1993 मुंबई ब्लास्ट: 30 जुलाई को हो ही नहीं सकती याकूब मेनन को फांसी, जानिए क्यों
नयी दिल्ली (ब्यूरो)। 1993 में हुए मुंबई सीरियल बम ब्लास्ट के आरोपी और मास्टरमाइंड याकूब अब्दुल रज्जाक मेमन उर्फ याकूब मेनन को 30 जुलाई को फांसी नहीं होगी। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटीशन खारिज होने के तुरंत बाद उसने आखिरी उम्मीद के तौर पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को दया याचिका भेजी है। अगर दया याचिका स्वीकार हो जाती है तब तो कोई बात नहीं लेकिन अगर स्वीकार नहीं भी होती है तो भी 30 जुलाई को मेनन को फांसी नहीं दी जा सकती।
क्यों है 14 दिनों के अंतराल का नियम
जनवरी 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश दिया था जिसके मुताबिक दया याचिका खारिज होने और फांसी दिए जाने के दिन के बीच कम से कम 14 दिनों को अंतराल होना चाहिए। उस वक्त चीफ जस्टिस ऑफ सुप्रीम कोर्ट सदाशिवम के नेतृत्व वाली तीन जजों की बेंच ने कहा था, ''इस गैप से दोषी खुद को सजा के लिए तैयार कर सकेगा और अंतिम बार वह अपनी फैमिली के मेंबर्स से मिल सकेगा। यह जेल सुपरिडेंटेंट पर निर्भर करता है कि दोषी की फैमिली दया याचिका खारिज होने की सूचना समय रहते पा जाए।''