72 दिन, 19 देश, कार से तय कर डाला 22200 किलोमीटर का सफर
उम्र नहीं है बाधा, दंपति ने 72 दिनों में सड़क मार्ग से तय किया 19 देशों का सफर, पहले भी कर चुके हैं कई बड़ी यात्राएं
मुंबई। अगर आपके अंदर कुछ कर गुजरने की ललक हो तो उम्र, समय, समाज कभी भी आपके लक्ष्य को हासिल करने में बाधा नहीं बन सकता है और मुंबई के इस दंपति ने यह साबित कर दिखाया है। वर्ष 2011 में बादरी बलदावा जब अपनी पत्नी के साथ लंदन से वापस आ रहे थे तो वह प्लेन की खिड़की से बाहर पहाड़ों की खूबसूरती से काफी प्रभावित हुए, इस वक्त जब उन्होंने अपनी पत्नी से कहा कि क्यों न हम लोग सड़क मार्ग से यहां एक बार आए। उस वक्त बादरी की पत्नी पुष्पा ने इस मजाक समझकर टाल दिया, लेकिन बादरी ने इसे हकीकत में बदलने के लिए योजना बनानी शुरू कर दी। अंग्रेजी अखबार द हिंदू को उन्होंने अपनी इस पूरी यात्रा के बारे में विस्तार से बताया है।
मार्च में शुरू हुई थी बीएमडब्लूय से रोड ट्रिप
बादरी ने 2016 में सड़क मार्ग से यूरोप जाने की योजना बनानी शुरू कर दी और इस वर्ष 23 मार्च को बादरी ने सड़क मार्ग द्वारा इस ट्रिप के लिए अपनी पत्नी संग रवाना हो गए। इस यात्रा में उनके साथ ना सिर्फ उनकी पत्नी बल्कि उनकी 10 साल की पोती भी शामिल थी। बादरी ने अपनी बीएमडबल्यू X5 से 72 दिनों के भीतर 19 देशों की कुल 22200 किलमोमीटर की यात्रा तय की, इसके बाद वह लंदन पहुंचे।
स्टील व्यापारी हैं बलदावा
बलदावा पेशे से स्टील के बिजनेस में हैं, इसके अलावा वह चार्टर्ड अकाउंटेंट भी हैं, उनकी उम्र 72 वर्ष है। बादरी और उनकी पत्नी मुख्य रूप से राजस्थान से हैं, लेकिन इससे पहले वह कर्नाटक में थे, जिसके बाद वह मुंबई में सेटल हो गए। इस यात्रा से पहले भी बलदावा कई यात्राएं कर चुके हैं, वर्ष 2008 में उन्होंने माउंट एवरेंस्ट पर फतह हासिल की थी, यही नहीं तीन दशक पहले उन्होंने मुंबई से बद्रीनाथ तक की यात्रा कार से की थी, इसके अलावा वह कई क्रूज पर भी यात्रा कर चुके हैं। 2015 में उन्होंने आईसैलंड की यात्रा की थी, इस दौरान उनके साथ उनकी पोती निशी थी, जिसकी उम्र 10 वर्ष है, वह भी नॉर्वे से पूर्वी केप तक 46 घंटे की लगातार रोड ट्रिप में शामिल थी। यही नहीं बलदावा अंटार्टिका की भी यात्रा कर चुके हैं, उनका दावा है यहां 90 डिग्री उत्तर में पहुंचने वाली वह एकमात्र भारतीय है। बलदावा के पासपोर्ट पर कुल 65 देशों का वीजा लग चुका है, जबकि उनकी पत्नी के पासपोर्ट पर कुल 55 देशों का वीजा लग चुका है।
यूं बनी योजना
वर्ष 2016 में बलदावा ने दिल्ली में अपने कुछ दोस्तों के साथ इसकी योजना बनानी शुरू की और इस ट्रिप के लिए रूट बनाने लगे। हमने योजना बनाई कि हम पहले इंफाल जाएंगे, यहां से म्यांमार, थाइलैंड, लाओस और चीन होते हुए रूस के शेनेगन इलाके में पहुंचेंगे। बलदावा बताते हैं कि हमारे पास इसके अलावा कोई और विकल्प नहीं था, जिसके जरिए हम मुंबई से लंदन पहुंच सके। अगर हमें पाकिस्तान और अफगानिस्तान होते हुए जाना होता तो इस बात की गारंटी नहीं थी कि हम जिंदा पहुंचते, हम पूर्व में तिब्बत के रास्ते से भी नही जाना चाहते थे क्योंकि चीन हमें इसकी अनुमति नहीं देता
समस्याएं भी कम नहीं थीं
मुंबई से इंफाल के पहुंचने में इस दंपति को 24 दिन लग गए क्योंकि वह इस रास्ते में भारत की कई जगहों को देखना चाहते थे, यही नहीं लंदन में रहने वाली अपनी पोती को वह भारत दिखाना चाहते थे। इंफाल में 12 अन्य गाड़ियों का इन्हें साथ मिला, ये सभी 26 लोग वयस्क लोग थे और उनके साथ सिर्फ एक बच्चा था, इस ग्रुप में तंजानिया, यूके और भारत के अन्य इलाकों से लोग थे, जिसमें तीन लोग मुंबई से भी थे। इन तमाम योजना के बीच कुछ मुश्किलें भी थी। पहली समस्या था कि बलदावा को अंतर्राष्ट्रीय ड्राइविंग लाइसेंस चाहिए था, उनका पासपोर्ट भी उनके पास नहीं था, इसे उजबेकिस्तान काउंसलेट ने जब्त कर लिया था, क्योंकि यहां वीजा स्टीकर खत्म हो गया था जिसे वह पासपोर्ट पर लगा सके।
