सोनिया गांधी के चाणक्य को, मोदी के चाणक्य ने बुरा फंसाया
अहमद पटेल को जीत के लिए चाहिए 45 विधायकों के वोट। 44 को उन्होंने कर्नाटक के रिसोर्ट में एशो-आराम मयस्सर करा दिया है। लेकिन सवाल ये है कि 44 ही क्यों? कांग्रेस के पास तो 57 विधायक थे!
ऐसा क्यों माना जा रहा है कि अहमद पटेल फंस गये हैं? किसी ने सोचा था कि कभी ऐसा भी हो सकता है! विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी कांग्रेस को भंवर से निकालने वाला 'कांग्रेस का चाणक्य' आज खुद राजनीतिक दंगल में फंसा हुआ है। महाभारत के योद्धा कर्ण की भांति उनकी जीत का पहिया धरती माता ने जकड़ लिया है। ब्रह्मास्त्र तो है, लेकिन जब इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है, वह इसे प्रयोग करने का मंत्र ही भूल चुके हैं। राजनीति का यह शूरवीर यानी अहमद पटेल गुजरात से राज्यसभा चुनाव के दंगल में आम प्रत्याशी जैसा दिख रहा है, जिसे कोई भी परास्त कर दे।
अहमद पटेल को राजनीतिक सलाहकार की है दरकार!
सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल को आज लगता है खुद किसी राजनीतिक सलाहकार की जरूरत है, जो उन्हें गुजरात में राज्यसभा चुनाव के दंगल से जिता ले जाए। वैसे तो इस चुनाव में जीत के लिए पास सबकुछ है लेकिन आभास ऐसा हो रहा है मानो मुट्ठी से जीत की रेत फिसलती चली जा रही हो। हिम्मत कमजोर पड़ने लगी है, कुशल क्षेम पूछने वाले घट गये हैं, बाहर उन्हें राजनीतिक रूप से लाइलाज बीमारी से ग्रस्त हुआ बताया जा रहा है जिसकी परिणति सियासी मौत है। न सिर्फ एक राजनीतिक सलाहकार के तौर पर अहमद पटेल की यह अवस्था उन्हें सियासी मौत की ओर ले जा रही है, बल्कि उन्हें यह चिंता भी अभी से सताने लगी है कि अगर अपनी ही सेहत वे ठीक नहीं कर पाए तो इन्फेक्शन का बहाना लेकर उनकी आका भी उन्हें अपने से दूर कर दे सकती हैं।
अंडों की तरह विधायकों को 'से' रही है कांग्रेस
अहमद पटेल को जीत के लिए चाहिए 45 विधायकों के वोट। 44 को उन्होंने कर्नाटक के रिसोर्ट में एशो-आराम मयस्सर करा दिया है। लेकिन सवाल ये है कि 44 ही क्यों? कांग्रेस के पास तो 57 विधायक थे! 6 विधायकों ने साथ छोड़ दिया है। तीन बीजेपी में जा चुके हैं। इनमें से एक तो राज्यसभा का उम्मीदवार बनकर अहमद पटेल को हराने में अपनी भूमिका निभा रहे हैं। यह उम्मीदवार हैं शंकर सिंह बाघेला के रिश्तेदार। बाकी बचे 51 विधायकों में जो 7 विधायक कर्नाटक नहीं पहुंचे हैं, उन्हें वाघेला के प्रति सहानुभूति रखने वाला माना जा रहा है। वाघेला हों या उनके समर्थक, वोट की कीमत लिए बगैर कभी वोट नहीं करते। वाघेला तो पूरी की पूरी सरकार का रंग ही एक पार्टी से दूसरी पार्टी में कर डालने का करिश्मा दिखाते रहे हैं। ऐसे में अहमद पटेल के लिए कर्नाटक रिसोर्ट में 44 विधायकों की संख्या बढ़ाकर 45 करना भी मुश्किल हो रहा है। यही वजह है कि जो विधायक पास हैं उन्हें अंडों की तरह से रही है कांग्रेस और इसके लिए सुरक्षित जगह कर्नाटक की तलाश की गयी है।
एनसीपी ने तो उड़ा दी है पटेल की नींद
एनसीपी ने तो अहमद पटेल की नींद उड़ा दी है। 31 जुलाई को एनसीपी नेता शरद पवार ने अहमद पटेल को समर्थन देने की घोषणा कर दी थी, लेकिन अब उनकी ही पार्टी के प्रवक्ता ने यह कहकर अहमद पटेल की नींद उड़ा दी है कि समर्थन का फैसला वोटिंग वाले दिन ही होगा। सत्ता के गलियारे तक पहुंच रखने वाले बताते हैं कि जिस् तरीके से पर्दे के पीछे की सियासत अहमद पटेल करते रहे हैं, उसे देखते हुए अब वे अपनी ही शैली में उसी तरह की सियासत के शिकार हो रहे हैं। चाहे बागी कांग्रेसी हों या एनसीपी के विधायक, ये बहती गंगा में हाथ धोने से परहेज नहीं करना चाहते। लेकिन इस सियासत ने अहमद पटेल की धड़कनें बढ़ा दी हैं।
जब एनसीपी दिखाए पैंतरा, तो जेडीयू से कैसे करें उम्मीद
जेडीयू का एकमात्र विधायक भी अगर अहमद पटेल को वादे के अनुसार वोट कर दे, तो उन्हें मैजिक फिगर मिल सकता है। लेकिन, जेडीयू ने जिस तरीके से राष्ट्रपति चुनाव के बाद बिहार में एनडीए सरकार बना ली है, उसे देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि जेडीयू पलटी नहीं मारेगा। लिहाजा जेड़ीयू विधायक के समर्थन की निश्चिंतता को लेकर अहमद पटेल आश्वस्त नहीं हो सकते। ऐसा इसलिए भी है कि एनसीपी, जो एनडीए का हिस्सा नहीं है, उसने अगर पैंतरा बदला है तो जेडीयू पर भरोसा कैसे कर लिया जाए।
अहमद पटेल को हराना (अब जिताना) मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है
अगर हालात सामान्य होते, चुनाव असाधारण नहीं होते, मसला सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार को चुनाव मैदान में पटखनी देने का नहीं होता और सामने अमित शाह की कुशल चुनाव रणनीति नहीं होती, तो संभवत: अहमद पटेल को हराना नामुमकिन था। नामुमकिन सी लगने वाली बात के सच होने की आशंका अहमद पटेल को सता रही है। न जाने कितने लोगों को उन्होंने मझधार से निकाला होगा और न जाने कितनी बार विरोधियों को मझधार में धकेला होगा, लेकिन इस बार अहमद पटेल ऐसी मझधार में फंसे हैं, जहां थामने के लिए पास आए हाथों पर भी उन्हें भरोसा नहीं रहा। इसे कहते हैं वक्त। वक्त का पहिया कब कैसे घूम जाता है, जो ऊपर होता है नीचे आ जाता है और जो नीचे होता है, ऊपर चला जाता है- इसका अंदाजा किसी को नहीं होता। अहमद पटेल को यह बात समझ में आ रही होगी, लेकिन वो कहते हैं न कि सबकुछ लुटा के होश में आए तो क्या हुआ?
(21 साल से प्रिंट व टीवी पत्रकारिता में सक्रिय, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेखन।)
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