करारी हार के बाद, टूटेगी आम आदमी पार्टी या होगा बड़ा बदलाव?
अरविन्द केजरीवाल ने पार्टी के नए पार्षदों और विधायकों की बैठक में 'अंतर-मंथन' का इशारा किया है। साथ ही पार्टी ना छोड़ने की शपथ भी ली है।
नई दिल्ली। एक समय में दिल्ली में हर दिल अजीज रही आम आदमी पार्टी अब इस मोड में आकर खड़ी हो गई है कि या तो पार्टी बिखरेगी या तो फिर बड़ा बदलाव होगा। दिल्ली नगरपालिका चुनाव में मिली हार के बाद 'आप' के ऑल इन ऑल अरविंद केजरीवाल ने ये महसूस किया है कि उनसे गलती हुई है। जाहिर है गलती हुई है तो सुधार भी होना चाहिए। बस यही से शुरु होती है बिखराव और बदलाव की कहानी...आम आदमी पार्टी में इस बात को लेकर तनातनी काफी दिनों से चल रही है कि पार्टी में सबकी नहीं सुनी जाती कुछ लोग ही पार्टी के फैसले लेते है। अरविंद केजरीवाल पर तो ये आरोप लगते रहे है कि अरविंद अपने मन की करते है। वो हर फैसले खुद ही कर लेते है। एमसीडी चुनाव में मिली हार के बाद पार्टी के नेता-कवि कुमार विश्वास ने कहा है कि हमारे चुनाव हारने का कारण ईवीएम नहीं बल्कि, लोगों से संवाद की कमी है.उन्होंने यह भी कहा है। अभी के हालात की जो मांग है उसके मुताबिक अरविंद केजरीवाल को सबको साथ लेकर चलना होगा सबकी माननी होगी नहीं तो पार्टी में टूट तय है।
गलती स्वीकार करना भी हो सकता है नया टैक्टिस
अरविन्द केजरीवाल ने पार्टी के नए पार्षदों और विधायकों की बैठक में 'अंतर-मंथन' का इशारा किया है। साथ ही पार्टी ना छोड़ने की शपथ भी ली है। मतलब जिस तरीके से आप में इस्तीफे की बौछार आई है,अरविंद केजरीवाल को डर है कि कोई भी नेता कभी पार्टी छोड़ कर जा सकता है। जिस तरीके का कंट्रोल नेताओं पर पहले हुआ करता था वैसा कंट्रोल अब बनी रहा। उधर नेताओं की अंतर्विरोधी बातें भी सामने आ रहीं हैं और संशय भी। अरविंद केजरीवाल ये तय नहीं कर पा रहे है कि कौन सी बात कमरे के अंदर की जाए कौन सी बाहर। आम तौर पर माना जाता है कि अरविंद केजरीवाल हथियार डालने वालों में से नहीं है हां टैक्टिस हमेशा बदलते रहते है। सवाल ये भी है गलती स्वीकार करना कही अरविंद का नया टैक्टिस तो नहीं है। हालांकी बीजेपी ये साफ कर चुकी है अरविंद केजरीवाल ने गलती स्वीकार करने में काफी देरी कर दी है।
'गिरगिट से भी तेज है केजरीवाल'
आम
आदमी
पार्टी
जिस
सोच
के
साथ
शुरू
हुई
थी
वो
सोच
तो
पार्टी
से
दूर
जा
चुकी
है।
सोच
के
साथ
साथ
काफी
नेता
भी
आप
से
दूर
जा
चुके
है।
कभी
अरविंद
केजरीवाल
के
साथ
रहे
विनोद
कुमार
बिन्नी
का
मानना
है
कि
अरविंद
केजरीवाल
कभी
सुधर
नहीं
सकते।
वन
इंडिया
से
बातचीत
में
विनोद
कुमार
बिन्नी
ने
कहा
"
अरविंद
केजरीवाल
लोगों
से
हमेशा
माफी
मांगते
रहते
है
और
मूर्ख
बनाते
रहते
है।
उनसे
तो
गिरगिट
ने
भी
हाथ
जोड़
लिया
है।
वो
गिरगिट
से
भी
तेज
रंग
बदल
लेते
है।
अरविंद
केजरीवाल
जनता
के
पैसों
पर
राज
कर
रहे
हैं"
आम
आदमी
पार्टी
के
मौजूदा
हालात
पर
बात
करते
हुए
बिन्नी
ने
कहा
कि"
आम
आदमी
में
बिखराव
तय
है
एक
साल
लगे
दो
साल
लगे
पार्टी
टूट
जाएगी
अभी
पार्टी
में
केवल
स्वार्थी
लोग
है।
संजय
सिंह
ने
पंजाब
प्रभारी
पद
से
इस्तीफे
की
बात
क्यों
कर
रहे
हैं
उन्हे
तो
पार्टी
के
सभी
पदों
से
इस्तीफा
दे
देना
चाहिए,
अब
'आप'
में
कुछ
नहीं
बचा
है"
राह से भटकी आम आदमी पार्टी
आम
आदमी
पार्टी
का
जन्म
होने
के
बाद
युवा
उद्यमियों,
छात्रों
तथा
सिविल
सोसायटी
ने
उसका
आगे
बढ़कर
स्वागत
किया
था.
