महात्मा गांधी को 'राष्ट्रपिता' सबसे पहले बोस ने ही कहा था...
नई दिल्ली। नेताजी सुभाष चंद्र बोस का व्यक्तित्व के बहुत सारे पहलू ऐसे हैं जिनके बारे में पढ़कर लगता है कि वो महात्मा गांधी के विचारों से काफी इत्तफाक नहीं रखते थे, इन्हीं कारणों की वजह से राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी में बोस को वो जगह नहीं मिली जो कि पंडित नेहरू को मिली थी। अपने विरोध की ही वजह से बोस ने कांग्रेस पार्टी छोड़ी थी।
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लेकिन नहीं ऐसा नहीं है, बोस और गांधी के बीच में वैचारिक मुद्दों पर मतभेद जरूर हो लेकिन दोनों के बीच में मनभेद कभी नहीं था।
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बोस ने कहा था गांधी को राष्ट्रपिता
बापू के सिद्धांत और बातों ने ही तो बोस को स्वतंत्रता आंदोलन के लिए प्रेरित किया था और बोस की प्रतिभा ने ही उन्हें गांधी का प्रिय शिष्य बनाया था और शायद यही कारण था कि जून 1944 को सुभाषचंद्र बोस ने सिंगापुर रेडियो से एक संदेश प्रसारित करते हुए महात्मा गांधी को देश का पिता (राष्ट्रपिता) कहकर संबोधित किया था।
तिलक बनाम गोखले
इतिहास पर गौर करें तो सन 1921 में भारत आते ही बोस ने गांधी से मुलाकात की और इसके बाद कांग्रेस में काम शुरू कर दिया था। यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष भी चुने गए लेकिन, बोस बाल गंगाधर तिलक (गरम दल) के समर्थक थे जबकि गांधी गोपाल कृष्ण गोखले (नरम) दल के। शुरूआती मतभेद यहीं से प्रारंभ हुए।
'पूर्ण स्वराज' का नारा
सन 1927 में सुभाष चंद्र बोस ने 'पूर्ण स्वराज' का नारा दिया। यह पहला मौका था जब गांधी जी और उनके बीच के खराब संबंध सामने आए। सन 1928 में इस नारे को कमजोर कर दिया गया। नरम-गरम दल के बीच दूरियां इसमें काफी बढ़ी। इसके बाद 1929 में गांधी जी ने नेहरू को कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया। 1942 में बोस के इसी नारे को नए ढंग से पेश कर कांग्रेस ने देशभर में बड़ा आंदोलन छेड़ा था।
बोस ने कांग्रेस से ही इस्तीफा दे दिया
इसके बाद सन 1939 में बोस कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के लिए खड़े हुए और काफी अंतरों से जीत भी गए। जबकि गांधी जी ने उन्हें चुनाव से हटने को कहा था और वे पट्टाभि सीतारमैया को अध्यक्ष बनाना चाहते थे। फिर जब गांधी जी ने सीतारमैया की हार पर भावनात्मक टिप्पणी की तो बोस ने कांग्रेस से ही इस्तीफा दे दिया और ऑल इंडिया फारवर्ड ब्लॉक की स्थापना की। इसके बाद बोस ने आजाद हिंद फौज बनाई जिसके खिलाफ में गांधी जी थे।
एक-दूसरे के विरोधी कैसे हो सकते हैं?
लेकिन साल 2015 में जब पश्चिम बंगाल सरकार ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी 64 फाइलों को सार्वजनिक किया तो बहुत सारी बातें सामने आईं, साल 1946 की एक गुप्त फाइल के अनुसार गांधीजी ने अपने एक पत्र में लिखा था कि कुछ साल पहले अखबारों में नेताजी के मरने की ख़बर छापी गई थी। मैंने इस रिपोर्ट पर भरोसा कर लिया था। लेकिन मुझे लगता है कि जब तक नेताजी का स्वराज का सपना पूरा नहीं हो जाता वह हमें छोड़कर नहीं जा सकते क्योंकि नेताजी की अपने दुश्मनों को चकमा देने की क़ाबलियत भी है। बस यही सब बातें हैं जिससे मुझे लगता रहा कि वह अभी भी जिंदा हैं। सोचिए जिनके मन में एक-दूसरे के प्रति ऐसी भावनाएं थी तो भला वो दोनों एक-दूसरे के विरोधी कैसे हो सकते हैं?