इन 10 वजहों से पीएम मोदी को समझनी होगी ओआरओपी की अहमियत
नई दिल्ली। वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) को लागू करने में हो रही देरी के खिलाफ जंतर-मंतर पर भूख हड़ताल शुरू हो गई है। पिछले करीब तीन दशकों से इस योजना को लागू करने का इंतजार हो रहा है लेकिन अभी तक आश्वासनों के अलावा कुछ और नहीं मिल सका है।
सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर इसके समर्थन पर पेज शुरू हुआ है। जानकार मानते हैं कि आरओपी सिर्फ एक स्कीम नहीं है बल्कि यह भविष्य में देश को मिलने वाले सैनिकों के लिए भी वह उम्मीद है जो उन्हें बेहतर करने पर प्रोत्साहित करती है।
खासतौर पर ऐसे समय में जब देश अच्छे ऑफिसर और जवानों की कमी का सामना कर रहा है और उस पर खतरे पहले की तुलना में दोगुने हो चुके हैं। हड़ताल पर बैठे पूर्व सैनिक अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस मसले पर बात करने की तैयारी कर चुके हैं।
ओआरओपी-कितना अंतर
ओआरओपी स्कीम के बाद हर सैनिक को उसकी सेवा के आधार पर एक ही रैंक के बराबर सैलरी मिल सकेगी। इस पर उसकी रिटायरमेंट की तारीख से कोई असर नहीं पड़ेगा।
वर्तमान में जो स्थिति है उसके मुताबिक वर्ष 2006 से पहले रिटायर होने वाले सैनिक को उसके बाद रिटायर होने वाले अपने समकक्ष अधिकारियों और जूनियर से कम सैलरी मिलती है।
जैसे-जैसे पे-कमीशन लागू होते गए यह अंतर और बढ़ता गया और वर्ष 2000 में तो यह खाई और चौड़ी हो गई।
उदाहरण के तौर पर अगर कोई सिपाही वर्ष 1996 में रिटायर हुआ है तो उसे वर्ष 2006 में रिटायर होने वाले सिपाही की तुलना में 82 प्रतिशत कम पेंशन मिलेगी। अगर आफिसर की बात करें तो 1996 में रिटायर होपे वाले मेजर को, 2006 में
रिटायर होने वाले मेजर की तुलना में 53 प्रतिशत तक कम पेंशन मिलती है। इसी अंतर की वजह से आज पूर्व सैनिकों में रोष है। वे चाहते हैं कि हर सैनिक को उसकी सेवा के बराबर ही पेंशन दी जाए।
क्यों जरूरी है ओआरओपी
एक नजर डालिए उन 10 अहम बिंदुओं पर जिनकी वजह से अब पीएम नरेंद्र मोदी को इस योजना को अमल में हर हालत में ले आना चाहिए।
- पूर्व सैनिकों की मानें तो ओआरओपी पर ढुलमुल रवैया वर्तमान सैनिकों के मनोबल पर बुरा असर डाल रहा है।
- एक सैनिक कभी भी पैसे के लिए युद्धभूमि नहीं छोड़ सकता, लेकिन हक से दूर रखना लड़ने की ताकत प्रभावित कर सकता है।
- जो पूर्व सैनिक आज हड़ताल पर हैं, उनकी भावी पीढ़ी के मन में सेना के खिलाफ एक माहौल तैयार हो रहा है।
- आज दूसरे सेक्टर्स की तुलना में जल्दी रिटायर हो जाते हैं। ऐसे में उन्हें मिलने वाले अलाउंसेज काफी कम होते हैं।
- सेना में दूसरी सरकारी सेवाओं की तुलना में शारीरिक तौर पर अक्षम होने पर उन्हें तुरंत ड्यूटी से हटा दिया जाता है।
- किसी भी एमएनसी में काम करने वाले एक इंप्लॉयी की सैलरी की तुलना में पेंशन काफी कम है।
- सैनिक दूसरे सेक्टर्स की तुलना में कई कठिनाईयों को सहते हैं और काफी कठिन वातावरण में रहते हैं।
- पूर्व सैनिकों को आज अप्रत्यक्ष तौर पर किसी भी पे-कमीशन का फायदा नहीं मिल पा रहा है।
- पहले रिटायर हुए सैनिक के मन में वर्तमान में रिटायर होने वाले सैनिक के लिए द्वेष की भावना न आने पाए।
- आखिर में अपने देश के लिए शहीद होने वाले और युद्धभूमि में तैयार सैनिकों के सम्मान की रक्षा के लिए।