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11 साल की कैद के बाद मुझे निर्दोष बताया, पर किसी ने हमसे माफी नहीं मागी

11 साल तक जेल की सलाखों के पीछे रहने के बाद सीबीआई ने उनपर लगे आरोपों को गलत बताया, लेकिन तबतक इरशाद का परिवार तबाह हो चुका था।

By Ankur
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नई दिल्ली। 11 साल तक जेल की सजा काटने के बाद 22 दिसंबर को जब इरशाद अली जेल से रिहा हुए तो यह उनके लिए बेहद ही अलग अनुभव था, जेल से बाहर उन्हें एक डर का एहसास हो रहा है, लेकिन इसके पीछे की वजह यह है कि जो 11 साल उन्होंने जेल के भीतर बिताएं वह बिना किसी वजह के थे। इरशाद को आतंकी घटनाओं के आरोप में जेल भेजा गया था, लेकिन जब कोर्ट ने सीबीआई के आरोपों को गलत बताया तो उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया।

jail

इरशाद का कहना है कि जब उन्हें जेल हुई तो वह कुछ सालों तक बहुत गुस्सा थे लेकिन बाद में उन्होंने इसे भाग्य समझकर इसे स्वीकार कर लिया। जिस वक्त वह जेल के भीतर थे उन्होंने अपने माता-पिता और नवजात बेटी को खो दिया। इस सजा के चलते मेरी मां ने अपनी जान गंवा दी, वह मेरे लिए तमाम पुलिस स्टेशन के चक्कर लगाती रहीं जहां उन्हें सिर्फ मायूसी और परेशानी हाथ लगी। मेरे पिता का भी इसी वर्ष शुरुआत में निधन हो गया, मेरी बेटी आइफा जिसकी उम्र महज छह माह थी वह भी 2013 में चल बसी। लोग कहते हैं कि उसे डिफ्थेरिया है लेकिन मुझे पता है उसका निधन इसलिए हुआ क्योंकि इन लोगों ने मुझे तोड़ा और मेरे परिवार को बर्बाद करके रख दिया।

भाई की गिरफ्तारी ने बदल दी जिंदगी

इरशाद अली के पिता मोहम्मद युनुस 50 साल पहले पैगंबरपुर गांव से दरभंगा नौकरी की तलाश में आए थे, उनके कुल आठ बच्चे थे, दो बेटे और छह बेटियां। उन्हे एक दुकान में नौकरी मिली और इरशाद दरभंगा के मदरसा में पढ़ाई के लिए जाने लगा। लेकिन जब युनुस के नौशाद को एक हत्या के अपराध में गिरफ्तार किया गया तो वह दिल्ली चले गए। इस घटना के बाद परिवार की स्थिति पूरी तरह से बदल गई। इरशाद अली ने इस घटना के बाद वहां एक फैक्ट्री में काम करना शुरु कर दिया था।

आतंकी का टैग नहीं गया
इरशाद बताते हैं कि जब नौशाद पैरोल पर बाहर आया तो उसे फिर से गिरफ्तार कर लिया गया और उसपर आतंकी होने का केस लगाया गया, इसके साथ ही एक और हत्या का आरोप उसपर लगाया गया जोकि कभी सुलझ नहीं सका, हालांकि हत्या का मामला उसपर से हट गया लेकिन आतंकी होने का टैग उसपर से कभी नहीं गया।
वर्ष 1996 में अली और उसके पिता को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। इरशाद बताते हैं कि एसीपी राजबीर सिंह ने हमें मरीस नगर में दस दिनों तक रखा, जहां मेरे सामने मेरे पिता को यातनाएं दी जाती थी, वह कहते थे कि मेरा भाई आतंकी हैं तो हम भी आतंकी होंगे। लेकिन जब मेरी मां ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो पुलिस ने उन्हें रिहा कर दिया, लेकिन हमें चुप रहने की चेतावनी दी गई थी।

पुलिस ने काम करने के लिए मजबूर किया

इस घटना के चार महीने बाद पुलिस ने फिर से मुझे गिरफ्तार कर लिया और आठ दिनों तक मुझे टॉर्चर किया। पुलिस मुझपर दबाव डालती थी कि मैं उनका जासूस बन जाउं। 2001 में मुझे आईबी ने गिरफ्तार किया। मेरे साथ मेरे दोस्त रिजवान को भी गिरफ्तार किया गया जोकि एक टेलर था। उन्होंने मुझे तीन दिन दिन तक अपने पास रखा, उन्होंने मुझसे एक पत्र जबरदस्ती लिखवाया कि मेरे भाई के कहने पर मैंने सबकुछ किया।
जब नौशाद ने जेल के भीतर पुलिस के साथ काम करने की हामी भर दी थी, मैं घबराया हुआ था, उन्होंने मेरी मासिक सैलरी 5000 रुपए तय कि और मुझे एक फोन दिया, इस दौरान मेरा भाई उन लोगों पर नजर रखता था जो आतंकी मामलों में बंद थे। मुझे आईबी अधिकारी माजिद को रिपोर्ट करना होता था। यह तीन साल तक चला, इस दौरान मैंने स्पेशल सेल को कई मामलों को सुलझाने में मदद की, मैं दो अधिकारियों के संपर्क में रहता था।

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सीबीआई ने ठहराया निर्दोष
लंबे समय तक वह सुरक्षा एजेंसी के लिए काम करता रहा लेकिन जब उसे एक मामले में बतौर आतंकी के रूप में गिरफ्तार कर सामने रखा गया तो इरशाद की उम्मीदें खत्म हो गई। हालांकि इस मामले में सीबीआई जांच बैठाई गई और इरशाद को बरी कर दिया गया और उसपर लगाए गए आरोपों को गलत बताया गया। इरशाद कहते हैं कि उन्हें रिहा तो कर दिया गया लेकिन मेरा परिवार कई दिनों तक भूखा रहा, मेरे बच्चों को खाने के लाले पड़े थे, हम गरीब हैं और हमारे साथ ऐसा ही होता है।

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English summary
After 11 years of Jail Irshad was acquitted from CBI but his life ruined. He says his family was ruined due to this.
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