे स्पष्ट बहुमत के लिए आवश्यक 122 सीटों से 10 सीटें अधिक अर्थात 132 सीटें मिलने की संभावना है।
महज 89 से 99 सीटों तक सिमट जाने के संकेत
तो जदयू-राजद-कांग्रेस गठबंधन की स्थिति कुछ कमजोर होती दिखाई दे रही है और उसके महज 89 से 99 सीटों तक सिमट जाने के संकेत हैं। जदयू-राजद-कांग्रेस गठबंधन को इस चुनाव में राजग गठबंधन से लगभग दो प्रतिशत कम मत मिलने की संभावना है और उनके 33 से 35 प्रतिशत मतों के साथ 89 से 99 तक सीटें जीतने के आसार हैं।
केवल वोट काटने वाले
निर्दलीय एंव तीसरे मोर्चे के दलों के वोटों का प्रतिशत तो इन चुनावों में 29 से 31 प्रतिशत तक रहेगा लेकिन सीटें उन्हें सिर्फ 12 से 22 ही हासिल होंगी। पेस के आंकड़ां के अनुसार तीसरा मोर्चा, तमाम छोटे दल एवं दोनों प्रमुख गठबंधनों के प्रभावशाली बागी नेता केवल वोट काटने वाले साबित होंगे।
सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा रोजगार
इन चुनावों में बिहार के लोगों के लिए सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा रोजगार है और 32.5 प्रतिशत लोग इस मुद्दे को राज्य के लिए सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं। दूसरी तरफ बिजली की आपूर्ति और कानून और व्यवस्था की स्थिति राज्य के लोगों के लिए कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। जहां कानून और व्यवस्था की स्थिति 10.5 प्रतिशत लोगों के लिए चुनावी मुद्दा है वहीं विद्युत आपूर्ति सिर्फ 8.5 प्रतिशत लोगों के लिए चुनावी मुद्दा है।
नीतीश-लालू की दोस्ती नहीं भायी
नीतीश और लालू के हाथ मिलाने से आम मतदाता नाराज दिखाई दिया और चुनाव में 53 प्रतिशत लोगों का मानना है कि इनके गठबंधन का राज्य में नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। 25 प्रतिशत लोग इस गठबंधन को राज्य के लिए अच्छा भी मानते हैं।
मोदी इफेक्ट
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ अभी भी उपर होने की ओर संकेत करते हुए 18 से 35 वर्ष के युवा वर्ग में 47.5 प्रतिशत मतदाताओं ने उन्हें देश का सर्वाधिक लोकप्रिय नेता माना जबकि 25 प्रतिशत युवाओं ने नीतीश कुमार को लोकप्रिय नेता माना।
नीतीश कुमार सबसे चहेते
बिहार के मुख्यमंत्री पद के लिए नीतीश कुमार आज भी लोगों के सबसे चहेते उम्मीदवार हैं। 40 प्रतिशत लोग उन्हें फिर से मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं जबकि 12.5 प्रतिशत लोग भाजपा के सुशील मोदी को और 6.5 प्रतिशत लोग भाजपा के ही नंदकिशोर यादव को मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं।
भागवत का बयान बना मुसीबत
आरक्षण के मुद्दे पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान का राज्य के चुनाव में भाजपा को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है क्योंकि 30% लोग इसे भाजपा के लिए नुकसानदेह और 24.5% लोग इसे राजद के लिए फायदेमंद मानते हैं।
उल्टी पड़ी लालू की बयानबाजी
इस मुद्दे की काट में भाजपा एवं उसके सहयोगी दलों के लिए संजीवनी बूटी का काम लालू प्रसाद के गौमांस के मुद्दे पर दिए बयान ने किया और 28.5% लोगों का मानना है कि लालू के बयान ने राजद का नुकसान करा दिया। जबकि 31.5% लोगों के अनुसार लालू के बीफ पर दिए इसी बयान ने भाजपा को लाभ पहुंचाया है।
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