'चाचा को सब पसंद करते थे लेकिन मैं नहीं...'
- चाचा अक्सर हमारे घर आते थे
- बहुत हंसमुख और मिलनसार किस्म के थे वो
- सभी लोग उन्हें बहुत पसंद करते थे लेकिन मुझे वो रत्ती भर भी पसंद नहीं थे
- यौन शोषण के कई मामलों में अपराधी रिश्तेदार या क़रीबी ही होता है. बीबीसी हिंदी की ख़ास सिरीज़.
'चाचा अक्सर हमारे घर आते थे. बहुत हंसमुख और मिलनसार किस्म के थे वो. कभी बच्चों के लिए संतरे लाते तो कभी बेकरी वाले बिस्किट. सभी लोग उन्हें बहुत पसंद करते थे लेकिन मुझे वो रत्ती भर भी पसंद नहीं थे.'
'वो मुझे देखते ही गोद में उठा लेते और चूमने की कोशिश करते. अपनी खुरदुरी सी दाढ़ी मेरे चेहरे पर रगड़ने लगते और मुझे तब तक गोदी से नहीं उतारते जब तक मैं उन्हें जोर का चांटा न मार दूं, या नाखून न लगा दूं.'
23 साल की रचिता ये बातें बताते हुए घृणा और ग़ुस्से से भर उठती हैं. उनके साथ ये हादसा तब हुआ जब वो सात-आठ साल की थीं.
'क़रीबी होते हैं अपराधी'
यौन शोषण के मामलों में एक बड़ा हिस्सा वो होता है जिसमें अपराधी पीड़िता का क़रीबी होता है. ऐसे हालात में न तो जुर्म की शिकायत आसानी से हो पाती है और न इनकी सुनवाई या फ़ैसला.
लेकिन क्या वाक़ई ज़ुर्म की शिकायत या सुनवाई इतनी मुश्किल है? उस औरत पर क्या बीतती होगी जिसका अपना ही उसका उत्पीड़न करता है? ऐसी स्थिति में कहां जाएं? किससे मदद मांगें?
इन्हीं सवालों को ध्यान में रखते हुए बीबीसी हिंदी एक ख़ास सिरीज़ शुरू करने जा रहा है. इस दौरान महिलाएं और लड़कियां अपने अनुभव साझा करेंगी. इसके साथ ही हम महिलाओं के क़ानूनी अधिकारों, उन्हें मिलने वाली मदद के ज़रिए और ऐसे ही तमाम मुद्दों पर भी बात करेंगे.
इस सिरीज़ की पहली कड़ी में आपसे मुख़ातिब हैं रचिता (बदला हुआ नाम).
मदद
रचिता बताती हैं, ''आख़िर एक दिन मैंने हिचकिचाते हुए मम्मी से कह ही दिया. मैंने कहा कि गौरव चाचा अपनी दाढ़ी मेरे चेहरे पर रगड़ते हैं, तो मुझे बहुत बुरा लगता है. मम्मी ने पूछा, कुछ और तो नहीं किया? मैंने ना में सिर हिलाया. उस दिन के बाद से उन्होंने गौरव चाचा को मुझ तक पहुंचने ही नहीं दिया. उनके आते ही मुझे दूसरे कमरे में बैठा देतीं और पूछने पर कहतीं कि पढ़ाई कर रही है या खेलने गई है.''
वह अब इस बात को लगभग भूल गई हैं लेकिन जब भी यौन उत्पीड़न या इससे मिलते-जुलते शब्द सुनती हैं तो जेहन में ये बातें उभरकर ज़रूर आ जाती हैं.
यह कहानी अकेले रचिता की नहीं है. आंकड़ों पर गौर करें तो यौन उत्पीड़न के अधिकतर मामले ऐसे होते हैं जिसमें अपराधी या तो पीड़ित के परिवार का सदस्य होता है, या कोई रिश्तेदार या फिर कोई जानने वाला.
हलांकि रचिता खुशकिस्मत थीं कि उनके घरवालों ने उनकी बात समझी लेकिन ऐसी मदद और सपोर्ट बहुत कम लोगों को ही मिल पाता है.
आंकड़े
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड् ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि साल 2015 में महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा के कुल 3,27,394 मामले दर्ज किए गए. इनमें रेप के 34, 651 मामले थे और 33,098 मामलों में अपराधी पीड़िता का जानने वाला था.
महिलाओं के लिए काम करने वाले एनजीओ 'ब्रेकथ्रू' की सीनियर मैनेजर पॉलिन गोमेज कहती हैं,''हमने ऐसे मामले देखे हैं जहां दामाद ने सास का यौन उत्पीड़न किया, भाई ने बहन का, पिता ने बेटी का या फिर दादा ने पोती का.''
अगर ऐसा हो तो क्या करना चाहिए? इस सवाल के जवाब में पॉलिन कहती हैं,''अपनी बात तब तक कहते रहिए जब तक कोई सुन न ले, कोई प्रतिक्रिया न दे दे. कई लोगों से कहिए. स्कूल-कॉलेज में कहिए. पुलिस या मैजिस्ट्रेट के पास जाइए. किसी एनजीओ की मदद लीजिए, हेल्पलाइन नंबरों पर कॉल कीजिए, कुछ भी कीजिए लेकिन चुप मत बैठिए.''
सेंटर फॉर रिहैबिलिटेशन ऐंड डेवलपमेंट में क्लीनकिल साइकॉलजिस्ट डॉ. श्रावस्ती वेंकटेश कहती हैं,''यौन शोषण के पीड़ितों में ग़ुस्सा, ग्लानि और निराशा का भाव होता है. मदद न मिलने पर यह और बढ़ जाता है. कई बार पीड़ित घटना के सालों बाद भी उससे पूरी तरह उबर नहीं पाता. ऐसे में काउंसलिंग बहुत मददगार साबित होती है.''
पॉलिन गोमेज कहती हैं, कई बार लोग जुर्म के खिलाफ़ आवाज़ उठाना चाहते हैं लेकिन क़ानून और बाक़ी चीजों की सही जानकारी न होने की वजह से ख़ामोश रहकर तकलीफ़ें झेलते रहते हैं. यह स्थिति बहुत ही भयावह है.