किस पार्टी के लिये जीवन दान बन सकते हैं दिल्ली विधानसभा चुनाव?
दिल्ली विधासभा चुनावों और सरकार बनाने को लेकर चल रहा सस्पेंस तब खत्म हो गया जब लेफ्टनेंट गवर्नर ने स्टेज का पर्दा उठा दिया। केंद्रीय कैबिनेट ने विधानसभा को भंग करने की सिफारिश पर अपनी मुहर लगाते हुए फिर से चुनाव कराने की बात कह दी है। लोकसभा चुनाव के दौरान जब पूरा देश फोर्थ गियर पर चल रहा था, तब दिल्ली के मामले को पिछली सीट पर डाल दिया गया था। अब एक बार फिर से हेडलाइट का फोकस दिल्ली पर पड़ा है। हम यहां चर्चा करेंगे तीन बड़ी पार्टियों पर- आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और भाजपा।
आम आदमी पार्टी की जंग
28 सीटों के साथ दिल्ली में बेहतरीन डेब्यू करने वाली आप पार्टी ने पिछले चुनाव के 49 दिनों के बाद सरकार भंग कर स्वयं को शहीद घोषित कर दिया। दोबारा से मैदान में उतरने वाली आप एक बार फिर उसी कलेवर में आयी है, जिसमें वो पहले थी।
इतनी नाकामियों के बाद क्या करेगी आप
नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने के अरविंद केजरीवाल के निर्णय के बाद क्या-क्या हुआ वो सब इतिहास बन चुका है। लेकिन आंकड़े इतिहास में दर्ज हो चुके हैं जो साफ कहते हैं कि मोदी ने केजरीवाल को 3.37 लाख के भारी मतों से हराया था। आप पार्टी के 400 प्रत्याशियों में से महज चार जीते। उन सभी आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए केजरीवाल एक बार फिर खोयी हुई दिल्ली को वापस पाने की जद्दोजहद में जुट गये हैं।
एक साल बाद क्या आप मजबूत है?
इसमें कोई शक नहीं कि आम आदमी पार्टी एक बार फिर दिल्ली की सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े करेगी। यह भी तय है कि पार्टी सामने वाले को जबर्दस्त तरीके से चैलेंज करेगी। भले ही शाजिया इलमी जैसी नेता पार्टी में नहीं है, बिनोद कुमार बिन्नी ने भले ही पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोला, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि पार्टी के वॉलेंटियर्स आज भी मजबूती के साथ जुड़े हुए हैं। लेकिन इन वॉलेंटियर्स को जनता के सामने तमाम कठिन प्रश्नों का सामना करना पड़ सकता है।
वो प्रश्न हैं- जब हरियाणा में आप पार्टी मजबूत थी, तो एक भी प्रत्याशी क्यों नहीं खड़ा किया? दिल्ली का समय बर्बाद किया, उसकी कीमत कौन चुकायेगा? अब किस बात की गारंटी है कि आप सरकार को अच्छी तरह से चला पायेंगे?
कहां खड़ी है कांग्रेस पार्टी
इसमें कोई शक नहीं है कि दिल्ली में चुनाव आप पार्टी और भाजपा के बीच होंगे। तीसरी खिलाड़ी कांग्रेस होगी। 2013 के विधानसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन करने वाली कांग्रेस का लोकसभा चुनावों में भी सूपड़ा साफ हो गया। यही नहीं मध्य प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, छत्तीसगढ़ हर जगह कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी। यही नहीं पार्टी के बड़े-बड़े दिग्गजों को भी लोकसभा चुनावों में करारी हार मिलीं।
क्या दिल्ली चुनाव बचा पायेंगे कांग्रेस की नाक
लगातार पतन की ओर बढ़ रही कांग्रेस को यू-टर्न की बेहद आवश्यकता है। यह बात राहुल गांधी भी जानते हैं और इसीलिये उन्होंने अपनी टीम तैयार कर ली है। अब देखना यह है कि राहुल की नई टीम दिल्ली चुनाव के माध्यम से कांग्रेस में नई जान फूंक पायेगी या नहीं।
क्या दिल्ली में चलेगा मोदी फैक्टर
दिल्ली के हर गली-मोहल्ले में एक ही सवाल है, कया राजधानी में भी मोदी फैक्टर चलेगा। इस सवाल का हल फिलहाल भाजपा के पास भी नहीं है। ऐसा इसलिये क्योंकि डा. हर्ष वर्धन के केंद्र में जाने के बाद से भाजपा के पास मुख्यमंत्री पद के लिये कोई भी चर्चित चेहरा नहीं है।
हालांकि हरियाणा की तरफ से चल रही हवाओं से अभी तक तो लग रहा है कि भाजपा दिल्ली में भी जर्बस्त जीत दर्ज करने वाली है, लेकिन राजनीति के शतरंज पर कब कौन सा मोहरा मात खा जाये, कुछ पता नहीं होता।
आगे पढ़ें- मैं दिल्ली हूं.. मैं दिल्ली हूं.. आसानी से हाथ नहीं आऊंगी।