सावन स्पेशल: पांडवों ने बनवाया था कांगड़ा का यह फेमस शिव मंदिर
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में प्राचीन शिव मंदिर जिसके बारे में कहा जाता है कि इसे पांडवों ने बनवाया था। इस मंदिर की कहानी रावण से भी जुड़ी है।
शिमला। हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा में बैजनाथ मंदिर में सावन माह के पहले सोमवार को भक्तों का तांता लगा हुआ है। बड़ी तादाद में श्रद्धालु दर्शन के लिए आ रहे हैं जिससे बैजनाथ नगरी बम-बम भोले के उद्घोष से शिवमयी बन गई है। पुराणों के अनुसार श्रावण मास में भगवान शिव की उपासना के लिये सबसे उपयुक्त समय माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि श्रावण मास में शिवलिंग पर किए गए जलाभिषेक एवं विल्बपत्र, धतूरा इत्यादि अर्पित करने से भोलेनाथ शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्तों को मनवांछित फल प्रदान करते हैं।
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सावन महीने में मंदिर का विशेष महत्व
हर वर्ष इस मंदिर में श्रावण मास के दौरान पड़ने वाले सभी सोमवार को मंदिर में पूजा-अर्चना का विशेष महत्व रहता है। मंदिर समिति श्रावण मास के सभी सोमवार को मेले का आयोजन करती है। शिव मंदिर बैजनाथ उत्तरी भारत का एक तीर्थस्थल माना जाता है जिसका धार्मिक, ऐतिहासिक और पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है। वर्ष भर प्रदेश के अतिरिक्त देश-विदेश से भी लाखों की तादाद में आने वाले श्रद्धालु एवं पर्यटक इस प्राचीन मंदिर में विद्यमान प्राचीन शिवलिंग के दर्शन के साथ-साथ इस क्षेत्र की प्राकृतिक नैसर्गिक छटा का भरपूर आनंद उठाते हैं।
खीर गंगा घाट पर स्नान के बाद पूजन
बैजनाथ में विनवा खड्ड पर बने खीर गंगा घाट में श्रावण मास में स्नान करने का विशेष महत्व है तथा मन्दिर न्यास द्वारा खीर गंगा घाट का सुधार करके श्रद्धालुओं के स्नान की बेतहर व्यवस्था की जाती है। मेले के दौरान श्रद्धालु स्नान करने के उपरान्त शिवलिंग को पंचामृत से स्नान करवा कर उसपर विल्व पत्र, फूल, भांग, धतूरा इत्यादि अर्पित कर भोले नाथ को प्रसन्न करके अपने कष्टों एवं पापों का निवारण कर पुण्य कमाते हैं।
शिल्प एवं वास्तुकला का अनूठा व बेजोड़ नमूना
ऐतिहासिक शिव मंदिर प्राचीन शिल्प एवं वास्तुकला का अनूठा व बेजोड़ नमूना है जिसके भीतर शिवलिंग अर्ध नारीश्वर के रूप में विद्यमान है। जनश्रुति के अनुसार द्वापर युग में पांडवों द्वारा अज्ञातवास के दौरान इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था परन्तु कार्य पूर्ण नहीं हो पाया। शेष निर्माण कार्य आहुक एंव मनूक नाम के दो व्यापारियों ने पूर्ण किया था और तब से लेकर अब तक यह स्थल शिवधाम के नाम से उत्तरी भारत में विख्यात है।
रावण और शिव से जुड़ी है इस जगह की कहानी
इस मंदिर में शिव लिंग स्थापित होने बारे कई किवदंतियां प्रचलित हैं। जनश्रुति के अनुसार राम रावण युद्ध के दौरान रावण ने शिव को प्रसन्न करने के लिये कैलाश पर्वत पर घोर तपस्या की थी और भगवान शिव को लंका चलने का वर मांगा ताकि युद्ध में विजय प्राप्त की जा सके। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर रावण के साथ लंका एक पिंडी के रूप में चलने का वचन दिया और साथ में यह शर्त रखी कि वह इस पिंडी को कहीं बिना जमीन पर रखे सीधा इसे लंका पहुंचायें। जैसे ही शिव की इस आलौकिक पिंडी को लेकर रावण लंका की ओर रवाना हुआ रास्ते में कीरग्राम (बैजनाथ) नामक स्थान पर रावण को लघुशंका महसूस हुई और उन्होंने वहां खड़े एक व्यक्ति को थोड़ी देर के लिये पिंडी सौंप दी। लघुशंका से निवृत होकर रावण ने देखा कि जिस व्यक्ति के हाथ में वह पिंडी दी थी वह ओझल हो चुके हैं और पिंडी जमीन में स्थापित हो चुकी थी। रावण ने स्थापित पिंडी को उठाने के काफी प्रयास किये परन्तु सफलता नहीं मिल पाई फिर उन्होंने इस स्थली पर घोर तपस्या की और अपने दस सिर की आहुतियां हवन कुंड में डालीं। तपस्या से प्रसन्न होकर रूद्र महादेव ने रावण के सभी सिर पुन: स्थापित कर दिये।
सावन महीने में की जाती है विशेष व्यवस्था
इस वर्ष श्रावण मास में पारम्परिक मेले का आयोजन बड़े हर्षोल्लास के साथ किया जा रहा है, जिसके लिये प्रशासन एवं मन्दिर न्यास द्वारा श्रद्धालुओं की सुरक्षा के साथ-साथ वाहन पार्किंग, बिजली, पानी एवं ठहरने की उचित व्यवस्था उपलब्ध करवाने के लिये व्यापक प्रबन्ध किये गये हैं ताकि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की कोई असुविधा न हो। इसके अतिरिक्त श्रद्धालुओं की सुरक्षा के दृष्टिगत मंदिर परिसर एवं शहर के प्रमुख स्थलों में सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए हैं।
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