नोटबंदी के बीच एक बैंकर ने बताया अपना अनुभव, सोशल मीडिया में हुआ वायरल
एक महिला बैंकर ने नोटबंदी के बाद की स्थिति को लेकर फेसबुक पर एक पोस्ट लिखा। जिसमें उन्होंने एक बैंककर्मी के तौर पर तत्कालीन स्थिति को बयां करने की कोशिश की।
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर को नोटबंदी का ऐलान करते हुए 500 और 1000 रुपये के नोटों पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस फैसले के बाद बैंकों में नोट जमा कराने और बदलने को लेकर लोगों की जबर्दस्त भीड़ देखने को मिली थी। मोदी सरकार के इस फैसले का असर आम लोगों पर हुआ। इस दौरान कई लोगों की जान तक चली गई थी, कई लोगों का व्यापार प्रभावित हुआ। नोटबंदी के इस फैसले का असर केवल आम लोगों पर ही नहीं हुआ, बैंक में काम करने वालों को भी इस फैसले ने प्रभावित किया। ऐसी ही एक महिला बैंकर ने नोटबंदी के बाद की स्थिति को लेकर फेसबुक पर एक पोस्ट लिखा। जिसमें उन्होंने एक बैंककर्मी के तौर पर तत्कालीन स्थिति को बयां करने की कोशिश की। नोटबंदी के बीच उनका ये फेसबुक पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे ने उनकी स्टोरी को शेयर किया। जिन महिला बैंकर ने ये खास पोस्ट लिखी वो अहमबाद से थी। उन्होंने बताया कि कैसे उन्हें नोटबंदी के पहले दिन लोगों को गुस्से को झेलना पड़ा। इस दौरान बैंककर्मियों को लेकर कोई खास निर्देश नहीं दिया गया था। उनके मुताबिक वो दिन किसी डरावने सपने से कम नहीं था। फेसबुक पर लिखी महिला बैंकर की पोस्ट इस प्रकार है...
नोटबंदी का फैसला बैंककर्मियों के लिए उस तरह से चौंकाने वाला था, जैसा कि आम लोगों के लिए था। हम इससे जुड़ी समस्याओं और ऐसे हालात को लेकर बिल्कुल भी तैयार नहीं थे। वरिष्ठ अधिकारियों की ओर से हमें बस यही निर्देश मिला था कि हमें शांति बना के रखनी है, भले ही ग्राहक कितने भी गुस्से में क्यों न हों। मुझे याद है नोटबंदी के बाद बैंक में मेरा पहला दिन, जब बैंक के बाहर करीब एक किलोमीटर तक लोगों की लाइन लगी हुई थी। उस दिन मुझे लग रहा था जैसे मैं किसी लड़ाई के मैदान में खड़ी हूं। आने वाले दिनों में हालात तब और बिगड़ने लगे जब नए नियम और निर्देश आने लगे। इस बीच उन्हें रोजाना 1500 से 1600 लोगों को अटेंड करना पड़ता था। इसमें उनके आईडी प्रूफ, फॉर्म की जांच करना, पुराने नोट लेना, नए नोट देना जैसे कई काम थे। बैंककर्मियों ने कभी इतने ज्यादा लोगों की इतने कम समय में सेवा नहीं की थी। इस दौरान अराजक माहौल में कई बार कैशियर नोटों की गिनती पर भी ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता था। हालांकि इस दौरान कुछ लोगों का रवैया काफी मिलनसार रहा। उन्होंने मानवीयता के आधार पर सहयोग किया। हालांकि कुछ लोग हम पर नाराज भी हुए। हम पर टिप्पणी करते कि आप बस एसी में बैठिए और कुछ करने की जरूरत नहीं है। इस दौरान हमें खाने-पीने का, सेहत का ख्याल तक नहीं रहा। इस दौरान काम बहुत ज्यादा था जिसकी वजह से देर रात तक काम करना पड़ा। इन सबके के बीच आरबीआई की ओर से नोट निकालने की लेकर भी निर्देश आ रहे थे। नोट निकालने की सीमा तय होने की वजह से लोगों के गुस्से का शिकार उन्हें बनना पड़ता था। इसे भी पढ़ें:- 12 साल के मासूम पार्थ के लिए मसीहा बने पीएम नरेंद्र मोदी
महिला
बैंकर
ने
बताया
कि
इस
दौरान
उच्च
वेतन
वाले
समूह
ज्यादा
खराब
व्यवहार
करते
थे,
जबकि
कम
वेतन
वाले
समूहों
का
रवैया
सहयोगात्मक
था।
महिला
बैंकर
ने
बताया
कि
उनकी
बैंक
की
एक
ब्रांच
पिछड़े
इलाके
में
थी।
जहां
एक
दिन
बैंक
में
जब
महिला
कर्मचारी
ही
थे,
कोई
पुरुष
कर्मचारी
नहीं
था
कुछ
लोग
बैंक
के
बाहर
जमा
हो
गए।
वो
नशे
में
थे,
उन्होंने
दरवाजा
तोड़ने
की
कोशिश
की।
हालात
को
देखते
हुए
बैंककर्मियों
ने
तुरंत
मामले
की
सूचना
पुलिस
को
दी।
उन्होंने
बताया
कि
बैंक
के
बाहर
हालात
गंभीर
हैं,
हिंसा
की
संभावना
है।
हालांकि
पुलिस
की
ओर
से
सहयोग
नहीं
मिला
और
ये
बेहद
डरावना
था।
फिलहाल
इस
हालात
में
गनीमत
यही
थी
कि
कुछ
गलत
नहीं
हुआ।
कुल
मिलाकर
नोटबंदी
के
दौरान
एक
बैंककर्मी
के
नाते
हमें
बिल्कुल
अलग
अनुभव
से
गुजरना
पड़ा।
मुझे
नहीं
पता
कि
नोटबंदी
के
चलते
कितना
कालाधन
आया,
लेकिन
ये
नकली
नोटों
को
बाजार
से
बाहर
करने
का
प्रभावी
कदम
है।
ये
कहना
जल्दबाजी
है
नोटबंदी
का
ये
कदम
सफल
रहा
या
फिर
असफल,
या
फिर
ग्रामीण
इलाकों
में
इसका
असर
क्या
है
लेकिन
मैं
अपने
शहर
के
लिए
इसके
प्रभाव
को
बता
सकती
हूं।
अहमदाबाद
शहर
ने
कैशलेस
इकोनॉमी
को
स्वीकार
किया
है
और
इसे
अपनाना
चाह
रहा
है।
मेरी
लोगों
से
अपील
है
कि
ज्यादा
से
ज्यादा
डेबिट
या
क्रेडिट
कार्ड
का
इस्तेमाल
करें,
इंटरनेट
बैंकिंग,
मोबाईल
बैंकिंग
ज्यादा
सुरक्षित
है।
सकारात्मक
बनिए
और
कालेधन
के
खिलाफ
लड़ाई
में
शामिल
होइये।
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