पहली
बार
देश
के
मध्यवर्ग
की
दिलचस्पी
राजनीति
में
बढ़ी
थी.
सोशल
मीडिया
से
जुड़े
युवा
वॉलंटियर
'आप'
की
बड़ी
ताकत
बने.
इनमें
काफी
युवा
पश्चिमी
देशों
में
काम
करते
हैं.
उनके
मन
में
भारत
की
प्रशासनिक
व्यवस्था
के
दोषों
को
दूर
करने
की
ललक
है.
पर
जितनी
तेजी
से
वे
आए.
उतनी
तेजी
से
वे
जा
भी
रहे
हैं.
ज्यादातर
की
शिकायत
है
कि
यहाँ
लोकतंत्र
नहीं
है.
योगेन्द्र
यादव
और
प्रशांत
भूषण
के
हटने
के
बाद
पिछले
साल
पंजाब
में
संयोजक
के
पद
सुच्चा
सिंह
छोटेपुर
का
हटना
बड़ी
घटना
थी.
यह
पार्टी
भी
हाईकमान
से
चलती
है.
इसके
केन्द्र
में
कुछ
लोगों
की
टीम
है,
जो
फैसले
करती
है.
यह
भी
सही
है
कि
यही
टीम
इसे
एक
बनाए
रखती
है.
वैसे
ही
जैसे
नेहरू-गांधी
परिवार
कांग्रेस
को
और
संघ
परिवार
बीजेपी
को
एक
बनाकर
रखता
है.
पर
यही
बात
तो
उनकी
कमजोरी
है.बड़े
लोकतांत्रिक
मूल्यों
को
लेकर
चलने
वाली
इस
पार्टी
की
आंतरिक
संरचना
में
भी
झोल
है.
बहरहाल
पार्टी
को
तार्किक
परिणति
तक
पहुंचना
होगा.
सफल
नहीं
होगी
तो
विफलता
के
किसी
स्तर
को
छूना
होगा।आप
एक
छोटा
एजेंडा
लेकर
मैदान
में
उतरी
थी.
व्यापक
कार्यक्रम
अनुभव
की
ज़मीन
पर
विकसित
होगा,
बशर्ते
वह
खुद
कायम
रहे.
उसके
शुरुआती
तौर-तरीकों
पर
गौर
करें
तो
समझ
में
आता
है
कि
उसे
सबसे
पहले
नगरपालिका
के
चुनाव
लड़ने
चाहिए
थे.
गली-मोहल्लों
के
स्तर
पर
वह
नागरिकों
की
जिन
कमेटियों
की
कल्पना
लेकर
आई,
वह
अच्छी
थी.
इस
मामले
में
मुख्यधारा
की
पार्टियां
फेल
हुई
हैं.
पर
जनता
के
साथ
सीधे
संवाद
के
आधार
पर
फैसले
करने
वाली
प्रणाली
को
विकसित
करना
मुश्किल
काम
है.
उसके
भीतर
वही
तत्व
घुसा,
जो
दूसरे
दलों
में
है।
खुद में खो चुकी है 'आप'
आम आदमी का ग्राफ जितनी तेजी से बढ़ा था उतनी ही तेजी से गिरा भी है। आम आदमी पार्टी शहरी मध्यवर्ग के प्रतिनिधि दल के रूप में उभरी थी. दिल्ली में उसी वर्ग ने उसका साथ छोड़ा. बेशक झुग्गी-झोपड़ी उसके साथ हैं, पर यह वह तबका है, जिसे मुफ्त बिजली-पानी और इलाज आकर्षित करता है. वह वोट बैंक है. मुख्यधारा की राजनीति उसे सपने दिखाकर अपना काम चला रही है. उस लोकलुभावन राजनीति से शहरी मध्यवर्ग का मोहभंग हो चुका है. आम आदमी पार्टी इस वर्ग की राजनीति का संदेश लेकर आई थी. इसमें वह फेल हुई है.इस पार्टी ने दो संकेत दिए थे. जनता से जुड़ाव और पारदर्शिता. भारतीय राजनेता आज भी सामंती दौर के निवासी लगते हैं आप का अपना कोई रेडीमेड विचार और दर्शन नहीं है. जो भी है बन और ढल रहा है। अभी एक बार फिर से शुन्य से शुरू करने की बात अरविंद केजरीवाल कर रहे है क्या होगा पता नहीं। लेकिन जनता बार-बार भरोसा नहीं करती है।
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