तो पैसे के लालच में खुलते मदरसे
नई दिल्ली(विवेक शुक्ला) क्या महाराष्ट्र सरकार का मदरसों को स्कूल के दायरे से बाहर करने का फैसला सही है? सरकार के फैसले का मतलब ये है कि उन्हें सरकारी सुविधाएं अथवा फंड मिलना बंद हो जाएगा। कई मुस्लिम चिंतक महाराष्ट्र सरकार के इस कदम का स्वागत करते हैं।
उत्तर प्रदेश के नामवर मुस्लिम चिंतक मोहम्मद जाहिद कहते हैं कि मेरे जैसे व्यक्ति को कोई आपत्ति नहीं होगी क्योंकि इसी सुविधाओं और धन के लालच में बेवजह के और बे-जरूरत के मदरसे खोले जा रहे हैं, जहाँ जरूरत नहीं वहाँ भी 10-15 कदम पर एक मदरसा अवश्य है।
धन की बंदरबांट
वे कहते हैं कि मदरसों में धन की बंदरबांट इतनी अधिक है कि टूटी साइकिल पर चलने वाला मौलाना कुछ दिन में ही मदरसा बनाकर लक्जरी कार से चलने लगता है।
सराहना होनी
कुछ जानकार कह रहे हैं कि केवल धार्मिक शिक्षा के लिए सरकारें धन दे यह उचित नहीं है। दिल्ली के शिक्षाविद् मकसूद अहमद ने भी कहा कि महाराष्ट्र सरकार के इस कदम की सराहना होनी चाहिए।
बंद करो मदरसों को ये तो समलैंगिकों के अड्डे बन गये हैं: AMU प्रोफेसर
हालांकि वे कहते हैं कि यह भी ईमानदारी से हो कि सरकार किसी भी धर्म के धार्मिक शिक्षा या कार्यक्रम का ना तो आयोजन करे ना कोई धार्मिक कार्य करे। धर्म तो व्यक्तिगत विषय है इसका सरकारों से क्या लेना देना।
बता दें कि मदरसों में यह सही है कि धार्मिक शिक्षा दी जाती है परन्तु कुछ मदरसों में उच्च शिक्षा तक दी जा रही है तथा कितने तो तमाम बोर्ड से मान्यता प्राप्त हैं जहाँ 12 तक के हर विषय की शिक्षा दी जा रही है कुछ तो स्नातक तक की शिक्षा दे रहे हैं।
यह भी सही है कि अनुपात में ऐसे मदरसे बहुत कम हैं और अनुपात में बहुत अधिक मदरसों की संख्या का कारण धार्मिक शिक्षा की बजाय धन की लालसा अधिक है जो तथाकथित कुछ मौलानाओं के लिए धंधा बन गया है।
बता दें कि देश के प्रथम राष्ट्रपति थे डा. राजेन्द्र प्रसाद भी कुछ समय मदरसे में पढ़े। जाहिद साहब कहते हैं कि तब मदरसों की यह स्थिति थी आज पैसे के कमाने के अड्डे बना दिये गये हैं।