क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

देश के गरीब बच्चों के भविष्य के साथ मोदी सरकार की ऐतिहासिक भूल

मोदी सरकार का यह फैसला देश के भविष्य को चौपट कर सकता है, इस कानून को वापस लेना बहुत जरूरी

Google Oneindia News

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने संसद में शिक्षा के अधिकार के कानून में एक बड़ा संशोधन पारित कराया है। इसके अनुसार अब कक्षा 8 तक के बच्चों को वार्षिक परीक्षा पास नहीं करने पर फेल किया जा सकेगा। इस संशोधन के बाद राज्य कभी भी यह कानून लागू कर सकते हैं जिसके काफी दूरगामी दुष्परिणाम होंगे क्योंकि इस प्रस्ताव में भारत की विभिन्न आर्थिक और सामाजिक वास्तविकताओं को दरकिनार कर दिया गया है खासकर जो यहां के कमजोर तबके से जुड़ी हुई हैं।

गर्त में चला जाएगा बच्चों का भविष्य

गर्त में चला जाएगा बच्चों का भविष्य

मानव संसाधन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार प्राथमिक कक्षाओं में 2014-15 का ड्राप-आउट रेट 4 प्रतिशत है और बच्चो के मात्र परीक्षा में फेल हो जाने की वजह से उनको मौजूदा कक्षा में रोक लेने से यह रेट बढ़ जाएगा। फेल हुए बच्चों के मां-बाप सोचेंगे की उसको पढाई की बजाए किसी ऐसे कार्य में लगा दिया जाए जिससे घर की कुछ कमाई हो सके। गरीब समाज के लोगों के पास इतने संसाधन भी नहीं होते हैं कि वे अपने बच्चों की ट्यूशन लगा सके ताकि वह दूसरे साल दोबारा परीक्षा पास कर सके। इसका सीधा परिणाम यह होगा की वह बच्चा पढ़ाई छोड़ कर कोई ऐसा काम करने लगेगा जिससे उसका भविष्य के उज्ज्वल होने की संभावनाएं अंधेरे में चली जाएंगी।

इस कानून से लड़कियों का भविष्य अधर में

इस कानून से लड़कियों का भविष्य अधर में

इस कानून से सबसे जादा परेशानी देश की बालिकाओं को झेलनी पड़ेगी। उनके सामने लड़कों के मुकाबले वैसे ही कई चुनौतियां होती हैं। जैसे स्कूल की घर से अधिक दूरी, घर का काम-काज, अपने भाई-बहनों की देख रेख, बाल-विवाह, मासिक धर्म के दौरान अच्छी सैनिटरी नैपकिंस का नहीं होना और स्कूल में टॉयलेट नहीं होने की वजह से भी लड़कियों की शिक्षा जल्दी बंद करा दी जाती है। लड़कियों के कम उम्र में ही स्कूल छोड़ने पर उनके बाल-विवाह और किशोर अवस्था में ही गर्भवती होने की आशंकाएं बढ़ जाती हैं। भारत एक ऐसा देश है जहां पर बाल विवाह की तादाद विश्व में दुसरे स्थान पर है क्योंकि यहां पर बालिकाओं को बोझ की तरह समझा जाता है। ऐसे में जब उनको स्कूल में फेल कर दिया जाएगा तो उनका परिवार उन्हें दोबारा उसी कक्षा में भेजने की बजाए उनकी शादी करना ही जादा बेहतर समझेगा। यह सरकार के बेटी बचाओ बेटी पढाओ के नारे के साथ एक मजाक की तरह ही होगा।

मौलिक अधिकार का हनन है यह कानून

मौलिक अधिकार का हनन है यह कानून


सरकार का यह प्रस्ताव शिक्षा के अधिकार का भी खंडन करता है जोकि एक मौलिक अधिकार है जिसमे 14 साल के बच्चों को ज़रूरी और मुफ्त शिक्षा देने की बात की गई है। इस कानून के पीछे एक यह भी सिद्धांत था कि कम उम्र में ही बच्चों को शिक्षा दे दी जाए ताकि बड़े होने में पर उन्हें प्राथमिक शिक्षा लेने के लिए कम उम्र के बच्चों के साथ बैठने में शर्म नहीं महसूस हो। लेकिन इस प्रस्ताव में इस सिद्धांत को भी दरकिनार कर दिया गया है क्योंकि जिन बच्चों को फेल कर दिया जाएगा उन्हें भी अपने से छोटे बच्चों के साथ बैठकर पढ़ाई करने में ऐसी ही शर्म महसूस होगी।

 कानून को वापस लेना बहुत जरूरी

कानून को वापस लेना बहुत जरूरी


यह फैसला इस बात का भी ध्यान नहीं रखता है कि भारत में सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की उचित मात्रा और उनकी गुणवत्ता में कितनी कमी है जिसकी वजह से शिक्षा चंद निजी विद्यालयों के सहारे ही रह गई है, जोकि गरीब बच्चों के परिवार के सामर्थ्य के बाहर आते हैं। ऐसे में जरूरी है कि इस कानून को वापस ले लेना चाहिए क्योकि अब तक चल रही नो-डिटेंशन पालिसी से कमजोर तबके के लाखों परिवारों को लाभ पंहुचा है और उसे खत्म करने से गरीब और अमीर के बीच की दूरी और अधिक बढ़ जाएगी और शिक्षा का स्तर और भी गिर जाएगा।

Comments
English summary
A historical mistake of Modi government which will take the kids to dark age. This law need to be taken back.
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X