आरबीआई अधिकारियों ने बताया, 2000 के मुकाबले क्यों कम हैं 500 के नोट
आरबीआई के अधिकारियों ने कहा कि 500 के नोट की कमी की सवाल सरकार ये पूछा जाना चाहिए, ना कि आरबीआई से।
मुंबई। नोटबंदी के बाद देशभर में कैश की किल्लत का सामना जनता को करना पड़ रहा है। 2000 और 500 के नए नोट बाजार में आए हैं लेकिन इसमें मुश्किल ये है कि बाजार में 2000 के नोट ज्यादा हैं और 500 के काफी कम। ऐसे में 2000 के नोट का खुला मिलने में लोगों को भारी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है।
आम जनता के बीच इस बात को लेकर कई सवाल हैं कि आखिर 500 के नोट से पहले 2000 के नोट क्यों बाजार में लाए गए और 500 के नोट इतनें कम क्यों हैं। इस पर आरबीआई के कई आधिकारियों ने जवाब दिया है।
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500 के नोटों की कमी का दोष आरबीआई को देने पर गुस्सा जताते हुए रिजर्व बैंक के अधिकारियों ने कहा है कि इसमें आरबीआई को दोष देना गलत है। आरबीआई आधिकारियों ने इकॉनोमिक्स टाइम्स को बताया है कि क्यों बाजार में 500 के नोटों की कमी है।
500 के नोट आरबीआई की नहीं, सरकारी प्रेस में छप रहे
आरबीआई अधिकारियों ने बताया है कि 2000 रुपए के नए नोटों की छपाई मैसूर स्थित आरबीआई की प्रेस में हो रही है। 100 के नोटों की छपाई पश्चिम बंगाल के सबनोली में हो रही है, ये प्रेस भी आरबीआई के अंतर्गत है। वहीं 500 रुपए के नोटों की छपाई महाराष्ट्र के नासिक और मध्यप्रदेश के देवास स्थित प्रेस में हो रही है, ये प्रेस सरकार के नियंत्रण में हैं।
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आरबीआई अधिकारियों ने दोष दिए जाने पर कहा है कि हमें कैसे दोषी ठहराया जा सकता है, जबकि सारे फैसले सरकार ले रही है। हमें तो वित्त मंत्रालय के अधिकारियों की बयानों के बाद ही संबंधित नोटिफिकेशन मिल रहे हैं।
अधिकारियों का कहना है कि सरकार नोटबंदी के ऐलान से पहले इस बात को समझने में पूरी नाकाम रही कि इतने बड़े स्तर पर नोटों की अदला-बदली में कितना समय लगेगा और उसके लिए बैंकों पर कितना भार बढ़ेगा।
अधिकारियों का कहना है कि आरबीआई ने 2000 के नोटों की छपाई बहुत पहले ही शुरू कर दी थी, जबकि सरकारी प्रेस में 500 को नोट काफी बाद में छपने शुरू हुए। ऐसे में एटीएम और बैंक में 2000 के नोट तो काफी आ गए हैं लेकिन 500 के नोट कम आए हैं।
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पूर्व वित्त मंत्री चिंदंबरम ने हाल ही में एक आंकड़ा देते हुए बताया है कि जितनी बड़ी संख्या में करेंसी की अदला-बदली होनी है, उसे देखते हुए इसमें सात महीने का समय लगेगा। ऐसे में बहुत जल्दी हालात समान्य नहीं होने की उम्मीद कम है।