नज़रिया: क्या मोदी के लिए चुनौती हैं योगी?
- योगी आदित्यनाथ का उत्तर प्रदेश में शीर्ष कुर्सी तक पहुंचना हर किसी को चौंका गया था
- उनका नाम मुख्यमंत्री पद के लिए आख़िरी वक़्त पर सामने आया था.
- आदित्यनाथ योगी भी उसे रास्ते पर चल रहे हैं, जो मोदी ने सत्ता में आने के लिए अपनाया था.
योगी आदित्यनाथ का उत्तर प्रदेश में सत्ता की शीर्ष कुर्सी तक पहुंचना हर किसी को चौंका गया था. उनका नाम मुख्यमंत्री पद के लिए आख़िरी वक़्त पर सामने आया था.
इससे पहले केंद्रीय राज्य रेल मंत्री मनोज सिन्हा का नाम लगभग तय माना जा रहा था और वो नरेंद्र मोदी की पसंद बताए जा रहे थे.
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शपथ ग्रहण समारोह में मोदी शांत नज़र आए और इससे बहुतों को यह अटकल लगाने का मौका लग गया कि क्या आख़िरी वक़्त में यह फ़ैसला थोपा गया है.
लेकिन कोई इसकी कल्पना कैसे कर सकता है कि कोई मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे ताकतवर प्रधानमंत्री से आगे निकल जाए?
मोदी के नक्शे कदम पर
करीब चार महीने गुज़रने के बाद योगी एक ऐसे सिस्टम में ख़ुद को फिट करने की कोशिश करने में लगे हुए हैं, जो उनके लिए बिल्कुल अजनबी है.
गोरखपुर में एक मंदिर के महंत की भूमिका से लेकर देश के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य के मुख्यमंत्री बनने का उनका सफ़र अद्भुत था और इसीलिए कुछ लोगों को यह आसानी से हजम नहीं हुआ.
शायद योगी ने वही रास्ता अख्तियार किया जो मोदी ने सत्ता में आने के लिए अपनाया था. जैसे मोदी लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे कद्दावर पार्टी नेताओं को दरकिनार कर आगे निकल गए, वैसे ही योगी ने भी उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल दूसरे प्रतिस्पर्धियों को पीछे छोड़ सत्ता हासिल करने में कामयाबी हासिल की.
जिस तरह से उन्होंने कट्टरपंथी हिंदू होने की अपनी छवि का इस्तेमाल किया है वो तरीका काफी हद तक नरेंद्र मोदी से मिलता-जुलता है.
नरेंद्र मोदी ने भी गोधरा के बाद बनी अपनी छवि का इस्तेमाल आख़िरकार राजनीतिक फ़ायदे के लिए किया.
संभावनाएँ
इसमें कोई राज़ की बात नहीं है कि गेरुआ वस्त्र पहनने वाले योगी आदित्यनाथ लखनऊ की कुर्सी पाने के लिए महत्वकांक्षी थे.
उनके कट्टर समर्थकों ने इस बात को सार्वजनिक तौर पर ज़ाहिर करने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ी. उनके समर्थकों ने नारा दिया, "देश का नेता कैसा हो, योगी आदित्यनाथ जैसा हो."
अभी ज़्यादा वक़्त नहीं गुजरा जब योगी के समर्थक यह कहते सुने गए कि, "उत्तर प्रदेश में रहना है तो योगी-योगी कहना होगा."
योगी आदित्यनाथ ने जिस दिन शपथ ली, उसी दिन से उनके हिंदू युवा वाहिनी के समर्थक यह कहने लगे कि, "योगी भविष्य के प्रधानमंत्री हैं."
दिल्ली और लखनऊ दोनों ही जगहों के राजनीतिक हलकों में 2024 में उनके प्रधानमंत्री बनने की संभावनाओं पर चर्चा शुरू हो गई थी.
उनके समर्थक यह भी कहने लगे कि 44 साल के योगी आदित्यनाथ बीजेपी के सबसे युवा चेहरे होंगे 2024 में जबकि मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उस वक्त तक 70 से ऊपर के हो जाएंगे.
यह अलग बात है कि इतनी सारी बातें होने के बावजूद योगी आदित्यनाथ ख़ुद को लखनऊ की गद्दी पर स्थापित करने के लिए अभी भी संघर्ष करते दिख रहे हैं.
दिखावटी चेतावनी?
उनकी साफ-सुथरी छवि और प्रतिष्ठा के बावजूद योगी अब तक राज्य की लचर कानून व्यवस्था पर लगाम नहीं कस पाए हैं.
बलात्कार, हत्या, डकैती और लूट-खसोट जैसे जघन्य अपराध पूरे राज्य में चरम पर है. इसी बीच गोरक्षकों और नैतिकता के स्वंयभू ठेकेदारों की वजह से बढ़ रहा सांप्रदायिक तनाव इसमें घी का काम कर रहा है.
मोदी और योगी दोनों ही इन कथित गोरक्षकों को मौखिक रूप से चेतावनी दे रहे हैं जबकि ये उन्हीं की पार्टी से जुड़े लोग हैं.
लेकिन सच्चाई तो यह है कि इन चेतावनियों का कोई ख़ास असर होता नहीं दिख रहा.
कोई यकीन करेगा कि पार्टी के अंदर के ये उपद्रवी तत्व इतने निडर हो गए हैं कि उन्हें मोदी और योगी की कोई परवाह नहीं है?
ऐसे हालात में यह मानना क्या सही नहीं होगा कि ये चेतावनियां सिर्फ दिखावटी हैं ताकि लोगों के बीच छवि सुधार का फायदा उठाया जा सके?
उम्मीदवारी को धक्का
जो कुछ भी हो लेकिन आख़िरकार ये योगी आदित्यनाथ के लिए ज़रूर नुकसानदायक हो सकता हैं.
सरकारी स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं होने से योगी की छवि एक ऐसे मुख्यमंत्री की बनेगी जो प्रभावी नहीं हैं.
इससे 2024 में प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी की उनकी संभावनाओं को धक्का पहुंचेगा.
इसके उलट अगर मोदी अगले 12 महीनों में अपने आप को एक 'सफल' मुख्यमंत्री के तौर पर पेश करने में कामयाब होते हैं तो वो 2019 में भी आश्चर्यचकित कर सकते हैं.
आखिरकार 2019 में उत्तर प्रदेश में पार्टी का प्रदर्शन कैसा होता है इसकी ज़िम्मेदारी भी योगी के ऊपर ही है.