भगत सिंह को क्रांति के रंग में ही रंगे रहने दीजिए 'क्रांतिकारियों'
भगत सिंह आज भी कागजातों में आतंकी हैं। क्या पीएम मोदी, भगत सिंह के प्रपौत्र से किया वादा निभाएंगे या वो कांग्रेस जिसने भगत सिंह के पूर्ण स्वराज के मुद्दे को चुरा लिया वो आगे आएगी?
बात बीते साल 2016 के अप्रैल की है, जब एक किताबी जिन्न निकला। जिन्न कुछ यूं था कि दिल्ली विश्वविद्यालय की एक किताब में भगत सिंह को आतंकवादी करार दिया गया था। इसके बाद यह बवाल विश्वविद्यालय की क्लास से संसद तक गया तो लोकसभा में अनुराग ठाकुर ने यह मामला उठाते हुए कहा था कि किताब में भगत सिंह को 'आतंकी' बताया गया है। आखिर स्कूल-कॉलेज में कौन सा इतिहास पढ़ाया जा रहा है?
स्मृति ईरानी ने इसे अकादमिक हत्या बताया था। स्मृति ईरानी ने तंज कसते हुए कहा था, 'यदि भगत सिंह को आतंकी नहीं कहने पर मुझे कोई असहिष्णु कहता है तो मैं यह तमगा लेने को तैयार हूं।'
कई सवाल उठने लाजिमी
यह बात आई-गई और फिर निपट गई। निपटी कुछ इस तरह कि इसे भुला ही दिया गया। सारी बात उठकर कांग्रेस, वामपंथ और तमाम अन्य सत्ता विरोधी विचारों पर आकर अटक गई। आज जब कि हम जरूरत से ज्यादा सोशल हो चले हैं और इस देश में राष्ट्रवाद अपने चरमोत्कर्ष पर है जिसका परिणाम यह निकल कर आ चुका है कि शहीद-ए-आजम भगत सिंह उनके साथी सुखदेव और राजगुरू का शहीदी दिवस 23 मार्च की जगह 14 फरवरी बताया जाने लगा है। तो कई सवाल उठने लाजिमी है।
कागजों में क्यों आतंकी ही हैं भगत सिंह और बाकी साथी
अपने आप में सबसे बड़ा सवाल यह है कि आज भी भगत सिंह और उनके अन्य साथी कागजातों में आतंकी क्यों हैं? हमसे बेहतर तो पाकिस्तान है, जिसे याद कर हम हर वक्त अपने राष्ट्रवाद को नई उचाईयां देते हैं, उसने लाहौर में भगत सिंह के नाम पर चौक बनाया। वहां की अदालत लोगों को शहीद-ए-आजम से जुड़े कार्यक्रम करने की आजादी और सुरक्षा दोनों देता है। यहां एक सवाल जहन में उठना बेशक लाजिम है कि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब पंजाब के गांव में जाकर इन तीन आजादी के दिवानों के चित्रपट का उद्घाटन करते हैं, तो क्या वो किसी आतंकी का चित्रपट है? इस देश की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जम्मू और कश्मीर में बीते साल 8 जुलाई को सुरक्षा कर्मियों की कार्रवाई में मारा गय बुरहान वानी 'शहीद' कहलाता है और भगत सिंह आतंकी?
नुमाइंदों को उठाना चाहिए सवाल
हमारे तमाम नुमाइंदों को यह सवाल जरूर उठाना चाहिए कि किस हक से देश के तमाम चौराहों पर कमर में पिस्तौल, सिर पर हैट लगाए इस शख्स की मूर्ति क्यों खड़ी करा दी है? जब वो शख्स इन सरकारों के लिए सिर्फ आतंकी है? जब एक शख्स जिसने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के एक राष्ट्रीय आह्वान पर 11-12 साल की उम्र में कापी-किताब छोड़ कर पंफलेट बांटने चला गया और आप उसे आज भी आतंकी बता रहे हैं तो क्या उसके शहीद दिवस सरकारी रुपया फूंक कर तमाम माइक मंच और माला का इंतजाम करते हैं?
भगत सिंह के प्रपौत्र ने कहा था...
ये सारे सवाल सिर्फ आज की सरकार से नहीं है। ये सवाल उनसे भी है जो इससे पहले सत्ता में थे। एक निजी समाचार चैनल को भगत सिंह के प्रपौत्र यादवेंद्र सिंह संधू ने बीते साल 2016 में बताया था कि ' जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब मैंने भगत सिंह को शहीद घोषित करवाने के बारे में उनसे गांधी नगर में मुलाकात करके समर्थन मांगा था। उन्होंने भरोसा दिया था कि केंद्र में भाजपा की सरकार आई तो वह भगत सिंह को शहीद का दर्जा दिला देंगे। अब उनकी सरकार के दो साल से अधिक हो चुके हैं लेकिन इस बारे में कार्रवाई आगे नहीं बढ़ी है।'
कांग्रेस ने मुद्दा ही चुरा लिया
यह बहुत ही दुखद है एक ओर तो खुद पीएम मोदी अपने हर वादे को पूरा करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं दूसरी ओर यह एक काम जो शायद ही अध्यादेश का मोहताज हो उसे करने के लिए किस चुनाव का इंतजार है? यूं तो यह सवाल सिर्फ मोदी से नहीं किया जाना चाहिए, उस कांग्रेस से भी सवाल हो जिसने भगत सिंह के पूर्ण स्वराज के विचार को चुरा कर लाहौर अधिवेशन में इससे जुड़ी घोषणा कर दी थी। सवाल बंगाल में 30 साल तक शासन करने वाले वामदलों के समक्ष भी है कि आज वो जिस भगत सिंह को अपनाने को आतुर हैं।
भगत सिंह और बाकी साथियों को मिले उचित सम्मान
वामदल ने चे ग्वेरा के साथ भगत सिंह को खड़ा कर दिया। संघ के विद्यार्थी परिषद ने भगत सिंह का साफा भगवा कर दिया और कांग्रेस ने तो हूबहू मुद्दे चुरा लिए। आज जब हम भगत सिंह की 86 वीं पुण्य तिथि मना रहे हैं। सोशल मीडिया पर लिख पढ़ रहे हैं, ऐसे में यह जरूरी है कि भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव सरीखे तमाम क्रांतिकारियों का उचित सम्मान दिया जाए। भगत सिंह और उनके साथियों का राजनीतिकरण बंद हो। उन्हें भगवा, लाल और किसी दूसरे किसी रंग में रंगने से बचा जाए और उन पर से आतंकी का तमगा हटाया जाए।
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