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और कितनी दामिनियों का इंतेजार करेगी सरकार?

By Ajay Mohan
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अन्नू मिश्रा

छात्रा- दिल्ली विश्वविद्यालय
लेखक परिचय- अन्नू दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा हैं। पढ़ाई के साथ-साथ फ्रीलांसर के रूप में कार्यरत हैं। अलग-अलग विषयों पर आपके लेख विभ‍िन्न समाचार पत्रों व न्यूज वेबसाइटों में प्रकाश‍ित हो चुके हैं।

गद्दी बदली शासन बदला, बदल गई जनसत्ता, नारी की वही रही स्थिति अभी तलक अलबत्ता। जी हाँ दिल्ली का मंजर देख कर दिमाग में यही खयाल आता है कि देश की राजधानी महिलाओं के लिए इतनी बेरहम क्यों होती जा रही है। हाल ही में हुए मीनाक्षी कांड ने एक बार फिर महिलाओं को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या वो घर से बाहर सुरक्षित हैं या नहीं? लेकिन फिर मन में एक ही सवाल बार-बार उठता है- और कितनी दामिनियों का इंतेजार करेगी सरकार?

दामनी केस के बाद जब राजनीति का रुख बदला एक नई सरकार के रणभूमि में आने की पहल हुई तो एक आशा जगी, लेकिन महिलाओं के प्रति मौजूदा दिल्ली सरकार के प्रति जो संवेदनशीलता सत्ता में आने से पहले दिख रही थी वो अचानक सत्ता में आने के बाद से फीकी पड़ती नजर आ रही है और हर बार यही हवाला दिया जा रहा है कि क्या करें मजबूर हैं पूलिस हमारे हाथ में नहीं तो हम कैसे करें सुरक्षा।

आप के पुराने दिन

भईया सवाल तो बनता ही है कि जब पुलिस पर ही अधिकार नहीं तो कैसे करेंगे बेचारे सीएम महिलओं की रक्षा। आपको याद तो होगा ही कि यह वही मुख्यमंत्री हैं और यह वही आप पार्टी है, जिन्होंने दामनी केस के समय बहुत बढ़-चढ़ कर तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का विरोध की, उनके मुख्यमंत्री पद पर प्रश्न चिह्न लगाया, बतौर मुख्यमंत्री उनकी जिम्मेदारियों पर, कारर्वाइयों पर तौहमत लगाई।

अब केजरीवाल जब खुद इस कटघड़े में खड़े हैं तो उन्हें दोषारोपण के लिए प्रधानमंत्री याद आ रहे हैं। हम यह नहीं कह रहे कि केजरीवाल जी ने दिल्ली के लिए कुछ नहीं किया, हाँ वो कई क्षेत्रों में काम कर रहे हैं।

कुछ आंकड़े जो चिंताजनक हैं

परंतु मुद्दा जब महिलाओं की सुरक्षा का आता है तो आप सरकार फ्लोप नजर आती है। माजरा यह है कि दिल्ली का क्राइम रेट बढ़ता ही जा रहा है आंकड़ों की मानें तो दिल्ली के क्राइम रेट में लगभग 70.56% की वृद्धि हुई है, जो कि पिछले तीन सालों की तुलना में 74.41% बढ़ गया है। देखिए यह बात सर्वविदित है कि दिल्ली के कुछ मसले केंद्र के अधीन हैं और उस में से एक सुरक्षा भी है क्योंकि पूलिस केंद्र के हाथ में हैं तो इस नजरिए से महिलाओं के लिए जो असुरक्षित माहौल दिल्ली में बन गया है उसके लिए केंद्र सरकार भी जिम्मेदार है इससे कोई इनकार नहीं कर सकता।

मसला यह है कि जो पार्टी हर छोटे से छोटे से मुद्दे के लिए केंद्र सरकार से संघर्ष करने को तैयार है वो बजाए दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के इस बात के लिए संघर्ष क्यों नहीं करती कि दिल्ली में महिलाओं की सुरक्षा के लिए बड़े कदम उठाए जाए, क्या केवल पूलिस पर अधिकार पा लेने से आप दिल्ली की आपराधिक गतिविधियों पर नियंत्रण कर लेंगे?

