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दशकों बाद आजाद हुआ रेल मंत्रालय, बेखौफ दौड़ी प्रभु की रेल

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नई दिल्ली। रेल मंत्रालय दशकों से गठबंधन की राजनीति की भेंट चढ़ता आ रहा है। गठबंधन की राजनीति के चलते रेल मंत्रालय हमेशा से ही क्षेत्रीय पार्टियों के हाथ में रहा जिसकी वजह से इन पार्टियों ने रेल मंत्रालय को वोट बैंक की राजनीति के लिए जमकर इस्तेमाल किया।

दशकों बाद केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार आने से पहली बार रेल मंत्रालय गठबंधन की राजनीति से मुक्त होकर स्वतंत्र सांस लेने के लिए आजाद हुआ है। जिसकी झलक इस रेल बजट में आपको साफ दिखने को मिलती है। हर बार के रेल बजट की तरह इस बार के रेल बजट में ना तो लोक-लुभावन वादे हैं ना ही नयी ट्रेनें चलाने की घोषणा। बल्कि इस बार रेलवे की मूलभूत ढ़ांचे को मजबूत करने पर ध्यान दिया गया है।

लालू, नीतीश, दिनेश त्रिवेदी, ममता बनर्जी हुए दरकिनार

पिछली सरकारों पर नजर डालें तो यूपीए की सरकार में दिनेश त्रिवेदी, ममता बनर्जी सहित कई क्षेत्रीय पार्टियों ने रेल मंत्रालय की बागडोर संभाली। लेकिन इसी वजह से इन टीएमसी ने रेल मंत्रालय के सुधार के लिए कड़े फैसले लेने से हमेशा अपने कदम पीछे खींचे।

यही नहीं वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए रेल के किराये में भी बढ़ोत्तरी से भी सरकार हमेशा से बचती रही। हालांकि दिनेश त्रिवेदी ने रेल के किराये में बढ़ोत्तरी करने की घोषणा की थी जिसके बाद उन्हें अपने पद से त्याग तक देना पड़ा था।

वहीं एनडीए की सरकार में भी रामविलास पासवान और नीतीश कुमार ने भी रेल मंत्रालय की बागडोर संभाली। लेकिन गठबंधन की राजनीति के आगे सरकार को इन क्षेत्रीय दलों की मांग और महात्वाकांक्षाओं के आगे झुकना पड़ा था।

नई ट्रेनों के शिगूफे पर लगी लगाम रेल बजट में कुछ बाते आम होती है जैसे कि नई ट्रेनों की घोषणा, एक्सप्रेस ट्रेनों की घोषणा, रेल किराये में कमी। लेकिन इस सरकार में इस तरह की कोई घोषणा नहीं की गयी। जिसकी मुख्य वजह यह बतायी जा रही है कि सरकार पहले से मौजूद विश्व के सबसे बड़े रेल संचार की सुविधा को बेहतर बनाने पर ध्यान देनी चाहती है।

रेलवे की मूलभूत समस्याओं की ओर लौटा रेल बजट

दशकों बाद रेल बजट में रेलवे के मूलभूत संचार को मजबूत करने पर जोर दिया गया। इस बार बजट में रेल को साफ-सुथरा करने, महिलाओं को सुरक्षा देने, टिकट प्रणाली को बेहतर बनाने जैसे छोटे-छोटे मुद्दों पर ध्यान दिया गया। जिस तरह से सरकार ने नई ट्रेनों सहित सस्ते किराये की रेवड़ी नहीं बांटी है उससे सरकार को रेल के बजट को रेलवे की मूलभूत तंत्र को मजबूत करने में मदद मिलेगी।

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English summary
After decades railway ministry freed from the coalition curse in rail budget, first time rail budget focused on basic issues of railway but populism.
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