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संस्कृत बनाम जर्मन में बलि का बकरा बनीं स्मृति ईरानी

By Ajay Mohan
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केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी पर हाल ही में आरोप लगे कि वो श‍िक्षा का भगवाकरण करने में उतारू हैं। विपक्षी दलों के नेताओं ने देश भर के 500 केंद्रीय विद्यालयों के छात्रों के करियर को ढाल बनाकर स्मृति पर जमकर कीचड़ उछाला। लेकिन शायद ही उनमें से कोई होगा, जिसने संस्कृत बनाम जर्मन के इस विवाद की तह तक जाकर खोजबीन की हो। शायद ही कोई होगा जिसने इसके पीछे की सच्चाई को जानने की कोश‍िश की।

Smriti Irani

खैर विरोधी दलों की छोड़‍िये, यह तो उनका काम ही है, हम और आप क्यों उस पचड़े में पड़ें। हमें तो उसकी सच्चाई में एक नजर डालनी ही चाहिये। सबसे पहली महत्वपूर्ण बात यह है कि स्मृति द्वारा पेश की गई सफाई के बाद अगर आप यह सोच रहे हैं कि विवाद अब ठंडा पड़ जायेगा, तो ऐसा नहीं है।

अब हम उस वक्तव्य की बात कर ते हैं जिसमें कहा गया था कि संस्कृत को एक छोटे से कारण के लिये जनता पर थोप नहीं सकते। जनता तो भाषा का चुनाव जॉब मार्केट को ध्यान में रखते हुए करते हैं और संस्कृत में फिलहाल वो दम नहीं है, कि उन्हें बड़ी नौकरी दिला सके।

अगर आप यह सोच रहे हैं कि स्मृति ने संस्कृत को बच्चों पर थोपने की प्लानिंग बनायी थी, तो आप गलत हैं। असल में वो स्मृति नहीं बल्कि दिल्ली हाईकोर्ट में दायर एक याचिका थी, जिसकी वजह से उन्हें संस्कृत को अनिवार्य करने का निर्णय लेना पड़ा।

विवाद की पृष्ठभूमि

संस्कृत श‍िक्षक संघ ने केंद्रीय विद्यालय के एक फैसले के ख‍िलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी। याचिका के अंतर्गत कक्षा छह से आठ तक जर्मन, फ्रेंच, चाइनीज़ और स्पेनिश भाषा में से किसी एक को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने की बात कही गई थी। याचिका में कहा गया था कि ऐसा करने से भारत की प्राचीनतम भाषा संस्कृत के प्रति लोगों का रुझान कम होगा और फिर भविष्य में शायद ही कोई यह भाषा सीखेगा। वो भाषा जो भारत की सभ्यता से जुड़ी हुई है। याचिका में कहा गया कि यह निर्देश भारतीय नागरिकों के मूल अध‍िकारों के विरुद्ध भी है। 9 जुलाई 2014 को हाईकोर्ट ने केंद्रीय विद्यालय से इसका जवाब देने को कहा और पूछा कि विदेशी भाषाओं को अनिवार्य क्यों किया जा रहा है।

एचआरडी मिनिस्टर ने क्या कहा था

स्मृति ईरानी की अध्यक्षता में आयोजित केवी के बोर्ड ऑफ गवरनर की बैठक में तुरंत फैसला किया गया कि अब संस्कृत की जगह जर्मन भाषा को पढ़ाये जाने की व्यवस्था को वापस लिया जाये। हालांकि उन्होंने उन सभी मांगों को सिरे से खारिज कर दिया, जिसमें संस्कृत को अनिवार्य किये जाने की बात कही गई थी।

मानव संसाधन मंत्री का फॉरमूला एकदम साफ था। वो यह कि संविधान के श‍िड्यूल 8 में सूचीबद्ध 23 भारतीय भाषाओं में से किसी का भी चयन छात्र कर सकेंगे। साथ ही वो जर्मन को आगे पढ़ाये जाने पर राजी नहीं हुईं।

कहां से आयी जर्मन भाषा?

जर्मन भाषा को तीसरी भाषा के रूप में समाहित एक एमओयू के तहत किया गया, जो केंद्रीय विद्यालय संगठन और गोथे इंस्टीट्यूट ऑफ मैक्स मुलर के बीच 2011 में हुआ था। इस प्रस्ताव के तहत जर्मन पढ़ाने के लिये श‍िक्षकों को ट्रेनिंग दी जानी थी। यूपीए सरकार के कार्यकाल में किया गया एग्रीमेंट 2014 में पूरा हो गया। मोदी सरकार आयी और इस एग्रीमेंट पर अपना पक्ष रख दिया। हालांकि अभी तक इस एग्रीमेंट का रिन्युवल नहीं हुआ है।

सुप्रीम कोर्ट पहुंचे छात्रों के माता-पिता

सरकार के नये फैसले के चलते केंद्रीय विद्यालयों के करीब 70 हजार छात्रों के करियर पर असर पड़ेगा, जो जर्मन पढ़ रहे हैं। छात्रों के माता-पिता ने मिलकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है, जिसमें जर्मन भाषा को पाठ्यक्रम से नहीं हटाने की मांग की है।

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि संस्कृत को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने के बजाये उसे अतिरिक्त भाषा के रूप में रख दिया जाये और जर्मन को भी यथावत बनाये रखा जाये। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को ध्यान में रखते हुए 5 दिसंबर को सरकार ने इस साल संस्कृत की परीक्षा नहीं कराने का फैसला किया है।

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English summary
Union Human Resource Development (HRD) Minister Smriti Irani was accused of saffronising education in India by replacing German with Sanskrit as the third language in some 500 Centrally-run Kendriya Vidyalayas.
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