मतदान से पहले पढ़िए, पंजाब विधानसभा चुनाव का पूरा गुणा-गणित
पंजाब विधानसभा चुनाव में कुल 117 विधानसभा सीटें हैं। प्रदेश में सरकार बनाने के लिए किसी भी दल को 59 सीटों की जरुरत होती है।
नई दिल्ली। पंजाब विधानसभा चुनाव को लेकर सभी सियासी दलों की जोर-आजमाइश पूरी हो चुकी है। चुनावी जंग में मतदाताओं को रिझाने का कोई भी मौका राजनीतिक दलों ने जाने नहीं दिया है। इस बार पंजाब चुनाव में कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल-बीजेपी गठबंधन की टक्कर तो है ही साथ ही आम आदमी पार्टी भी मुकाबले में उतरी है।
पंजाब का चुनावी हाल, कौन कितने पानी में?
आम आदमी पार्टी भले ही पहली बार चुनाव मैदान में उतरी हो लेकिन इसने अपनी धमक से विरोधी दलों को अपनी रणनीति में जरुरी बदलाव के लिए मजबूर जरुर कर दिया। जानकारों के मुताबिक इस चुनाव आम आदमी पार्टी के आने से कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल-बीजेपी गठबंधन को कड़ी टक्कर मिलती नजर आ रही है। आखिर इस बार का पंजाब चुनाव पहले से कितना अलग है, इसमें कौन-सी ऐसी खास बातें हैं जिन्हें आपको जानना जरुरी है...
त्रिकोणीय मुकाबले से बदला माहौल
पंजाब विधानसभा चुनाव में कुल 117 विधानसभा सीटें हैं। प्रदेश में सरकार बनाने के लिए किसी भी दल को 59 सीटों की जरुरत होती है। पिछले चुनावों में यहां मुख्य मुकाबला कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल-बीजेपी गठबंधन से ही रहता था। हालांकि इस बार आम आदमी पार्टी के आने से सियासी समीकरण बदले हुए हैं। आम आदमी पार्टी ने प्रदेश में करीब एक साल पहले से ही मोर्चा संभाल लिया था। उन्होंने जमीनी स्तर पर लोगों से घुलना-मिलना शुरू किया। बड़ी रैलियों की जगह इस दल ने डोर-टू-डोर कैंपेन चलाया। यही वजह है कि आम आदमी पार्टी इस चुनाव में विरोधियों के लिए बड़ी सिरदर्द बनती दिखाई दे रही है।
आम आदमी पार्टी का असर
पंजाब विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी भले ही पहली बार चुनाव मैदान में उतरी हो लेकिन दिल्ली में सत्ता चला रही आम आदमी पार्टी ने प्रदेश में काफी पहले से ही जमीन पक्की करनी शुरू कर दी थी। यही वजह है कि पार्टी ने प्रदेश में अगस्त-सितंबर के आस-पास ही अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया। इसके पीछे पार्टी की रणनीति साफ थी कि उम्मीदवारों का चयन समय से होगा तो उन्हें अपने इलाके में समय बिताने और काम करने का ज्यादा मौका रहेगा। जिससे उम्मीदवार वहां के लोगों को खुद से जोड़ सकेंगे। पंजाब को लेकर आम आदमी पार्टी की रणनीति कामयाब होती दिख रही है। कई चुनावी सर्वे में आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और अकाली दल-बीजेपी गठबंधन को कड़ी टक्कर देते नजर आ रहे हैं।
कांग्रेस की स्थिति पर एक नजर
