जयललिता के राजनीतिक जीवन के बारे में स्वामी ने किए कई बड़े खुलासे
जयललिता के बारे में सुब्रमण्यम स्वामी ने किए कई बड़े खुलासे, अम्मा के राजनीतिक सफर के दौरान के कई रहस्यों का किया है खुलासा
नई दिल्ली। तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता का 5 दिसंबर को देर रात निधन हो गया, उनकी लोकप्रियता को पूरे तमिलनाडु में साफ देखा जा सकता है, उनकी अंतिम यात्रा में लाखों लोग उन्हें देखने और विदाई देने के लिए सड़कों पर उमड़ पड़े हैं।
बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि भाजपा के नेता सुब्रमण्यम स्वामी को अम्मा राष्ट्रपति के तौर पर देखना चाहती थी। खुद स्वामी ने यह बात पत्रकार डीपी स्वामी को एक साक्षात्कार के दौरान बताई थी।
अम्मा की इन 20 योजनाओं के बाद लोगों ने दिया देवी का दर्जा
जयललिता
काफी
बहादुर
महिला
थीं
स्वामी
बताते
हैं
कि
वह
अम्मा
से
पहली
बार
1982
में
मिले
थे।
उस
वक्त
एमजीआर
प्रदेश
के
मुख्यमंत्री
थे,
जयललिता
ने
उसी
वक्त
राजनीति
में
कदम
रखा
था।
हम
एक
दूसरे
को
34
साल
से
जानते
थे।
वह
काफी
बुद्धिमान
व्यक्ति
थी,
उनके
पास
बहुत
ज्ञान
था।
वह
एक
कद्दावर
और
बहादुर
महिला
थी।
शशिकला
निभाती
थी
दुश्मन
की
भूमिका
जयललिता
मेरी
बुद्धिमत्ता
की
बहुत
सराहना
करती
थी,
वह
मेरी
जानकारी
और
क्षमताओं
को
सम्मान
देती
थी।
लेकिन
शशिकला
नटराजन
ने
मेरे
लिए
उनके
सम्मान
को
खत्म
कर
दिया
था।
शशिकला
का
जयललिता
पर
पूरी
तरह
से
नियंत्रण
था,
जब
भी
हम
करीब
आते
थे
और
गठबंधन
की
ओर
बढ़ते
थे
तो
शशिकला
उसे
नष्ट
कर
देती
थीं।
व्यक्तिगत
जीवन
में
जयललिता
खुश
नहीं
थी
और
वह
पूरी
तरह
से
शशिकला
के
प्रभाव
में
थीं।
16
मुख्यमंत्री
जिनका
निधन
बतौर
सीएम
रहते
हुआ
1980
के
दौर
में
मैं
और
जयललिता
राज्यसभा
के
सदस्य
थे,
उन्होंने
एक
और
दो
अच्छे
भाषण
दिए
थे,
लेकिन
बतौर
संसद
सदस्य
के
कार्यकाल
के
दौरान
उनके
पास
कुछ
खास
व्यक्तिगत
उपलब्धि
नहीं
थी।
1997
में
मेरे
घर
आई
थीं
जयललिता
1996
में
जब
एआईएडीएमके
का
पतन
हुआ
तो
वह
मेरे
घर
1997
में
आई
थी
और
पार्टी
को
फिर
से
खड़ा
करने
में
मेरी
मदद
मांगी
थी।
जिसके
बाद
मैंने
उनकी
अपील
को
स्वीकार
किया
और
हमने
एक
गठबंधन
किया।
1998
के
लोकसभा
चुनाव
में
मैं
मदुरई
से
जीता,
जयललिता
ने
वाजपेयी
सरकार
के
साथ
आने
का
फैसला
लिया
जयललिता
ने
लिया
था
वाजपेयी
सरकार
को
गिराने
का
फैसला
जयललिता
चाहती
थीं
कि
वाजपेयी
मुझे
वित्त
मंत्री
बनाया
जाए,
इसपर
एशियन
एज
ने
एक
लेख
भी
लिखा
था,
लेकिन
ऐसा
हो
नहीं
सका,
जिसकी
वजह
से
जयललिता
बहुत
दुखी
थी,
जिस
वजह
से
उन्होंने
सरकार
गिराने
का
फैसला
लिया
था।
उन्होंने
दरकिनार
किया
जाना
बिल्कुल
पसंद
नहीं
था।
जयललिता मुझसे हमेशा कहती थी वाजपेयी की सरकार की गिराना है, मैंने उनसे ऐसा कुछ भी जल्दबाजी में नहीं करने को कहा, लेकिम मैं कुछ कर नहीं सका। मैंने उनसे कहा था कि अगर वाजपेयी की सरकार गिरती है तो उन्होंने सोनिया से डील करनी पड़ेगी, वह उसके लिए भी तैयार थी। जिसके बाद मैंने जयललिता की की सोनिया से टी पार्टी कराई और वाजपेयी सरकार गिर गई।
सोनिया
ने
जयललिता
को
दिया
था
धोखा
सोनिया
गांधी
ने
जयललिता
को
धोखा
दिया,
लेकिन
मैं
उसकी
वजह
का
खुलासा
नहीं
करना
चाहता
हूं।
इस
फैसले
के
बाद
डीएमके
ने
एनडीए
में
शामिल
होने
का
फैसला
लिया
और
जयललिता
केंद्र
और
राज्य
में
सत्ता
से
बाहर
हो
गई
थीं।
यह
उनके
लिए
बहुत
ही
खराब
अनुभव
था।
लेकिन
2001
में
एक
बार
फिर
से
जयललिता
सत्ता
में
आई
और
तमिलनाडु
में
सरकार
बनाई।
2007
में
मेरे
पास
फिर
आईं
थीं
जयललिता
हमारे
बीच
कई
बार
टकराव
हुआ
क्योंकि
शशिकला
ने
मुझपर
कई
आरोप
लगाया,
वह
जयललिता
को
हमेशा
मेरे
खिलाफ
भड़काया
करती
थीं।
2007
में
फिर
से
जयललिता
मेरे
पास
आई
थीं,
वह
चाहती
थीं
कि
मैं
राष्ट्रपति
बनूं,
लेकिन
मैंने
इनकार
कर
दिया
था,
मैंने
कहा
था
कि
मेरे
पास
हार्वर्ड
विश्वविद्यालय
में
पढ़ाने
की
जिम्मेदारी
है।
मैं
अपने
जीतने
को
लेकर
भी
आश्वस्त
नहीं
था,
क्योंकि
कई
राजनीतिक
दल
मुझसे
घबराते
थे।
मुश्किल
है
ओ
पन्नीरसेल्वम
के
लिए
मुझे
लगता
है
एआईएडीएमके
जयललिता
के
जाने
के
बाद
बिखर
जाएगी,
ओ
पन्नीरसेल्वम
सरकार
नहीं
चला
पाएंगे,
क्योंकि
शशिकला
उन्हें
आगे
बढ़ने
नहीं
देंगी।
एआईएडीएमके
के
30
फीसदी
विधायक
थेवर
समुदाय
से
हैं
जिससे
पन्नीरसेल्व
और
शशिकला
हैं,
जबकि
70
फीसदी
लोगे
थेलवर
समुदाय
से
नहीं
हैं।
ऐसे
में
आने
वाले
समय
में
पन्नीरसेल्वम
के
लिए
काफी
मुश्किल
आने
वाली
है।