हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017: ज्वालामुखी विधानसभा क्षेत्र के बारे में जानिये
ज्वालामुखी विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र हिमाचल प्रदेश विधानसभा में 12 नंबर सीट है। कांगड़ा जिले में स्थित यह निर्वाचन क्षेत्र अनारक्षित है। 2012 में इस क्षेत्र में कुल 65,474 मतदाता थे।
शिमला। ज्वालामुखी विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र हिमाचल प्रदेश विधानसभा में 12 नंबर सीट है। कांगड़ा जिले में स्थित यह निर्वाचन क्षेत्र अनारक्षित है। 2012 में इस क्षेत्र में कुल 65,474 मतदाता थे। 2012 के विधानसभा चुनाव में संजय रत्न इस क्षेत्र के विधायक चुने गए। किसी जमाने में व्यापार वाणिज्य के लिये मशहूर ज्वालामुखी आज देश-दुनिया में हिन्दुओं का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल बन कर उभर आया है। ज्वालामुखी पर किसी जमाने में गोसाईं समुदाय का अधिपत्य था। यह लोग हैदराबाद से यहां आकर बसे। बाद में बदलते वक्त के साथ ज्वालामुखी मंदिर की वजह से प्रसिद्धि मिली। यहां जल रही ज्योतियां हर किसी के लिये हैरानी का विषय रहती हैं। मंदिर की वजह से ही ज्वालामुखी फला और फूला।
भाजपा का रहा है वर्चस्व
2008 में, विधान सभा निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के बाद ज्वालामुखी में थुरल निर्वाचन क्षेत्र जो कि आज जयसिंहपुर है से कट कर आठ पंचायतें मिलीं। व देहरा नगर पंचायत और कथोग से आगे व पाईसा का हिस्सा ज्वालामुखी से कट गया। ज्वालामुखी अब डोहग देहरियां से लेकर कथोग व भड़ोली कोहाला से दरीण तक की 23 पंचायतें और खुंडियां तहसील की 19 पंचायतों तक सिमित रह गया है। चंगर में थिल ,बारी ,महादेव,डोला खरियाना,पुखरू,लगड़ू, बग्गी सलिहार, सुराणी, अलुहा, टिहरी, मझीन, स्यालकड़, टिपरि, जरुन्दी, नाहलियां पीहडी गलोटी, घरना, खुंडीयां पंचायतें आती हैं। यह इलाका चंगर और बलिहार दो भागों में बंटा है। चंगर खुंडिया तहसील का हिस्सा है जबकि बलिहार निचला इलाका है जो दरीण, संधंगल सिल्ह, भड़ोली कोहाला से लेकर डोहग देहरियां व कथोग तक है। राजनैतिक तौर पर देखा जाये तो ज्वालामुखी में भारतीय जनता पार्टी का ही वर्चस्व रहा है। कांग्रेस यहां से दो ही बार चुनाव जीत सकी है।
सबसे ज्यादा राजपूत मतदाता
विधानसभा परिसीमन के बाद ज्वालामुखी में जातीय समीकरण भी बदले हैं। यहां अब राजपूत सबसे अधिक मतदाता हैं तो दूसरे नबंर पर ओबीसी मतदाता हैं। उसके बाद अनूसूचित जाति के मतदाता हैं। बाद में ब्राह्मण मतदाता हैं। अन्य जातियां उसके बाद हैं। यहां चंगर के राजपूत व बलिहार के ब्राहम्ण मतदाता राजनिति की दशा व दिशा तय करते आये हैं। रमेश धवाला के लगातार 15 साल तक यहां विधायक चुने जाने के पीछे समीकरण यह था कि ओबीसी मतदाता धवाला के साथ थे और उन्हें ब्राहम्ण भी सर्मथन देते रहे। धवाला को ओबीसी सर्मथन देते आये हैं। उन्हें अपनी बिरादरी नेता मानती रही है।
पिछले चुनाव में राजपूत-ब्राह्मण मतदाता आए थे साथ
हालांकि धवाला पर जातिवाद को बढ़ावा देने का आरोप भी लगा व 2012 के चुनावों में कांग्रेस ने जब ब्राहम्ण प्रत्याशी के तौर पर संजय रतन को टिकट दिया तो ब्राहम्ण उनके साथ हो लिये व यहां राजपूत-ब्राह्मण का ऐसा कंबीनेशन बना कि धवाला की 15 साल की सल्तनत खत्म हो गई और संजय रतन विधायक चुने गये। उस समय कांग्रेस प्रत्याशी को कांग्रेस के पंरपरागत अनूसूचित जाति के वोटों का भी लाभ मिला। ज्वालामुखी के लोागें की अजिविका का प्रमुख साधन परंपरागत काम धंधे ही हैं। कुछ लोग नौकरी पेशा में भी हैं।
ज्वालामुखी विधानसभा क्षेत्र एक नजर में
जिला:
कांगड़ा
लोकसभा
चुनाव
क्षेत्र
:
कांगड़ा
मतदाता:
67,460
जनसंख्या
(2011)
:
87008
साक्षरता
:
72
प्रतिशत
अजिविका:
खेती
बाड़ी
शहरीकरण:
इलाका
ग्रामीण
ज्वालामुखी से अभी तक चुने गये विधायक
वर्ष
विधायक
पार्टी
कुल
मतदाता
2012
संजय
रत्न
कांग्रेस
65,474
2007
रमेश
चंद
भाजपा
66,261
2003
रमेश
चंद
भाजपा
59,027
1998
रमेश
चंद
निर्दलीय
48,530
1993
केवल
सिंह
कांग्रेस
45,173
1990
धनी
राम
भाजपा
41,600
1985
ईश्वर
चंद
निर्दलीय
32,528
1982
कश्मीर
सिंह
राणा
भाजपा
30,383
1977
कश्मीर
सिंह
राणा
जनता
पार्टी
27,300
पहले कांग्रेस से बगावत, फिर कांग्रेस से विधायक
ज्वालामुखी के विधायक 54 वर्षीय संजय रतन पास ही के गरली में पैदा हुये। वह कला और कानून में स्नातक हैं। पत्नी रितू रतन और उनका एक बेटा है। कांग्रेस के छात्र संगठन व युवा कांग्रेस होते हुये संजय रतन राजनीति में आए और कांग्रेस से लगातार दो बार बगावत कर निर्दलीय चुनाव हारने के बाद 2012 में कांग्रेस टिकट पर विधायक चुने गये। कहा जा सकता है कि किस्मत ने उनका साथ दिया।