पहले से बुक कराए होटल
तमाम होटल को पहले ही बुक किया जा चुका था, काफी खोजबीन के बाद रात में कहां रुकना है यह पहले ही तय किया जा चुका था, सड़क और इस दौरान किन जगहों को देखना है और यहां कौन सा बेहतर होटल है, इस सब की योजना पहले ही बनाई जा चुकी थी। पूर्वी यूरोप में इन्हें गाइड की आवश्यकता थी ताकि वह उन्हें इस ट्रिप के दौरान तमाम देशों से यूके जाने में मदद करें, क्योंकि यहां अलग-अलग भाषा बोली जाती है। इसके अलावा सुरक्षा भी अहम वजह थी, साथ ही कुछ इलाकों में गाड़ी के रजिस्ट्रेशन की जरूरत भी थी।
यूं शुरू हुई यात्रा
मणिपुर से साउथ इस्ट एशिया की यात्रा शुरू हुई, थाइलैंड में यहां के संस्कृति मंत्री ने इनके लिए खास कार्यक्रम का आयोजन किया। इसके बाद जब यह लोग चीन के कुमिंगा पहुंचे तो यहां उन्हें कुल 16 दिन लगे। उत्तर पश्चिमी चीन से गुजरते वक्त जहां ये लोग 24 डिग्री के तापमान का सामना कर रहे थे, उसके महज चार घंटे के सफर के बाद डुनहैंग का तापमान जीरो डिग्री सेल्सियस पहुंच गया। ये लोग चीन और किर्गिस्तान की सीमा पर पुख्ता सुरक्षा को लेकर तैयार नहीं थे। यहां के पेट्रोल पंप पर पुलिस तैनात थी, यही नहीं ये लोग स्थानीय लोगों के व्यवहार को लेकर भी तैयार नहीं थे।
रास्ते में हुआ था सारस से सामना
बदलावा बताते हैं कि हमें ऐसा अंदाजा था कि चीन और रूस में लोग काफी तल्ख होते हैं, लेकिन हमारा हर जगह शानदार स्वागत किया गया। इसके बाद हमारा काफिला रूस से बेलारूस की ओर बढ़ा, जहां से हम लाटविया होते हुए लिथुआनिया पहुंचे। इस दौरान कई बड़े-बड़े सारस हमारी गाड़ी से टकराए, इसमें से एक ने तो हमारी कार की विंडशील्ड को भी चटका दिया, इस वक्त मैं 120 किलोमीटर की रफ्तार से चल रहा था।
हर रोज 400 किलोमीटर का सफर तय किया
हर रोज बलदावा तकरीबन 400 किलोमीटर की यात्रा करते थे और 12 घंटे गाड़ी चलाते थे, इस दौरान वह पर्याप्त ब्रेक लेते थे। सबसे लंबी यात्रा वॉर्सा से ब्रुसेल्स से एक दिन में 900 किलोमीटर की यात्रा की थी इन लोगों ने। बलदावा बताते हैं इस दिन हमने पोलैंड के वॉर्सा में नाश्ता किया था, खाना जर्मनी में खाया था, जबकि रात में हम बेल्जियम के ब्रुसेल्स में थे। लिथुएनिया, रूस, ब्रुसेल्स में हमें रात का खाना भारतीय दूतावास की ओर से मुहैया कराया गया। हर रोज हम अपनी तस्वीरें लेते थे और अपने बच्चों को भेजते थे, जिसे वह लोग फेसबुक और ब्लॉग पर साझा करते थे।
जीरो ग्रेविटि पर जाना चाहते हैं
पुष्पा बताती हैं कि वह चीन और रूस में शौचलाय की व्यवस्था को देखर चकित थे, हर तरफ बहुत सफाई थी। हर देश में लोगों में बेहतर तरीके से रहने का सलीका है, गांव में भी लोगों को अपनी जिम्मेदारी का एहसास है, पता नहीं भारत में क्यों लोगों को अपनी जिम्मेदारी का एहसास नहीं है। चीन में पहाड़ों पर भी शानदार सड़के थीं। चीन में ही निशी ने अपना 10वां जन्मदिन मनाया था, वह अपने दादा-दादी के साथ दूसरी रोड़ ट्रिप पर थी, इस दौरान उसका दो बार पेट खराब हो गया, लेकिन उसने कहा कि इस रोड़ ट्रिप को पूरा करें। यह मेरी जिम्मेदारी थी कि मै उसका खयाल रखूं। इस दौरान बलदावा दंपति ने काजीरंगा नेशनल पार्क देखा। बलदावा अब दक्षिण में 90 डिग्री पर पहुंचना चाहते हैं। उनका कहना है कि वह स्पेस में जीरो ग्रेविटी पर पहुंचना चाहते हैं और वहां चलना चाहते हैं।