पंजाब विधानसभा चुनाव, कांग्रेस पार्टी के लिए बड़े इम्तिहान से कम नहीं है। इसकी वजह भी है कि पिछले कुछ सालों में कांग्रेस पार्टी को कई राज्यों में हार का सामना करना पड़ा। इनमें राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली, छत्तीसगढ़ अहम राज्य थे। हालांकि इस दौरान कर्नाटक में जरुर कांग्रेस की सरकार बनी, वहीं बिहार में जेडीयू, आरजेडी के साथ कांग्रेस भी महागठबंधन में शामिल हुई और जीतने के बाद नीतीश सरकार में शामिल है। ऐसे हालात में कांग्रेस के लिए पंजाब की जीत संजीवनी का काम करेगी। ये चुनाव एक तरह से कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी की भी परीक्षा है। ये बात वो भी समझते हैं इसीलिए उन्होंने कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया। उन्ही के चेहरे पर कांग्रेस पार्टी पंजाब में चुनाव लड़ रही है। फिलहाल कांग्रेस पार्टी पंजाब में हरसंभव जीत के लिए फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाया है लेकिन असल फैसला जनता को करना है।
सत्तारुढ़ शिरोमणि अकाली दल-बीजेपी गठबंधन का हाल
शिरोमणि अकाली दल-बीजेपी गठबंधन भले ही पिछले 10 साल से पंजाब में सरकार चला रही हो, लेकिन इस बार के विधानसभा चुनाव में उसे कितनी कामयाबी मिलेगी ये देखना दिलचस्प होगा। इस बार पंजाब में त्रिकोणीय मुकाबला है। कांग्रेस के साथ आम आदमी पार्टी के आने से सत्ता समीकरण बदल गए हैं। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी सत्ताधारी गठबंधन को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ा है। दोनों ही दल सत्ता विरोधी लहर को अपने पक्ष में करना चाहते हैं। पंजाब में बीजेपी के लिए ज्यादा कुछ करने के लिए नहीं हैं लेकिन अकाली दल की प्रतिष्ठा दांव पर है। देखना होगा कि उन्हें इस चुनावी समर में कितनी सफलता मिलती है।
क्षेत्र के आधार पर किस दल का कितना असर
पंजाब की क्षेत्रवार स्थिति पर गौर करें तो इसे तीन हिस्सों में बांटा गया है। इसमें मालवा, माझा और दोआबा प्रमुख है। मालवा में 69 सीटें हैं, वहीं माझा में 25 और दोआबा में 23 विधानसभा सीटें हैं। इस बार के विधानसभा चुनाव में क्षेत्रवार पार्टियों के असर पर नजर डालें तो कहा जा सकता है कि मालवा ऐसा इलाका है जहां से साफ हो सकता है कि अगला मुख्यमंत्री कौन होगा? इसी क्षेत्र से मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल चुनाव मैदान में हैं। साल 2012 के विधानसभा चुनाव में इस इलाके की 69 सीटों में से अकाली दल के खाते में 34 सीटें गई थी। हालांकि इस बार हालात बदले हुए दिख रहे हैं। इस बार कांग्रेस के सीएम पद के उम्मीदवार अमरिंदर सिंह भी इसी इलाके से चुनाव मैदान में हैं। वो प्रकाश सिंह बादल के खिलाफ मुकाबले में खड़े हैं। ऐसे में दोनों ही दलों की नजर इस इलाके में अच्छा प्रदर्शन करने पर है। हालांकि मालवा की जमीनी स्थिति में आम आदमी पार्टी का भी असर दिख रहा है।
पिछले विधानसभा चुनाव पर एक नजर
इस बार के पंजाब विधानसभा चुनाव में किस्सा दांव कामयाब होगा ये तो जनता तय करेगी लेकिन पिछले चुनाव के आंकड़े देखें तो सत्ता चला रही शिरोमणि अकाली दल बीजेपी गठबंधन को 68 सीटें आई थी। प्रकाश सिंह बादल पंजाब के मुख्यमंत्री बने। वहीं उस समय मुकाबले में रही कांग्रेस पार्टी को 46 सीटें आई थी। उस चुनाव आम आदमी पार्टी मुकाबले में नहीं थी। इस बार आम आदमी पार्टी के आने के बाद मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है।
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