क्या सिर्फ कैमरे काफी हैं?

संवेदनहीनता तो इस कदर दिखाई गई है कि एक लड़की की इतनी बेरहमी से हत्या हो जाती है और दिल्ली सरकार इसे पूर्ण राज्य की राजनीति के लिए इस्तेमाल कर रही है। कैसे आप को इतना संवेदनशील मान लिया जाए कि दिल्ली जो कि देश की राजधानी है आप उसे पूर्ण रूप से संभाल पाएंगे? क्या सिर्फ कैमरे लगा देना जो कि पता नहीं लगे भी हैं या नहीं बस यही है दिल्ली सरकार की सुरक्षा का इंतेजाम!

क्या कहती हैं दिल्ली की महिलाएं

गीतांजली, सॉफ्टवेयर इंजीनीयर- "दिल्ली में सर्विस करने वाली लड़कियाँ, बिल्कुल सुरक्षित नहीं हैं। असुरक्षा का एक बड़ा कारण लड़कियों के लिए सुरक्षित परिवहन संसाधनों का अभाव है, जिसके कारण भी कई लड़कियाँ ऐसी घटनाओं का शिकार होती हैं। क्या कर रहे हैं प्रधानमंत्री हम महिलाओं की सुरक्षा के लिए?"

रूपा सिन्हा, छात्रा, दिल्ली विश्वविद्यालय- "केजरीवाल जी ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया है जिससे लड़कियों को तो क्या किसी को भी कोई सुरक्षा मिले।"

कीर्ति, छात्रा, दिल्ली विश्वविद्यालय- "महिलाओं की सुरक्षा का दिखावा बहुत हो रहा है, पर कोई बदलाव नहीं आया है। बदलाव केवल कैमरा लगाने से या गार्ड लगाने से नहीं होगा। इरादा भी मजबूत होना चाहिए और साथ में कानून व्यवस्था भी कड़ी होनी चाहिए"।

सुजाता, छात्रा, भारतीय विद्या भवन- "हम अब भी रात में घर से बाहर घूम नहीं सकते, देर से घर लौट पाना बहुत मुश्किल हो जाता है। अगर सुरक्षा होती तो यह स्थिति नहीं होती।"

बबिता अग्रवाल, गृहणी- "मेरी दो बेटियाँ हैं, दोनों ही छोटी हैं पर जो आज दिल्ली का माहौल देखती हूं तो बेटियों को अकेले घर से बाहर खेलने भेजने से भी डर लगने लगा है।"

निशा, गृहणी- "सी.एम तो कुछ कर नहीं पाएंगे, अब हमें अपनी सुरक्षा खुद ही करनी पड़ेग़ी।"

अनु गुप्ता, छात्रा, इग्नु- "सुरक्षा पहले भी कोई बहुत अच्छी तो नहीं थी लेकिन फिर भी आने-जाने में डर नहीं लगता था। लेकिन अब तो रास्ते में भी हर समय डर लगता रहता है। चाहे रात हो या दिन दिल्ली सुरक्षित नहीं है।

रंजना मिश्रा, गृहणी- "जब केजरीवाल हमारी सुरक्षा के लिए कुछ कर ही नहीं सकते थे, तो घोषणा पत्र में इतने वादे क्यों किए। केवल वोट पाने को। दिल्ली तो हमेशा से ही केंद्र के अधीन रही है, लेकिन इतना असहाय प्रधानमंत्री पहली बार देखा है।"

मीनू गुरेजा, आध्यापिका- "दिल्ली में महिलाओं कि सुरक्षा के लिए न तो केजरीवाल कुछ कर रहे हैं, न ही प्रधानमंत्री। हम दोनों से ही निराश हैं।"

Comments
English summary
Recent murder of Meenakshi in Delhi against raised several questions. Here are are talking about what Delhi people are thinking now.
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