तिब्बतियों को आसानी से नहीं मिलेगा भारतीय पासपोर्ट
ऐसे में स्त्री हो या पुरुष उसे केंद्रीय तिब्बती प्रशासन की ओर से दिए जा रहे वित्तिय लाभ भी छोड़ने होंगे।
शिमला। भारत में रह रहे लाखों तिब्बती मोदी सरकार के एक फैसले को लेकर जहां खासे उत्साहित थे, वहीं एक बदलाव ने उन्हें मायूस कर दिया है। तिब्बतियों की उस मांग को भारत सरकार ने मान लिया था। जिसमें उन्हें भारतीय पासपोर्ट देने की बात थी। लेकिन अब जब फैसला अमल में आया तो इसमें बनाई गई शर्तों में सारी कवायद उलझकर रह गई।
चूंकि भारत में रह रहे जो तिब्बती भारतीय पासपोर्ट लेना चाह रहे हैं वो अब न केवल आवासहीन माने जाएंगे, बल्कि उन्हें शरणार्थी के तौर पर केंद्रीय तिब्बती प्रशासन की ओर से मिलने वाली सुविधाएं भी नहीं मिल पाएंगी। भारतीय विदेश मंत्रालय के ताजा आदेशों में ये कहा गया है। यही वजह है कि हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला से सटे मैकलोडगंज जो कि तिब्बत की सरकार का मुख्यालय भी है, वहां मायूसी का आलम है।
6 जून को क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय बेंगलुरु की ओर से बाकायदा एक प्रपत्र जारी किया गया है, जिसमें भारत में रह रहे तिब्बती जो भारतीय पासपोर्ट का आवेदन करना चाह रहे हैं, उनके लिए चार शर्तों का उल्लेख किया गया है। भारतीय पासपोर्ट लेने वाले तिब्बतियों का आवेदन करते ही उनका आरसी यानी रिफ्यूजी सर्टिफिकेट खत्म हो जायेगा और उसके बाद आवेदक भारत में तिब्बतीयों के किसी भी शरणार्थी शिविर में रहने का पात्र नहीं रहेगा। उसके साथ ही आवेदक स्त्री हो या पुरुष उसे केंद्रीय तिब्बती प्रशासन की ओर से दिए जा रहे वित्तिय लाभ भी छोड़ने होंगे। ये सब शर्तें अब तिब्बतियों को रास नहीं आ रहीं है। तिब्बती लंबे समय से मांग करते रहे हैं कि भारत में जन्म लेने वाले तिब्बतियों को भारतीय पासपोर्ट लेने का हक दिया जाए। वर्तमान केंद्र सरकार ने इस मांग को मान लिया था। जिससे तिब्बतियों में खुशी झलकी थी लेकिन अब धरातल पर फैसले की ये बात सामने आई तो तिब्बतियों के होश उड़ गए।
इस समय करीब डेढ़ लाख तिब्बती भारत में हिमाचल प्रदेश से लेकर कर्नाटक तक हैं और करीब 35 शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं। दरअसल इन मामलों से पर्दा उस समय उठा जब बेंगलुरु से एक तिब्बती बौद्ध भिक्षु ने भारतीय पासपोर्ट के लिए आवेदन किया था। उसे तब अपना शरणार्थी सर्टिफिकेट सरेंडर करने को कहा गया और दूसरी शर्तों के तहत आवेदन करने को कहा गया। अब तिब्बतियों में इसको लेकर अपनी सरकार के प्रति भी गुस्सा देखा जा रहा है। आरोप लगाया जा रहा है कि सीटीए ने भारतीय विदेश मंत्रालय के साथ इस मामले में काई होमवर्क ही नहीं किया। तिब्बतियों में बेचैनी इस बात को लेकर है कि नए कानून से वो होमलेस हो जाएंगे।
इस बीच केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के एक अधिकारी अपना नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहते हैं कि तिब्बतियों के लिए भारतीय पासपोर्ट लेने की बात उनकी इच्छा पर निर्भर है, वो लेना चाहें तो लें। लिहाजा हम नए कानूनी मापदंड़ों पर कुछ नहीं बोल सकते। मिस तिब्बत प्रतियोगिता के प्रायोजक लोबसंग वान्गयाल ने बताया कि सितंबर 2016 में दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि 26 जनवरी 1950 से लेकर 1 जुलाई 1987 के बीच भारत में जन्म लेने वाले तिब्बती भारतीय नागरिक हैं और उन्हें भारतीय नागरिकता कानून के तहत पासपोर्ट दिया जाए।
ये आदेश अदालत में दायर जनहित याचिका पर दिए गए फैसले में आया था। उन्होनें कहा कि भारतीय विदेश मंत्रालय ने तो हमें अंधेरे में धकेल दिया है। अब अगर हम भारतीय पासपोर्ट लेना चाहें तो हम होमलेस हो जाएंगे। ये तो वो बात हो गई कि हम अब दूसरी बार बेघर होंगे। हमें अब सुनियोजित तरीके से वहां से जाने को कहा जा रहा है जहां हमने जन्म लिया और जीवन बिताया। उन्होंने बताया कि बेंगलुरु में दो तिब्बती महिलाओं ने भारतीय पासपोर्ट का आवेदन किया तो उन्हें अपने शरणार्थी शिविरों के अलावा कोई दूसरा एडरेस देने को कहा गया।
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