तो 100 साल बाद मिल सकी इस गांव के पटाखों को पहचान
गुवाहाटी,
असम
के
एक
गांव
में
पिछले
100
साल
से
अधिक
समय
से
पटाखे
बन
रहे
हैं।
इस
गांव
को
एक
लोगो
मिल
गया
है,
जिसके
सहारे
यह
अपने
पटाखों
को
शिवकाशी
में
बनने
वाले
पटाखों
से
अलग
करेगा।
यह
गांव
है
बारपेटा
जिले
का
गनक
कुचि
गांव।
इसने
इस
साल
कम
से
कम
असम
के
बाजार
में
अपनी
मजबूत
पहचान
दर्ज
कराने
की
ठान
ली
है।
इस
गांव
के
पटाखों
को
तमिलनाडु
के
शिवकाशी
के
पटाखों
से
कड़ी
प्रतियोगिता
मिला
करती
है।
हाल
में
ही
गांव
को
एक
लोगो
मिला
है,
जिसे
नेशनल
इंस्टीट्यूट
ऑफ
डिजाइनिंग
(एनआईडी)
ने
बनाया
है।
पीढ़ियों से पटाखे बना रहे कारीगरों के संगठन बारपेटा आतसबाजी सिल्पी समाबाई समिति के अध्यक्ष गोपाजीत पाठक ने कहा, "यह लोगो हमें बाजार में एक अलग पहचान देगा। दीपावली के दौरान असम और देश भर के बाजारों में शिवकाशी के पटाखे भी भरे रहते हैं।" पाठक ने कहा कि लोग नहीं समझ पाते कि कौन-सा पटाखा शिवकाशी का है और कौन-सा बारपेटा का है। बारपेटा के कारीगरों ने कहा कि इस साल उन्हें 70-80 लाख रुपये के पटाखों की बिक्री की उम्मीद है।
पाठक का परिवार 1885 से पटाखा बनाने के कारोबार में है। गनक गांव के पटाखा उद्योग में करीब 2,000 लोगों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रोजगार मिला हुआ है। एक कारीगर ने बताया कि बाजार में शिवकाशी के पटाखे अधिक हैं, लेकिन लोग हमारे पटाखों को तरजीह देने लगे हैं, क्योंकि वे स्थानीय उद्योग को बढ़ावा देना चाहते हैं।
पाठक ने कहा कि बारपेटा के पटाखों की खासियत यह है कि इससे प्रदूषण कम होता है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।