तीन दिन में 70 किमी पैदल चला किसान, बैंक से निकाल पाया 2000 रुपये
तीन दिन तक पैदल चलकर बिहारी दास बैंक से सिर्फ 2000 रुपये निकाल पाए।
उत्तर प्रदेश। महोबा के रहने वाले किसान बिहारी दास तीन दिन तक पैदल बैंक जाते और पैसे निकालने में नाकाम होकर आते रहे। चौथे दिन उनका नंबर आया तो बैंक ने बता दिया कि 2000 से ज्यादा किसी को नहीं मिलेगा। एनडीटीवी ने बिहारी दास के साथ एक दिन गुजार उनकी कहानी बताई है।
आमतौर पर बिहारी दास सुबह सात बजे उठकर बुदेलखंड के अपने खेतों का रुख करते हैं। इस सुबह उनकी दिशा उल्टी है। 62 साल के दास कैश की उम्मीद में 10 किमी चलकर पास के बैंक जा रहे हैं।
पिछले तीन दिन से लगातार वो बैंक जा रहे हैं, आज उसी कड़ी का चौथा दिन है। वो हर बार पैदल ही आए और गए हैं, हां एक दफा उन्हें बाइक पर लिफ्ट मिल जाने की वजह से 10 किमी के पैदल सफर से राहत मिली है।
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बिहारी दास को अपने चार एकड़ जमीन को सिंचाई करनी है ताकि वो सर्दियों के मौसम की फसल के लिए खेत को तैयार कर सकें। उन्हें सिंचाई के लिए खेत पर लगा पंप चलाने के लिए डीजल चाहिए।
बिहारी पिछले तीन दिन से बैंक जाकर लंबी लाइन में खड़े होते हैं लेकिन जब तक वो बैंक के गेट के नजदीक पहुंचते हैं, कैश खत्म हो जाता है। बैंक के अंदर से कोई आकर इसकी जानकारी देता है और वो निराश होकर लौट आते हैं।
चौथे दिन आखिर बैंक से मिला कैश
चौथे दिन फिर वो लाइन में हैं। लंबी लाइन से उन्हें कोई ताज्जुब नहीं हुआ क्योंकि तीन दिन से उन्हें ऐसी ही लाइन मिल रही है। बिहारी दास के खाते में 20 हजार रुपये हैं और वो 10 हजार रुपये निकालना चाहते हैं ताकि फसल की सिंचाई से लेकर बुवाई तक निपट जाए।
बैंक के सामने लाइन में खड़े बिहारी दास का दिल एक बार फिर बैंक की ओर से किए गए एलान से टूट जाता है। एक अधिकारी ने बाहर आकर घोषणा की है कि किसी को 2000 रुपये से ज्यादा नहीं मिलेगा।
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बैंक से आखिर बिहारी दास 2000 के नोट लेकर निकलते हैं और उसे मोड़ कर कुर्ते की जेब में रख लेते हैं। 70 किमी चलने के बाद 2000 बैंक से लेकर बिहारी दास अब गांव के लिए लौटते हैं।
रास्ते में एक दुकान से डीजल खरीदते हैं। सिंचाई के लिए पंप चलाना है और उसके लिए उन्हें डीजल चाहिए। दुकानदार उन्हें 1000 रुपये का डीजल देता है क्योंकि इससे कम का लेने पर वो 2000 के नोट के खुले देने में असमर्थता जाहिर करता है।
1000 रुपये और डीजल लेकर बिहारी दास के कदम तेजी से अपनी गांव की तरफ बढ़ते हैं। गांव के आने से एक किमी पहले ही पक्का रास्ता खत्म हो जाता है।
घर में है सिर्फ 11 साल की बेटी
बिहारी दास तेजी से अपने घर पहुंचता है। ये दो कमरों की एक झोपड़ी है। वो थके तो हैं लेकिन एक कप चाय का भी उनके पास वक्त नहीं है। वो डीजल लेकर खेत की तरफ बढ़ जाते हैं।
बिहारी दास बताते हैं कि उनके दो बेटे गांवसे बाहर रहते हैं, साथ में सिर्फ एख 10-11 साल की बेटी है। ऐसे में वो खुद ना जाएंगे तो भला कौन उनके लिए जाकर बैंक में लगेगा।
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बिहारी दास अपने खेत पर पहुंच जाते हैं। यहां उनके बराबर में ही उनके दो भाईयों के भी खेत हैं। डीजल इंजन में डालकर हत्थी लगा वो उस स्टार्ट करते हैं और सिंचाई शुरू कर देते हैं।
नाका लगातर सुनिश्चित हो जाने के बाद कि अब पानी ठीक से खेत में जाता रहेगा, वो बैठ जाते हैं। उनके पास हजार रुपये बचे हैं लेकिन जुताई और फिर बुवाई के लिए काफी ज्यादा पैसे चाहिएं।
बिहारी दास अपने कुर्ते की जेब से कुछ मूंगफली निकलते हैं और खाते हुए कहते हैं कि हां पैसे तो ज्यादा चाहिए लेकिन कल की कल को देखेंगे। इतना कहकर दास एकटक पंप की नाल से निकल रहे पानी को देखने लगते हैं।
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