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BJP से मिलकर नीतीश ने मारी अपने पैरों पर कुल्हाड़ी, होंगे ये 4 बड़े नुकसान

एनडीए में वापसी से जहां नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री की कुर्सी दोबारा मिली है, वहीं इसके लिए उन्हें एक बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ी है।

By Dharmender Kumar
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नई दिल्ली। बिहार में पिछले दिनों चले लंबे सियासी घमासान के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ मिलकर अपनी सरकार बचा ली। भाजपा के समर्थन से सरकार बनाने के साथ ही नीतीश की एनडीए में भी वापसी हो गई। एनडीए में वापसी से जहां नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री की कुर्सी दोबारा मिली, वहीं इसके लिए उन्हें एक बड़ी कीमत भी चुकानी पड़ी है। नीतीश कुमार के एनडीए में जाने से उन्हें 4 बड़े नुकसान हुए हैं।

दफन हुआ पीएम बनने का ख्वाब

दफन हुआ पीएम बनने का ख्वाब

बिहारी में महागठबंधन के टूटने से पहले तक सियासी गलियारों में यह चर्चा जोर-शोर से थी कि नीतीश कुमार 2019 में विपक्ष की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर उतर सकते हैं। एनडीए में शामिल होने के साथ नीतीश कुमार ने परोक्ष रूप से प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पूरी तरह से नरेंद्र मोदी को सौंप दी है। चूंकि 2019 में नरेंद्री मोदी ही एनडीए के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे, इसलिए नीतीश के इस कदम से उनका पीएम बनने का सपना फिलहाल दफन हो गया है। अब नीतीश कुमार केवल बिहार तक ही सीमित रहेंगे

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सिद्धांतवादी नेता की छवि को धक्का

सिद्धांतवादी नेता की छवि को धक्का

नीतीश के एनडीए के साथ जाने से उनकी सिद्धांतवादी नेता की छवि को धक्का लगा है। 2013 में उन्होंने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाए जाने पर 'सिद्धांतों से समझौता नहीं' कहकर भाजपा से संबंध तोड़ लिए थे। अब उन्होंने यह कहकर कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी लड़ाई से समझौता नहीं कर सकते, आरजेडी और कांग्रेस से संबंध तोड़कर फिर से भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली।

छिन गया बड़े भाई का दर्जा

छिन गया बड़े भाई का दर्जा

नीतीश कुमार जब एनडीए का हिस्सा थे तो उन्हें बड़े भाई का दर्जा मिला हुआ था। 2010 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू को चुनाव लड़ने के लिए कुल 243 सीटों में से 141 सीटें मिली, जबकि भाजपा को महज 102 सीटें ही मिली। 2015 में दोनों अलग-अलग चुनाव लड़े और भाजपा ने 157 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, जबकि महागठबंधन में शामिल नीतीश को महज 101 सीटें चुनाव लड़ने के लिए मिलीं। 2009 के लोकसभा चुनाव में भी बिहार की 40 सीटों में से 25 भाजपा ने नीतीश कुमार को दी। आने वाले चुनावों में नीतीश को इस तरह ज्यादा सीटें मिलने की संभावना कम ही है। फिलहाल बिहार के 40 में से 31 सांसद एनडीए के हैं, जिनमें अकेले भाजपा के 22 एमपी हैं। ऐसे में 2019 में नीतीश को काफी कम सीटों पर सिमटना होगा।

टूट गई मजबूत छवि

टूट गई मजबूत छवि

बिहार में लालू प्रसाद यादव के साथ मिलकर सरकार बनाने के बाद नीतीश ने संघ मुक्त भारत की बात कही थी। 'कांग्रेस मुक्त भारत' के जवाब में नीतीश ने भाजपा की विचारधारा का विरोध करते हुए खुले मंच से 'संघ मुक्त भारत' का नारा दिया था। इससे विपक्ष में नीतीश की एक अलग छवि बनी थी। नीतीश को अब अपने इस नारे को त्यागना होगा। एनडीए में रहते हुए वो कभी संघ के खिलाफ नहीं बोल पाएंगे। सेक्युलर ब्रिगेड के नेताओं में भी नीतीश का कद काफी हद तक घट गया है।

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English summary
Bihar CM Nitish Kumar will have to face four big losses after alliance with BJP.
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