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किताबों का लखनवी अंदाज़: खुदा कसम इश्क हो जायेगा

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आंचल श्रीवास्तव

स्वतंत्र पत्रकार
आंचल प्रवीण स्वतंत्र पत्रकार आंचल पत्रकारिता एवं जनसंचार में पोस्ट ग्रेजुएट हैं, आंचल को ब्लोगिंग के अलावा फोटोग्राफी का शौक है, वे नियमित रूप से राष्ट्रीय और अंतरष्ट्रीय मुद्दों पर लिखती रहती हैं।

लखनऊ। अमा मियां ज़रा गौर फरमाइए, तारीख़ ने आज के दिन को किताबों के नाम मुक़र्रर कर रखा है यानी की आज का दिन विश्व पुस्तक दिवस के रूप में मनाया जाता है।

विश्व पुस्तक दिवस: किताबों से सच्चा और अच्छा दोस्त कोई नहीं

#worldBookDay: Lucknow Literature is full of Sweetness

अब आप सोचते होंगे की मुझे अचानक से ये उर्दू फारसी का शौक कहाँ से लग गया, मैं आपको बता दूं की हम लखनवी है गंगा जमुनी तहज़ीब हमारी रगों में दौड़ती है। हमारी सुबह में अज़ान और आरती दोनों के रंग और सुर मिलते हैं। हम तन्दूरी गोश्त और दाल बाटी दोनों खाने में धाकड़ हैं। भारत के साहित्य में हमारे लखनऊ का बहुत बड़ा और अहम हिस्सा है।

लखनऊ की सुबह में अजान भी और आरती भी

हिंदी उर्दू और फारसी भाषा के मील मिलाप से बना हुआ साहित्य तबसे मशहूर है जब भारत में मुघलों का राज था। लखनऊ हमेशा से ही ग़ज़ल और इश्क़न्दाज़ी का केंद्र रहा, नवाबों के काल में ये भाषा शैली खूब फूली फली।यहाँ हिन्दू कवि हुए और मुसलमान शायर| बृजनारायण चकबस्त, ख्वाजा हैदर अली आतिश, विनय कुमार सरोज, आमिर मीनाई, मिर्ज़ा हादी रुसवा, नासिख, दयाशंकर कौल नसीम, मुसाहफ़ी, इनशा, सफ़ी लखनवी और मीर तकी "मीर" तो प्रसिद्ध ही हैं, जिन्होंने उर्दू शायरी तथा लखनवी भाषा को नयी ऊंचाइयों तक पहुंचाया है। लखनऊ शिया संस्कृति के लिए विश्व के महान शहरों में से एक है। मीर अनीस और मिर्ज़ा दबीर उर्दू शिया गद्य में मर्सिया शैली के लिए प्रसिद्ध रहे हैं।

लखनऊ हमेशा से ही ग़ज़ल और इश्क़न्दाज़ी का केंद्र रहा

स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल, जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने काकोरी में फांसी पर लटका दिया था, उर्दू शायरी से खासे प्रभावित थे, एवं बिस्मिल उपनाम से लिखते थे| इनके बाद भी कई लेखकों और साहित्यकारों ने अपनी कलम से लखनऊ को संवारा है। आज की तारीख में पूरी दुनिया में लखनऊ का नाम इसकी नजाकत और नफासत के लिए जाना जाता है।

लखनवी आंचल में फूल तो गलियों में फरिश्ते

कहते हैं की लखनऊ के आँचल में मोहब्बत के फूल खिलते हैं ; इसकी गलियों में फरिश्तें पटे मिलते हैं। लखनऊ है तो महज़, गुंबदो मीनार नहीं; सिर्फ़ एक शहर नहीं, कूच और बाज़ार नहीं। योगेश प्रवीण साहब की यह पंक्तियां लखनऊ का चित्र तो बनती ही हैं साथ ही यहाँ की भाषा और साहित्य की एक बेमिसाल झलक दिखलाती है।

लखनवी साहित्य: मिठास भी और चटख भी

तो इस पुस्तक दिवस पर कुछ अलग पढने का दिल करे तो लखनवी साहित्य को पढियेगा। इसमें दशहरी की मिठास है और बिरयानी की चटख। डूब कर देखिये इसकी तहज़ीब की गहराई में कहीं दूसरी दुनिया में उतराते हुए महसूस करेंगे खुद को।प्यार हो जाएगा आपको इस शहर से यहाँ के साहित्य से इसकी किताबों से।

पढ़ें आंचल श्रीवास्तव के सार्थक लेख केवल वनइंडिया पर

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English summary
Lucknow, the city of Nawabs was once the epicenter of the quakes of various literary, cultural and social activities.
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