UP Assembly Election 2017: मायावती बनाम सियासत के 'राम'!
लखनऊ। जी हां 'सियासत के राम।' उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों की बात हो या फिर लोकसभा चुनावों के लिहाज से उत्तर प्रदेश के वोटबैंक की। सियासी घमासान में राम के नाम का प्रयोग जाति विशेष का हिमायती बनने के लिए जरूर किया जाता है। हालांकि राम हम सभी के हैं। लेकिन सुविधा के अनुसार, सियासी नफे के मद्देनजर राम अपनाए भी जाते हैं, ठुकराए भी जाते हैं।
मायावती की राजनीति गुलाबी पत्थरों और हरिजन एक्ट के बीच सिमट गई है?
अंबेडकर की 125वीं जयंती पर बसपा सुप्रीमों मायावती ने कहा हमारे मसीहा अंबेडकर हैं, राम नहीं। इस बेलाग ढंग से कहे गए एक वाक्य से ही उन्होंने एक तो अपने समर्थन आधार को भी संगठित किया और बीजेपी की हिंदुत्ववादी राजनीति की नस पर प्रहार किया। लेकिन राजनीति के जानकारों के मुताबिक इसका खामियाजा बीजेपी से ज्यादा मायावती को भुगतना पड़ेगा।
सवर्णों में माया के प्रति नाराजगी
बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती के इस बयान से उत्तर प्रदेश का सवर्ण वर्ग नाराज हो गया। हालांकि मायावती ऐसा बिलकुल भी नहीं चाहती थीं। लेकिन ये नाराजगी दयाशंकर विवाद के बाद आक्रोश में तब्दील हो गई। लखनऊ के हजरतगंज थाने में 22 जुलाई को इकट्ठा हुई भीड़ ने जब मायावती मुर्दाबाद के नारे लगाने शुरू किए तो बसपा खेमे में हलचल शुरू हो गई।
क्षत्रियों को ज्यादा से ज्यादा टिकट
हलचल विरोध के लिहाज से नहीं बल्कि वोटबैंक की वजह से थी। दरअसल मायावती की रणनीति आगामी विधानसभा चुनाव में क्षत्रियों को ज्यादा से ज्यादा टिकट देने की थी, वे सवर्ण विदारदी को पूरी तरह से बसपा के पक्ष में करना चाहती थीं लेकिन इन दोनों विवादों के बाद सवर्णों ने माया से एकदम मुंह फेर लिया।
तो क्या फिर से बदल जाएंगे आंकड़े ?
माना जाता है कि सूबे की सत्ता में माया को लाने के लिए सवर्ण वर्ग का बड़ा योगदान रहा है। साल 2007 के यूपी विधानसभा चुनावों में मायावती ने 86 ब्राह्मणों के साथ 45 क्षत्रियों को टिकट दिए। चुनाव में मायावती पूर्णबहुमत के साथ विजयी रहीं।
ब्राह्मण और क्षत्रियों को नीचे उतारने का प्रयास
जबकि 2012 में मायावती ने फेरबदल कर अन्य वर्गों को ऊपर चढ़ाने और ब्राह्मण और क्षत्रियों को नीचे उतारने का प्रयास किया। 2012 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 74 ब्राह्मण उम्मीदवार उतारे एवं 33 क्षत्रियों को टिकट दिए गए, और मायावती को अपने कामकाज की वजह से हार का मुंह देखना पड़ा।
लेकिन इस बार दोनों ही वर्गों में माया के बयानों को लेकर फिर से नाराजगी व्याप्त है। जिससे सवाल उठता है कि क्या फिर चुनाव के परिणाम वर्ष 2012 की स्थितियों को दोहराएंगे ?
जनता की राय :-
बसपा ने राम पर किया वार, नहीं करेंगे स्वीकार
बांदा के स्थानीय निवासी और कारोबारी नितिन द्विवेदी का कहना है कि राम हमारे आदर्श हैं, वे भी क्षत्रिय कुल के थे लेकिन उन्होंने स्त्री का कभी अपमान नहीं किया। जबकि क्षत्रिय कुल के ही दयाशंकर ने मायावती पर अभद्र टिप्पणी की। इस तरह की तमाम चीजें आपकी आस्था पर, आपके बड़ों पर, आपकी मान्यताओं पर, संस्कारों पर सवाल खड़ा करने का मौका देते हैं।
बसपा की ओर से अभी तक किसी भी नेता के खिलाफ कार्रवाई नहीं
हालांकि मायावती पर की गई टिप्पणी के विरोध में बसपा ने भी बद्जुबानी की। दयाशंकर को पार्टी से निकाल दिया गया है लेकिन बसपा की ओर से अभी तक किसी भी नेता के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई है। बसपा ने भगवान राम के साथ-साथ महिला का भी अपमान किया है। जो कि उन्हें निश्चित तौर पर महंगी पड़ेंगी।
हिंदुत्व पर चोट की गई है
उन्नाव के स्थानीय निवासी और व्यावसायी शिवेंद्र सिंह का कहना है कि स्त्रीत्व पर जिस तरह से बसपा कार्यकर्ताओं ने अभद्र भाषा का प्रयोग किया है, वो कतई बर्दाश्त नहीं है। दूसरी ओर भगवान राम पर की गई टिप्पणी पर अपना विचार रखते हुए उन्होंने कहा कि राम हमारे ईष्ट हैं। हिंदुत्व की विचारधारा पर चोट एक समाज को मजबूत बनाने और दूसरे वर्ग को नीचे गिराने के उद्देश्य से की जा रही है।