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हम केवल 'गुल' ही नहीं बल्कि 'गुलजार' भी करते हैं...

By रेखा पचौरी
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लखनऊ। आजकल लड़कियों को एक गाना खूब भा रहा है.. चिट्टियाँ कलाइयाँ वे ओ बेबी मेरी चिट्टियाँ कलाइयाँ वे.. रेडियो से लेकर टीवी सब जगह इस गाने को बेहद पसंद किया जा रहा है. थोड़ा फ्लेशबैक मे चलते हैं. ऐसा ही एक गाना मुझे याद आ रहा है .. गोरी हैं कलाइयाँ , तू लादे मुझे हरी हरी चूडियाँ.. अब आप सोच रहे होंगे कि इन दोनों गानों मे क्या कनेक्शन है. चलिए मैं बता देती हूं.. दोनों ही गाने अपने समय के बेहतरीन गाने हैं पर दोनों ही गानों मे एक बात सोचने वाली है कि दुनिया बदल गयी, दुनिया के नियम क़ानून बदल गए, लेकिन लड़कियों को लेकर गीतकारों ओर समाज की सोच जस की तस है।

Why Women only Depend on Others in Our Films

समय बदला लेकिन सोच नहीं

दोनों ही गानों मे लड़की अपनी ज़रूरत के लिए अपने साजन पर ही निर्भर है. अब यहां सवाल ये उठता है कि यदि आज की नारी इतनी सशक्त है कि अपने निर्णय खुद ले सकती है, एक वक्त में जॉब और घर दोनों सम्हाल सकती है तो फिर क्यों फिल्मों मे उन्हें कमतर आँका जाता है। एक वक़्त था जब सिनेमा में हीरोइन केवल हीरो के पीछे छिपने और गाना गाने का काम करती थीं।

शॉपिंग और पिक्चर दिखाने की ड्यूटी केवल हीरो की

समय बदलता गया, हीरोइन गुंडों से लड़ने लगी, लहंगे और साड़ी छोड़कर पैंट पहनने लगी लेकिन फिर भी बिना हीरो के उसकी जिंदगी अधूरी होती. उसके बाद महिलाओं को केंद्र में रखकर फिल्मे बनने लगीं. महिलाओं की समस्याओं को प्रमुखता से उठाया गया लेकिन बात आज भी वही है। खुलकर अपनी ज़रूरतों का इज़हार करने और फिल्मों में सशक्त रूप में दिखाए जाने के बावजूद अभी भी शॉपिंग और पिक्चर दिखाने की ड्यूटी केवल हीरो की ही है. कहना ग़लत न होगा कि समाज मे जनमत का निर्माण करने मे फिल्मों की एक बड़ी भूमिका है. फिल्मे बदलाव का एक रास्ता दिखाती हैं लेकिन गीतकार जब फिल्म की नायिका को सोच कर गाने लिखता है तो अभी भी वही अठारह वीं शताब्दी की नायिका की ही झलक मिलती है जहां वे अपने होने वाले पति या अपने साजन से खुद की इच्छाओं की पूर्ति करने की अपेक्षा करती हुई दिखाई जाती हैं।

दूसरों पर निर्भर क्यों?

Why Women only Depend on Others in Our Films

ज़मीनी हकीकत इससे कहीं अलग है, हमारे देश मे इन्द्रा नूई, सानिया मिर्ज़ा,साहना नेहवाल, चंदा कोचर, अरुंधती भट्टाचार्य जैसी महिलाएं हैं जो सशक्त महिलाओं का नेतृत्व करती हैं. ये महिलाएं देश की प्रगति मे अनवरत अपना योगदान दे रही हैं, ओईसीडी इकनोमिक सर्वे ऑफ़ इंडिया के मुताबिक भारत में महिला उद्यमियों की संख्या लगातार बढ़ रही है।विशेषकर उत्पादन के क्षेत्र में जहाँ यह हिस्सेदारी चालीस प्रतिशत के आसपास है।

महिला सशक्त हो तो पूरी तरह से हो

एक समान समाज के लिए इसे एक अच्छी शुरुआत के तौर पर देखा जा सकता है. एक वक़्त था जब आधी आबादी देश की जीडीपी में बहुत अधिक हिस्सेदारी नहीं रखती थी लेकिन अब महिलायें भी टैक्स अदा करने वालों की लिस्ट में बढ़ती जा रही है. जब समाज में इतना बदलाव आ गया तो सिनेमा के गाने वहीँ क्यों हैं. शायद यह कोई बहुत बड़ा मुद्दा नहीं है लेकिन बड़ा मुद्दा ये है कि अगर महिला सशक्त हो तो पूरी तरह से हो, समाज में भी और फिल्मों में भी।

महिलाओं का दृष्टिकोण भी बदलना चाहिए

आधी चीज़ों में वह सशक्त कहलाये और बाकी आधी में निर्भर, यह तो ग़लत होगा न। अगर समाज बदल रहा है तो महिलाओं का अपनी जिंदगी को देखने का यह दृष्टिकोण भी बदलना चाहिए. लड़कियां खुद को नए नज़रिए से देखना शुरू करें जहाँ वे किसी की प्रेमिका और पत्नी होने के अलावा भी अपनी पहचान रखती हैं। वे भी टैक्स अदा करती हैं, देश के आर्थिक विकास में अपना योगदान देती हैं और सिर्फ़ होममेकर ही नहीं एक ज़िम्मेदार नागरिक होने का भी फ़र्ज़ अदा करती हैं।

फिल्मों के गाने के अंदाजे बयां भी बदलेंगें

आप बदलेंगे तो समाज बदलेगा और धीरे धीरे फिल्मों के गाने के अंदाजे बयां भी बदलेंगें और फिर ऐसे गाने सुनते वक्त मेरी जैसी किसी लडकी के मन में ये सवाल नहीं उभरेगा कि लड़कियां किसी लड़के को खुद क्यूँ कुछ नहीं दे सकती वे हमेशा मांगती क्यों रहती हैं तो मेरी जैसी आज की भारत की लड़कियां अपना हक़ मांग कर नहीं छीन कर लेंगीं। क्यों आपको क्या लगता है?

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English summary
Women only Depend on Others in Our Films.This is the reality of every other movie in India today. India tops the chart in showing attractive women in its movies and as much as 35% of these female characters are shown with some nudity.
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