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किसी भी 'लहर' से बेपरवाह है वाराणसी

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वाराणसी| दुनिया की सबसे पुराने शहरों में से एक, वाराणसी इन दिनों राजनीतिक सरगर्मी का केंद्र बना हुआ है। हिंदुओं के लिए पावन मानी जाने वाली इस नगरी में बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय भी बसा हुआ है। गंगा किनारे बसे इस नगर को दुनिया भर में अपनी गंगा-जमुनी तहजीब के लिए जाना जाता है।

राजनीत‍ि का संगम-

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री प्रत्याशी नरेंद्र मोदी और दो वर्ष पहले अपने गठन के बाद से ही सर्वाधिक चर्चित आम आदमी पार्टी (आप) के नेता अरविंद केजरीवाल का वाराणसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने के फैसले के बाद पूरे देश की निगाहें वाराणसी पर टिकी हुई हैं।

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कांग्रेस ने भी मोदी और केजरीवाल को चुनौती देने के लिए स्थानीय अजय राय को मैदान में उतारा है। चुनावी सरगर्मी में वाराणसी का पारा कुछ ज्यादा ही चढ़ा हुआ है, और यहां हर गली-कस्बे में इसे लेकर उत्साह का माहौल साफ देखा जा सकता है।

वाराणसी में लोग मोदी की 'चाय पर चर्चा', केजरीवाल की नुक्कड़ सभाओं और अजय राय की जनसभाओं में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं। वाराणसी स्थित केंद्रीय विश्वविद्यालय 'बीएचयू' के सामाजिक विज्ञान विभाग के प्राध्यापक संजय श्रीवास्तव कहते हैं, "वाारणसी के लोग अपने नगर को मिल रहे महत्व से काफी उत्साहित हैं।

जब राष्ट्रीय स्तर की किसी पार्टी का प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी आपके शहर से चुनाव लड़ने की घोषणा करे तो रोमांचित होना स्वाभाविक है। इस तरह का उत्साह किसी शहर के लिए सकारात्मक साबित होता है।"

लेकिन बहुप्रचारित 'मोदी लहर' के सवाल पर यहां की जनता के विचार कुछ अलग हैं। वाराणसी के अनेक लोगों के लिए मोदी की यह महत्वाकांक्षा सिर्फ उनकी 'विघटनकारी रणनीति' का हिस्सा है।

एक सरकारी विद्यालय के प्रवक्ता ने नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा, "कहां है मोदी लहर? क्या गली-सड़कों पर कहीं आपको यह दिखाई पड़ रहा है। यह सिर्फ मीडिया द्वारा फैलाया गया है।"

जानकारों की कुछ अलग ही है जानकारी -

वहीं वरिष्ठ पत्रकार गौतम चटर्जी ने कहा, "देश की राजनीति अब कॉरपोरेट घराने तय करने लगे हैं। वे एक घोड़े पर दांव लगाते हैं और पूरा मीडिया उस घोड़े का चारा तैयार करने में लग जाता है, जैसा कि मोदी या केजरीवाल के मामले में हो रहा है। और यह सब कॉरपोरेट घरानों के मुनाफे को ध्यान में रखकर किया जाता है, न कि जनता के लाभ के लिए।"

वाराणसी के कुछ लोगों का यह भी मानना है कि स्थानीय प्रत्याशी को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए। उनका इशारा असल में कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय की तरफ था। महिला एवं बाल स्वास्थ्य के लिए काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन के समन्वयक सिद्धार्थ दवे ने कहा, "बाहर से आए किसी व्यक्ति के लिए इस शहर की समस्याओं को समझने के लिए पांच वर्ष का कार्यकाल पर्याप्त नहीं है।"

  • एक स्थानीय राजनीतिक कार्यकर्ता ने कहा, "वाराणसी जैसे सुस्त जीवनशैली वाले शहर में मतदान से दो सप्ताह पूर्व किसी तरह की लहर का पता लगा पाना बेहद मुश्किल है।"
  • एक अन्य पत्रकार ने कहा, "यहां इस बार मतदाताओं के ध्रुवीकरण की पूरी संभावना है। जातीय एवं सामुदायिक समीकरण ही आने वाले दिनों में यहां के राजनीतिक भविष्य का निर्धारण करेंगे।"

वाराणसी में लगभग 16 लाख मतदाताओं में दो लाख ब्राह्मण हैं, तो वहीं मुस्लिम मतदाताओं की संख्या तीन लाख के करीब है।

पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी मुरली मनोहर जोशी से मामूली मतों से पीछे रहे कौमी एकता दल के प्रत्याशी मुख्तार अंसारी ने इस बार अपना नाम यह कहकर वापस ले लिया कि उनके खड़े होने से मुस्लिम मत विभाजित हो जाएंगे।

इसका फायदा उठाते हुए आप मुस्लिम मतदाताओं के बीच पैठ बनाती हुई नजर आने लगी है। हालांकि आप नेता गौरव शाह का कहना है, "मुस्लिम मतदाताओं के ध्रुवीकृत होने का कोई मुद्दा ही नहीं है, उनका पूरा समर्थन आप के साथ है। जबकि हिंदुओं का मत आप, भाजपा और कांग्रेस के बीच बंटेगा।"

शाह ने कहा, "वाराणसी में स्थानीय या बाहरी प्रत्याशी जैसा कोई मुद्दा नहीं है, क्योंकि यह लोकसभा सीट अब राष्ट्रीय स्तर के महत्व का हो चुका है।"

वाराणसी में नौंवे चरण के तहत 12 मई को मतदान होगा, और यहां छाई चुनावी सरगर्मी ने चुनावी पर्यटकों को बड़ी संख्या में आकर्षित करना शुरू कर दिया है। इसी क्रम में यहां की आबोहवा ने जनता के मन में यह ठान लेने की शक्त‍ि पैदा की है कि इस बार वे किसे अपना जन-नायक चुनें।

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English summary
Varanasi is facing a big political battle between different political parties. Here is an ideological war between various scholars that who will win in this Election-War.
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