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26/11 के नायक मेजर संदीप को नहीं भूल सकता देश

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नई दिल्ली (विवेक शुक्ला)। जब-जब देश 26/11 को हुए मुंबई हमले को याद करता है, तब उसे 31 वर्षीय अमर शहीद मेजर संदीप उन्नीकृष्णन की भी याद आती ही है। जाहिर है, बहादुर के पिता के. उन्नीकृष्णन अपने जिगर के टुकड़े को कैसे भूल सकते हैं, जिसने देश के लिये अपनी जान न्योछावर कर दी।

26/11: Sandeep Unnikrishan is deeply missed by his father

कैसे किया था आतंकियों से मुकाबला

मेजर संदीप भारतीय सेना के एनएसजी कमांडो थे। 26/11 को उन्हें ताज महल होटल के बचाव का दायित्व सौंपा गया। उन्होंने 10 कमांडो के दल के साथ होटल में प्रवेश किया व छठे तल पर पहुँचे जहाँ उन्हें महसूस हुआ कि आतंवादी तीसरे तल पर छुपे हैं आतंकवादियों ने कुछ महिलाओं को बंधक बनाया हुआ था। दरवाजा तोड़ कर उन्होंने गोलीबारी का सामना किया, जिसमें कमांडो सुनील यादव घायल हो गए। मेजर संदीप ने अपने प्राणों की चिंता न करते हुए सुनील को वहाँ से निकाला, लगातार गोलीबारी का उत्तर देते रहे और भागते हुए आतंकवादियों का पीछा भी किया। कुई को मार भी गिराया। लेकिन इस बीच उन्हें पीछे से गोलियां लगीं जिसके कारण उन्होंने बाद में दम तोड़ दिया। मेजर संदीप को मरणोपरांत उनके अनुकरणीय साहस के लिए अशोक चक्र से सम्मानित किया गया।

संदीप के पिता का संघर्ष

राजनेताओं ने तो शहीदों की शहादतों पर भी सियासत करना कभी नहीं छोड़ा, मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के घर पर जब केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री अच्युतानन्दन जी उनके पिता के. उन्नीकृष्णन के पास संवेदना व्यक्त करने गए थे, उस समय मेजर के घर की चेकिंग खोजी कुत्तों द्वारा करवाई गई थी, जिस कारण बुरी तरह से भड़के हुए शोक-संतप्त पिता ने मुख्यमंत्री अच्युतानन्दन को दुत्कार कर अपने घर से भगा दिया था।

धिक्कारे जाने के बाद अच्युतानन्दन का बयान था कि "यदि वह घर संदीप का नहीं होता तो उधर कोई कुत्ता भी झाँकने न जाता..."। संदीप के पिता सरकार से इसलिए नाराज रहे कि देश आतंकवाद से लड़ने के सवाल पर पिलपिली नीति क्यों बनाता है। उन्होंने एक बार पूछा था मीडिया से, क्या चाहता है आखिर एक शहीद का परिवार इस देश से? इस देश के लोगों से? महज इतना ही कि उनके सपूतों की शहादत मजाक बन कर ना रह जाए। उनकी शहादत से कोई नेता खिलवाड़ ना कर सकें।

मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के चाचा मोहनन ने कुछ साल पहले राजधानी में मुंबई आतंकवादी हमले के पीड़ितों के प्रति निष्ठुर रवैया रखने का आरोप लगाते हुए विजय चौक के पास, संसद के द्वार संख्या चार के बाहर केरोसिन का तेल डालकर आत्मदाह का प्रयास किया था। मोहनन ने इलाज कर रहे डॉक्टरों को बताया था कि सरकार जिस तरह से मुम्बई हमले के पीड़ितों से व्यवहार कर रही है वह उससे बहुत दुखी हैं। वह मेजर उन्नीकृष्णन की मौत से बहुत परेशान थे।

पिता और बेटे के यादगार पल

संदीप अपने माता-पिता की इकलौती संतान थे। के.उन्नीकृष्णन तो कहते हैं कि संदीप के संसार में रहने के कारण उनका दुनिया में रहने का कोई मतलब नही रह गया है। वे और उनकी पत्नी जिंदा लाश की तरह हो गए हैं। वे चाहते थे कि अपना शेष जीवन संदीप के साथ ही बिताएं। उसकी जिधर भी पोस्टिंग हो वहां पर ही रहें। वह भी यही चाहताथा। पर दोनों ओर से योजनाएं बनती रहीं।

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English summary
26/11 hero Sandeep Unnikrishan is deeply missed by his father. Sandeep fought bravely against terrorists.
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