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चंद्रशेखर आजाद: जिसने मौत को महबूबा और कफन को सेहरा कहा...

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नई दिल्ली। भारत का इतिहास गवाह है कि यहां कई महापुरुष हुए, जिन्‍होंने देश के लिये अपनी जान तक न्‍योछावर कर दी। उन्‍हीं में से एक हैं चंद्रशेखर आज़ाद, जिन्‍होंने भारतीय स्‍वतंत्रता संग्राम में राम प्रसाद बिसमिल और सरदार भगत सिंह के साथ अंग्रेजों की नींदें हराम कर दी थीं। आज 23 जुलाई को उनकी जयंती पर हम उनके जीवन पर प्रकाश डालेंगे और कुछ सीखने के प्रयास करेंगे।

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आजाद का जन्‍म 23 जुलाई को उत्‍तर प्रदेश के उन्‍नाव जिले के बदरका गांव में 1906 में हुआ था। आजाद के पिता पंडित सीताराम तिवारी अकाल पड़ने पर गांव छोड़ कर मध्‍य प्रदेश चले गये थे। एमपी में ही आजाद का बचपन बीता। अंग्रेज शासित भारत में पले बढ़े आजाद की रगों में शुरू से ही अंग्रेजों के प्रति नफरत भरी हुई थी।

आजाद की एक खासियत थी

आजाद की एक खासियत थी

आजाद की एक खासियत थी न तो वे दूसरों पर जुल्म कर सकते थे और न स्वयं जुल्म सहन कर सकते थे। 1919 में अमृतसर के जलियांवाला बाग कांड ने उन्‍हें झकझोर कर रख दिया था। चन्द्रशेखर उस समय पढ़ाई कर रहे थे। तभी से उनके मन में एक आग धधक रही थी। महात्‍मा गांधी द्वारा असहयोग आंदोलन खत्‍म किये जाने पर सैंकड़ों छात्रों के साथ चन्द्रशेखर भी सड़कों पर उतर आये। छात्र आंदोलन के वक्‍त वो पहली बार गिरफ्तार हुए। तब उन्‍हें 15 दिन की सजा मिली।

असहयोग आंदोलन

असहयोग आंदोलन

सन 1922 में गांधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन को अचानक बंद कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आ गया और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ गये। तभी वे हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन के सक्रिय सदस्य बन गये। आज़ाद ने क्रांतिकारी बनने के बाद सबसे पहले 1 अगस्‍त 1925 को काकोरी कांड को अंजाम दिया।

 हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसियेशन का गठन

हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसियेशन का गठन

इसके बाद 1927 में बिसमिल के साथ मिलकर उत्तर भारत की सभी क्रान्तिकारी पार्टियों को मिलाकर एक करते हुए हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसियेशन का गठन किया। भगत सिंह व उनके साथियों ने लाहौर में लाला लाजपत राय की मौत का बदला संडर्स को मार कर लिया। फिर दिल्‍ली असेम्बली में बम धमाका भी आजाद ने किया। आजाद का कांग्रेस से जब मन भंग हो गया आजाद ने अपने संगठन के सदस्‍यों के साथ गाँव के अमीर घरों में डकैतियाँ डालीं, ताकि दल के लिए धन जुटाया जा सके। इस दौरान उन्‍होंने व उनके साथियों ने एक भी महिला या गरीब पर हाथ नहीं उठाया। डकैती के वक्‍त एक बार एक औरत ने आज़ाद का पिस्तौल छीन ली तो अपने उसूलों के चलते हाथ नहीं उठाया। उसके बाद से उनके संगठन ने सरकारी प्रतिष्‍ठानों को ही लूटने का फैसला किया।

अंग्रेज चन्द्रशेखर आज़ाद को तो पकड़ नहीं सके

अंग्रेज चन्द्रशेखर आज़ाद को तो पकड़ नहीं सके

अंग्रेज चन्द्रशेखर आज़ाद को तो पकड़ नहीं सके लेकिन बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां एवं ठाकुररोशन सिंह को 19 दिसम्बर 1927 तथा उससे 2 दिन पूर्व राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को फाँसी पर लटकाकर मार दिया। एकाध बार बिस्मिल तथा योगेश चटर्जी को छुड़ाने की योजना भी बनायी, लेकिन आजाद उसमें सफल नहीं हो पाये। 4 क्रान्तिकारियों को फाँसी और 16 को कड़ी कैद की सजा के बाद चन्द्रशेखर आज़ाद ने उत्तर भारत के सभी कान्तिकारियों को एकत्र कर 8 सितम्बर 1928 को दिल्ली के फीरोज शाह कोटला मैदान में एक गुप्त सभा का आयोजन किया। सभी ने एक नया लक्ष्य निर्धारित किया गया - "हमारी लड़ाई आखिरी फैसला होने तक जारी रहेगी और वह फैसला है जीत या मौत।" दिल्ली एसेम्बली बम काण्ड के आरोपियों भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव को फांसी की सजा सुनाये जाने पर भगत सिंह काफी आहत हुए। आज़ाद ने मृत्यु दण्ड पाये तीनों की सजा कम कराने का काफी प्रयास किया।

27 फरवरी 1931

27 फरवरी 1931

27 फरवरी 1931 को वे इलाहाबाद गये और जवाहरलाल नेहरू से मिले और आग्रह किया कि वे गांधी जी पर लॉर्ड इरविन से इन तीनों की फाँसी को उम्र-कैद में बदलवाने के लिये जोर डालें। नेहरू जी ने जब आजाद की बात नहीं मानी तो आजाद ने उनसे काफी देर तक बहस भी की। इस पर नेहरू जी ने क्रोधित होकर आजाद को तत्काल वहाँ से चले जाने को कहा तो वे अपने भुनभुनाते हुए बाहर आये और अपनी साइकिल पर बैठकर अल्फ्रेड पार्क चले गये।

आज़ाद का अंतिम संस्कार

आज़ाद का अंतिम संस्कार

अल्फ्रेड पार्क में अपने एक मित्र सुखदेव राज से मिले और इस बारे में चर्चा कर ही रहे थे कि सीआईडी का एसएसपी नॉट बाबर भारी पुलिस बल के साथ जीप से वहाँ आ पहुंचा। दोनों ओर से हुई भयंकर गोलीबारी हुई और इसी मुठभेड़ में चंद्रशेखर आजाद शहीद हो गये। पुलिस ने बिना किसी को इसकी सूचना दिये आज़ाद का अंतिम संस्कार कर दिया था।

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English summary
Tribute to Chandrashekhar Azad on his birth anniversary on July 23rd.
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