पाकिस्तान को ठिकाने लगाने का एकदम सही बैठ रहा पीएम मोदी का दांव!
नई दिल्ली। उरी आतंकी हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केरल में एक रैली की थी। इस रैली ने उन्होंने पाकिस्तान को ललकारा था और चुनौती दी थी कि भारत, पाकिस्तान को दुनिया में अलग-थलग करके रहेगा।
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ऐसा लगता है कि पीएम मोदी ने पाक को अलग-थलग करने के लिए जो रणनीति अपनाई थी वह अब सफल होने लगी है। आगामी सार्क सम्मेलन इसका उदाहरण हो सकता है।
एशिया के लिए अहम है सार्क
सार्क सम्मेलन पिछले कुछ वर्षों में एशिया के लिए एक अहम अंतराष्ट्रीय मंच साबित हुआ है। पिछली बार का सार्क सम्मेलन नेपाल की राजधानी काठमांडू में हुआ था तो इस बार का सार्क सम्मेलन पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में होने वाला था।
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आतंकी हमले के बाद आशंका जताई गई थी कि पीएम मोदी इस सम्मेलन में हिस्सा लेने नहीं जाएंगे। मंगलवार को इस खबर की पुष्टि हो गई। भारत अब इस सम्मेलन में नहीं शामिल होगा।
भारत के बिना सम्मेलन का कोई मतलब नहीं
भारत के अलावा अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान और श्रीलंका ने भी सम्मेलन में हिस्सा लेने से इंकार कर दिया है। श्रीलंका ने तो कहा है कि अगर भारत इस सम्मेलन में नहीं शामिल होता तो सम्मेलन का औचित्य ही नहीं बचता है।
सार्क की शुरुआत बांग्लादेश में वर्ष 1985 में की गई थी। इसका मकसद एशिया के कुछ देशों के बीच आर्थिक सहयोग को बढ़ाना है। एशिया के इन देशों का सार्क सम्मेलन से वॉकआउट करना भारत के लिए एक बड़ा प्लस प्वांइट है।
भारत के इस कदम के बाद दक्षिण एशिया में पाक को जो समर्थन अभी तक मिलता है वह कहीं न कहीं कमजोर होगा।
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एक भी देश नहीं तो रद्द सम्मेलन
सार्क या साउथ एशियन एसोसिएशन फॉर रीजनल कूऑपरेशन एक ऐसा सम्मेलन है जिसमें सभी आठ सदस्यों का शमिल होना काफी जरूरी है।
अगर एक भी देश शामिल नहीं होता है तो फिर इस सम्मेलन को रद्द कर दिया जाता है। ऐसे में अब इस सम्मेलन के होने की कोई भी संभावना नजर नहीं आ रही है।
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जो किसी ने नहीं किया वह नवाज ने किया
पाकिस्तान तीसरी बार सार्क सम्मेलन की मेजबानी करने वाला था। वर्ष 1988 में जब बेनजीर भुट्टो पाकिस्तान की पीएम थी तब 29 से 31 दिसंबर तक सार्क सम्मेलन का आयोजन इस्लामाबाद में हुआ था।
इसके बाद वर्ष 2004 दो से छह जनवरी तक पाक में सार्क सम्मेलन हुआ था। जब उस समय के पीएम जफरुल्ला खान जमाली ने इस सम्मेलन की मेजबानी की थी।
नवाज इस समय पाक पीएम हैं और उनके नेतृत्व में पहली बार पाक सार्क का मेजबान बनने वाला था। लेकिन नवाज के कार्यकाल में सार्क सम्मेलन का कैंसिल होना के लिए एक बड़ी असफलता है।
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जब चार वर्ष बाद हुआ सार्क सम्मेलन
जनवरी 2002 में काठमांडू में चार वर्षों बाद सार्क सम्मेलन का आयोजन काठमांडू में हुआ था। भारत ने वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध की वजह से इस सम्मेलन का बायकॉट कर दिया था। तब चार वर्षों तक सम्मेलन नहीं हुआ था।
जब काठमांडू में यह सम्मेलन हुआ तो उस समय के भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने पाक से हिस्सा लेने पहुंचे जनरल परवेज मुशर्रफ का स्वागत गर्मजोशी से हाथ मिलाकर किया था। इसके बाद उन्होंने मुशर्रफ को कड़ा संदेश भी दिया था।
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इस बार पाक को नो चांस
2014 में भी जब सार्क सम्मेलन हुआ था तो आखिरी दिन पीएम मोदी और पाक पीएम नवाज शरीफ ने आपसी तनातनी को खत्म करते हुए हाथ मिलाया था। पीएम मोदी ने उस समय कहा था कि सार्क में कोई देश रहे या न रहे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है।
अब लगने लगा है कि भारत, पाक को कोई भी मौका देने के लिए ख्वाहिशमंद नहीं है। पीएम मोदी का सार्क सम्मेलन में हिस्सा न लेने का फैसला इस ओर ही एक इशारा है।