'उम्मुल-ख़ैर' होने के मायने: जानिए उम्मुल की पूरी शब्द यात्रा
उम्मुल ख़ैर दरअसल अरबी भाषा का पदबन्ध है और बतौर विशेषण बरता जाता है।
नई दिल्ली। उम्मुल ख़ैर नाम की शख़्सियत चर्चा में है। उसने कमाल कर दिखाया। गर्दिशेदौराँ से गुज़रते हुए उसने कामयाबी की वह चमकदार मंज़िल पाई है, जिसकी कामना उसके सरीखे लाखों संघर्षशील बच्चे करते होंगे।
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बहरहाल, दिल्ली की झुग्गीबस्ती से अपना सफ़र शुरू करते हुए भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में सफल होने वाली इस युवती का नाम अगर रफ़ीक़ा, सईदा, हमीदा, फातिमा भी होता तो भी वह चर्चा में रहती। अलबत्ता, उसकी पहचान बताने वाले इन तमाम नामों पर कोई बात न कर रहा होता। इस होनहार बिरवान के नाम में भी कुछ ख़ास बात है।
जानते हैं क्या हैं उम्मुल ख़ैर के मायने...
लम्बी रिश्तेदारी
उम्मुल ख़ैर दरअसल अरबी भाषा का पदबन्ध है और बतौर विशेषण बरता जाता है। इसका सही अर्थ पता करने से पहले यह भी जान लिया जाए कि अरबी-फ़ारसी में इसके अनेक रिश्तेदार हैं जिनमें से कुछ तो हिन्दी में भी हैं जैसे बेग़म, ख़ानुम, अवाम, आम(तौर वाला), उम्मा, अमूमन, उम्मत, अम्मी आदि। तो उम्मुल ख़ैर का सही रूप है उम्म-अल-ख़ैर जिसका उच्चारण #उम्म_उल_ख़ैर भी किया जा सकता है। अरबी में अल, उल में ज्यादा फ़र्क़ नहीं है। अरबी का उम्म शब्द बहुआयामी है। आशय बीज, उद्गम, स्रोत, मूल और सर्वोच्च से है।
कल्याणी, ममतामयी, सुखदा
उपरोक्त सभी अर्थछटाओं से माँ की अर्थस्थापना होती है क्योंकि माँ में जननीभाव है जो जन्मदायिनी भी है, धरती भी है और मुल्क भी। सृष्टि का निर्माण उसी से माना गया है। अरबी के 'उम्म' की रिश्तेदारी प्राचीन अक्कादी भाषा के 'अम्मु' से है जिसमें संरक्षण और समूहवाची भाव हैं। मोटे तौर पर उम्म का अर्थ माँ, जननी, स्रोत, आधार, ज़रिया है। ख़ैरियत वाले ख़ैर से भी बोलचाल की हिन्दी मालामाल है। हर बात में ख़ैर मनाने वाले जानते है कि इसमें कल्याण, मंगल, खुशहाली, बरक्कत, समृद्धि, प्रसन्नता, कुशल आदि भाव है। तो इस तरह ‘उम्म अल ख़ैर' में बतौर माँ, कल्याणी, सुखदा, ममतामयी, समृद्धिशालिनी की अभिव्यक्ति है।
बेग़म और खानुम
दिलचस्प बात यह कि सेमिटिक भाषा परिवार की कई भाषाओं में अम्मु शब्द का वर्ण विपर्यय होकर माँ के आशय वाले शब्द बने हैं जैसे अक्कद में ‘उम्मु' ummu, अरबी में ‘उम्म', हिब्रू में ‘एम', सीरियाई में ‘एमा' आदि। मेरी नज़र में शिशु जिन मूल ध्वनियों को अनायास निकालता है उनमें सर्वाधिक ‘म' वर्ण वाली ही होती हैं यथा अम्, मम्, हुम्म् आदि। अक्कद भाषा के ‘अम्मु' और ‘उम्मु'दरअसल पालन-पोषण वाले भावों को ही व्यक्त कर रहे हैं। अरबी के उम्म में माँ समेत पोषण, स्रोत, आधार या मूल जैसे आशय समाए। उर्दू में अम्मी इसी उम्म से आ रहा है। बेग़म और खानुम दोनों ही शब्दों के साथ अरबी का उम्म जुड़ा है अर्थात बेग़+उम्म यानी बेग़म या खान+उम्म यानी खानुम। तो इस तरह खान और बेग के साथ उम्म जुड़ने से अपने समूह की प्रभावशाली महिला की अर्थवत्ता मिली जिसमें माँ भी है और समूह भी।
अम्बा, अम्मा, मॉम, अम्मी
इस सन्दर्भ में संस्कृत के अम्ब पर गौर करना चाहिए मम्मी, अम्मा, मम्मा, मॉम, माँ सब के मूल में जलवाची अम्ब ही है, ऐसा लगता है। अरबी उम्म के मूल में ढाई हज़ार साल ईसा पूर्व प्राचीन सुमेरियाई अक्कद भाषा का अम्मु ammu शब्द है यह समूहवाची शब्द है जिसमें सुरक्षा और संरक्षण का भाव भी है । ‘उम्मु'का अर्थ है राष्ट्र या अवाम। ध्यान रहे कि प्रकृति में, पृथ्वी में मातृभाव है क्योंकि ये हमें संरक्षण देते हैं, हमारा पालन-पोषण करते हैं। अक्कद भाषा के ‘अम्मु' और ‘उम्मु' दरअसल पालन-पोषण वाले भावों को ही व्यक्त कर रहे हैं। राष्ट्र के रूप में ‘अम्मु' समूहवाची है, ‘अवाम' यानी जनता तो अपने आप में समूह ही है।
आम यानी सर्वसाधारण
‘उम्मु' में निहित राष्ट्र, नेशन, आबादी के आशय की तुलना प्राचीन भारतीय ‘जन' से कर के देखें। ‘जन' समूहवाची भी है और व्यक्तिवाची भी। यही बात संस्कृत के लोक में भी है। समस्त दृष्यजगत लोक में समाहित है, जो सार्वत्रिक है, वह ‘लोक' है। इसी ‘लोक' से समूहवाची लोग शब्द भी बना है जिसका आशय मनुष्यों से है। इसी नज़रिए से प्राचीन अक्कद के ‘अम्मु' से विकसित अरबी के ‘आम्' को देखना चाहिए जिसका अर्थ है सार्वत्रिक, सार्वलौकिक, सर्वव्यापक जिसमें अब सर्वसाधारण का भाव रूढ़ हुआ। दिलचस्प यह भी है कि ‘आम' की अर्थवत्ता के एक छोर पर माँ है, दूसरे पर अवाम है तो तीसरे पर मुल्क।
...इसलिए उम्मुल-ख़ैर
तो जैसा कि उम्मुल ख़ैर ने कहा है कि उपेक्षित बचपन के बावजूद वह अपनी कामयाबी में अपने माँ-बाप को देखती है और उन्हें हमेशा अपने साथ रखेगी। एक उम्र के बाद बच्चे ही अपने उम्मुलहत (माँ-बाप) के लिए उम्मुल-ख़ैर की भूमिका निभाते हैं। हमें तुम पर फख्र है उम्मुल।