हिमाचल में धूमल-नड्डा की आपसी लड़ाई, संकट में भाजपा
भाजपा का एक बड़ा वर्ग अब मानकर चलने लगा है कि चुनावों की कमान नड्डा को ही मिलेगी। निसंदेह पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार का खुलकर सर्मथन नड्डा को मिलने से वो मजबूत हुए हैं।
शिमला। ज्यों-ज्यों हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, प्रदेश भाजपा के भीतर भी नेतृत्व को लेकर संघर्ष छिड़ने लगा है। भाजपा के कुछ नेताओं ने अंदर ही अंदर ये मुहिम छेड़ दी है और पिछले दिनों की कुछ घटनाओं ने इस बात को और भी जोर दिया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा की हिमाचल में लगातार बढ़ रही गतिविधियां भी कुछ ऐसा ही संकेत दे रही हैं।
भाजपा का एक बड़ा वर्ग अब मानकर चलने लगा है कि चुनावों की कमान नड्डा को ही मिलेगी। निसंदेह पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार का खुलकर सर्मथन नड्डा को मिलने से वो मजबूत हुए हैं। वहीं नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल की रातों की नींद अब उड़ने लगी है। बदले हालातों में अगर कोई खुश है तो वो शांता कुमार ही होंगे। चूंकि उन्हें धूमल से अपना पुराना हिसाब-किताब निपटाना है। इसके लिए उन्हें नड्डा से बेहतर कोई और नहीं मिल सकता। नड्डा-शांता की जुगलबंदी ने प्रदेश में नए राजनीतिक समीकराण उभारे हैं। नड्डा के प्रदेश में लगातार दौरे हो रहे हैं। नड्डा ने खुद कहा है कि अगर पार्टी आलाकमान कहेगी तो वो ही सीएम पद के दावेदार होंगे।
हालांकि अभी तक हिमाचल भाजपा में नेता प्रतिपक्ष प्रेमकुमार धूमल ही सर्वमान्य नेता हैं और अब दूसरी पंक्ति के कुछ नेताओं ने उनके खिलाफ मुहिम छेड़ रखी है। वहीं उनके लिए उनकी बढ़ती उम्र भी बाधा बनने लगी है। विरोधी दलील दे रहे हैं कि धूमल अब 74 के हो गए हैं तो अब पार्टी उन्हें सीएम के तौर पर सामने नहीं रखेगी। पिछले दिनों कांगड़ा से लेकर अर्की तक जो गतिविधियां रही, उससे हिमाचल भाजपा के भीतर खेमेबाजी सार्वजनिक रूप से उजागर हुई है और ये लगातार बढ़ती नजर आ रही है। सोशल मीडिया में तो धूमल समर्थकों ने बकायदा एक अभियान छेड़ रखा है। जिसमें धूमल को लोकप्रिय नेता के तौर पर प्रस्तुत किया जा रहा है। पिछले दिनों अमित शाह के दौरे के दौरान कांगड़ा एयरपोर्ट पर सीएम पद के लिए नड्डा के समर्थन में लगे नारे और अर्की में धूमल के खास रहे गोविंद राम शर्मा की रैली में नड्डा की मौजूदगी ने कई तरह के सवाल खड़े किए हैं।
इसके साथ-साथ दूसरी लाइन के कुछ भाजपा नेताओं की नड्डा के पीछे सक्रियता ने भी राज्य में राजनीतिक गतिविधियां बढ़ाई हैं। उधर, नेता प्रतिपक्ष प्रेमकुमार धूमल भी सभी गतिविधियों पर नजर रखे हुए हैं और वे भी अपने विश्वस्तों के माध्यम से अपनी गोटियां फिट कर रहे हैं। धूमल के साथ-साथ उनके सांसद पुत्र अनुराग ठाकुर और अनुराग के छोटे भाई अरुण धूमल भी मैदान में डटे हैं। लेकिन अभी भी स्पष्ट तौर पर पार्टी आलाकमान ने चुनावों की कमान धूमल को थमाने की कोई पहल नहीं की है। हिमाचल भाजपा को लगा गुटबाजी का रोग बताता है कि भाजपा के भीतर बढ़ रही गुटबाजी टिकट के मामले के चलते भी बढ़ रही है। जिस नेता को लगता है कि धूमल खेमे में दाल गलने वाली नहीं है, वे नड्डा के साथ हो रहे हैं और वहां अपनी रोटियां सेंकने का प्रयास कर रहे हैं।
यहीं से राज्य में भाजपा की खेमेबाजी बढ़ रही है। इस रणनीति में नड्डा के कुछ करीबी जुटे हुए हैं और वे दिल्ली तक सक्रिय हैं। इन हालातों के बीच प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतपाल सत्ती संतुलन बनाने का प्रयास कर रहे हैं और वो इसे कितना बनाकर रख पाते हैं, ये आने वाले समय में ही स्पष्ट होगा। बहरहाल, राज्य में भाजपा के भीतर अब खेमेबाजी का रोग लग चुका है। अभी तक इससे कांग्रेस ही ग्रसित थी लेकिन सत्ता में आने की संभावनाओं के बीच भाजपा में ये रोग बढ़ने लगा है। पांच राज्यों के चुनावों के बाद से भाजपा को लगने लगा है कि वो यहां भी अपना परचम लहराएगी। इसी के चलते भाजपा में गुटबाजी बढ़ रही है और दोनों खेमे अपनी-अपनी गोटियां फिट करने में लगे हैं। इन गुटों के बीच चर्चा इस बात को लेकर भी है कि कहीं ऐसा न हो कि इन दो की लड़ाई में मलाई कोई तीसरा ले जाए। ऐसे में आने वाले दिनों में भाजपा के भीतर की गुटबाजी क्या गुल खिलाती है, ये देखना दिलचस्प रहेगा।