मेरी बाइक और डा. एपीजे अब्दुल कलाम की कार!
[अजय मोहन] बात साल 2007 की है जब पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम लखनऊ आये थे। जहां-जहां कलाम साहब को जाना था, वो सभी जगहें उत्साह से भरी हुई थीं। उत्साह मेरे अंदर भीपुलकित हो रहा था, क्योंकि एक रात पहले मेरी एडिटर ने मुझे कलाम साहब को कवर करने की जिम्मेदारी दी थी। खैर सुबह उठते ही मैंने बाइक उठायी और कलाम साहब से पहले ही उस प्राथमिक विद्यालय में पहुंच गया, जहां कलाम साहब को आना था।
स्कूल पहुंचा तो देखा टीचर बच्चों को वो सिखा रही थीं, जो उन्हें कलाम साहब को बोलना था। मेरे पत्रकार मित्र भी मेरे साथ थे। उन्होंने बच्चों से पूछा, "कौन आ रहा है तुम्हारे स्कूल में?" बच्चे मूक दर्शक बने खड़े रहे, तभी पीछे से टीचर बोलीं, "बताते क्यों नहीं अबुल कलाम आजाद आ रहे हैं।" उस टीचर के बोल सुनते ही मुझे समझ में आ गया, कि कलाम साहब देश की प्राथमिक शिक्षा को लेकर क्यों इतने चिंतित हैं।
खैर दोपहर ढलते-ढलते कलाम साहब आये और उन्होंने करीब डेढ़ घंटा उन गरीब बच्चों को दिया, जो हर रोज नंगे पैर स्कूल जाते थे। उनके आने से फर्क इतना पड़ा कि सरकार ने बच्चों के लिये ड्रेस, किताबों और जूतों का बंदोबस्त कर दिया।
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वहां से कलाम साहब का काफिला निकल गया। कार में शीशा खोल कर बैठे कलाम साहब की एक झलक पाने के लिये लखनऊ के लोग बेकाबू होते दिख रहे थे। उनकी कार निकली और पीछे से मेरी बाइक। अगला पड़ाव था केंद्रीय विद्यायलय गोमतीनगर। मुझे पता था कि मेरी बाइक कलाम साहब के काफिले से पहले पहुंच जायेगी, किसी सीएम या पीएम का काफिला होता, तो शायद मैं पीछे रह जाता, लेकिन कलाम साहब का काफिला तो तब आगे बढ़ता, जब लोग उन्हें जाने देते।
स्कूल में प्रवेश करते ही बच्चे उन्हें छूने के लिये दौड़ पड़े। कोई और होता तो शायद सिक्योरिटी गार्ड मना करते, लेकिन बच्चों को.... ऊंहू! कोई उनका हाथ दू रहा, तो कोई पैर, कोई फ्लाइंग किस दे रहा, तो कोई बस एक टक उन्हें देख रहा। उन बच्चों के बीच मैं भी खड़ा था। शायद कुछ देर के लिये मैं भी बच्चा बन गया था। छूने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहा, क्योंकि सिक्योरिटी गार्ड ने मुझे पीछे कर दिया।
जब कलाम साहब स्कूल में लगी साइंस एक्जिबिशन को देखने निकले, तो हर 10 में से तीन स्टॉल पर रुकते और बच्चों से सवाल करते? उनसे उस प्रोजेक्ट के पीछे छिपे फॉर्मूले पूछते और आईडिया देते। जो बच्चे खुलकर जवाब देते, उनके सिर पर हाथ रखकर कहते, "गॉड ब्लेस यू"।
रंगारंग कार्यक्रमों के बाद कलाम साहब की स्पीच होनी थी, कार्यक्रम पहले ही देर से शुरू हुआ था, इसलिये मुझे और मेरे साथी पत्रकारों को उनसे मिलने का मौका नहीं दिया गया। निराशा थी, लेकिन हिम्मत अभी बाकी थी, क्योंकि उनका अगला पड़ाव होटल ताज था।
कलाम साहब की स्पीच खत्म होते ही धन्यवाद ज्ञापन शुरू हुआ। मुझे मालूम था कि धन्यवाद ज्ञापन में 50 से ज्यादा लोगों के नाम लिये जायेंगे और तब तक मैं अपनी बाइक से होटल ताज पहुंच जाउंगा।
मैं बाइक लेकर ताज होटल पहुंच गया, जहां स्वागत की सभी तैयारियां पूरी हो चुकी थीं। मुझे मालूम था कि कलाम साहब का समय मिलना यहां भी आसान नहीं होगा। मैं गेट पर ही खड़ा हो गया। काफिला आया और कलाम साहब के उतरे और आगे बढ़े। अस यहीं से मैं उनके साथ हो लिया।
इंट्रोडक्शन का समय नहीं था, सीधे सवाल पूछने शुरू कर दिये
- प्र. लखनऊ में सबसे अच्छा क्या लगा?
- उ. बच्चे!
- प्र. यूपी को चीज की सबसे ज्यादा जरूरत है?
- उ. शिक्षा, बिजली और अच्छी कृषि व्यवस्था की!
- प्र. यूपी में आईआईटी, आईआईएम, सब है, तो आपको नहीं लगता कि यूपी आगे बढ़ रहा है?
- उ. नहीं! जब तक प्राथमिक विद्यालयों में सुधार नहीं होगा तब तक आईआईएम, आईआईटी से कुछ नहीं होने वाला।
- प्र. आपके पास कोई एक आईडिया जो लखनऊ को बदल सके?
- उ. यहां के रिसर्च इंस्टीट्यूट को विश्वस्तरीय बना दें तो दुनिया खुद चलकर आयेगी।
इससे पहले कि आगे सवाल पूछता, कि लोगों के हुजूम ने कलाम साहब को घेर लिया और वो तेजी से आगे निकल गये। हालांकि बाद में ताज होटल के हॉल में फिर से 15 मिनट की मुलाकात हुई, लेकिन वो ग्रुप इंटरव्यू था। इस ग्रुप इंटरव्यू को कवर करते-करते मेरे नोटपैड का आखिरी पन्ना भर चुका था, क्योंकि उससे पहले हुई कलाम साहब की स्पीच से ही सारे पन्ने भर चुके थे।
कभी न भूल पाने वाले उस दिन के लिये मैं शुक्रिया अदा करना चाहूंगा अपनी बाइक को, जो कलाम साहब की कार के आगे-आगे चली। अगर वो खराब हो जाती, तो शायद आज मैं यह श्रद्धांजलि नहीं लिख पाता।